400 साल पुरानी धरोहर की बदल दी पहचान
उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग का कारनामा
मकबरा जफर खां का नाम कर दिया औरंगजेब की हवेली
आगरा, 15 अक्टूबर (एजेंसियां)। उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग ने मनमाने तरीके से 17वीं सदी में राजा जयसिंह के बनाए नक्शे में रोजा-ए-जफर खां के नाम से दर्ज मकबरे का नाम बदल दिया। राज्य पुरातत्व विभाग ने इसे औरंगजेब की हवेली नाम दे दिया।
राज्य पुरातत्व विभाग ने गैरकानूनी तरीके से 400 साल पुरानी धरोहर की पहचान बदल दी है। वाटरवर्क्स चौराहे पर मौजूद रोजा-ए-जफर खां यानी जफर खां के मकबरे को औरंगजेब की हवेली का नाम किए जाने के खिलाफ लोगों में आक्रोश भरता जा रहा है। औरंगजेब की हवेली, बल्केश्वर के नाम से जफर खां के मकबरे और बाग को संरक्षित करने की प्रारंभिक अधिसूचना जारी कर दी गई है। यह मामला इतिहास से छेड़छाड़ का है। 17वीं सदी में जयपुर के राजा जयसिंह के बनाए नक्शे में यह रोजा-ए-जफर खां के नाम से दर्ज है। ऐतिहासिक दस्तावेजों, गजेटियर में औरंगजेब की हवेली बल्केश्वर की जगह बेलनगंज में हाथीघाट के सामने मौजूद है।
रामबाग स्मारक के ठीक सामने यमुना किनारे वाटरवर्क्स चौराहे से सटी गोशाला के पीछे जफर खां का मकबरा और बाग है। उत्तर प्रदेश सरकार के राज्य पुरातत्व विभाग ने जफर खां के बाग और इमारत को औरंगजेब की हवेली बताते हुए इसे संरक्षित करने की प्रक्रिया तेज की है। एक साल पहले प्री-नोटिफिकेशन किया गया, जिसमें औरंगजेब की हवेली, बल्केश्वर (मुबारक मंजिल) का नाम दिया गया।
0.634 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैली मुगल काल की ककैया ईंटों से बनी इमारत गाटा संख्या 1723 पर बनी है। यमुना किनारे के बुर्ज 0.346 हेक्टेयर क्षेत्रफल में हैं और गाटा संख्या 1707 में मौजूद हैं। सोमवार को राज्य पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने गोशाला के पीछे बनी इमारत का निरीक्षण किया। यहां स्थायी रूप से एक कर्मचारी को तैनात किया गया है जो यहां देखरेख और सफाई के लिए रखा गया है। विशेष सचिव रवींद्र कुमार ने दोनों स्मारकों के लिए अधिसूचना जारी की है।
जिस जगह की अधिसूचना राज्य पुरातत्व विभाग ने जारी की है, वह जगह 17वीं सदी में जयपुर के राजा जयसिंह के नक्शे में 44 नंबर पर दर्ज है। इसके पास बाग हाकिम काजिम अली और बाग-ए-राय शिवदास था। हवेली आलमगीर यानी औरंगजेब की हवेली 33 और 34 नंबर पर दर्ज है और यह बेलनगंज में हाथीघाट के सामने तथा हवेली आसफ खां से सटी है। राजा जयसिंह के नक्शे में जफर खां बाग के बीच में वर्गाकार एक मंजिला इमारत दर्शाई गई है। सेटेलाइट इमेज में हूबहू वही इमारत अब भी उसी बाग में नजर आती है, जैसी नक्शे में है।
जिस भवन को राज्य पुरातत्व विभाग औरंगजेब की हवेली के नाम से संरक्षित करने की प्रक्रिया शुरू की है, वह 17वीं सदी के नक्शे के साथ फ्लोरेंसिया सेल की वर्ष 1832-33 की नोटबुक में भी रोजा जाफर खां के नाम से दर्शाई गई है। इसके अलावा वर्ष 1980 से आगरा के रिवर फ्रंट गार्डन तलाशने वाली आस्टि्रयाई इतिहासकार एब्बा कोच की पुस्तक में भी जफर खां का मकबरा दर्शाया गया है। यहां चारों कोनों पर ककैया ईंटों से बनी मीनारें हैं और हर तरफ बरामदा है, जो अंदर के हॉल से जुड़ा हुआ है।
राज्य पुरातत्व विभाग के प्रभारी ज्ञानेंद्र रस्तोगी ने कहा कि जिस जगह का संरक्षण करने की अधिसूचना जारी की गई है, उस पर आपत्तियां मांगी गई थीं। तब लोगों को इस पर आपत्ति दर्ज करानी चाहिए थी। यह मामला मेरे आने से पहले का है, इसलिए किन दस्तावेजों के आधार पर नाम दिया गया, बताना कठिन है। प्रशासन की ओर से जो कागजात दिए गए होंगे, वही नाम रखा जाता है।
जबकि पुरातत्वविद डॉ. आरके दीक्षित का कहना है कि वाटरवर्क्स पर जफर खां का मकबरा है और यह एएसआई से संरक्षित है। हवेली आलमगीर हाथीघाट के सामने है। राजा जयसिंह के नक्शे में यमुना नदी के किनारे बनी सभी हवेलियों का ब्यौरा है। उल्लेखनीय है कि ताजमहल जिस मुमताज महल के लिए तामीर किया गया, उनकी बहन फरजाना बेगम का पति जफर खां था, जो मुगल बादशाह शाहजहां के समय बेहद ताकतवर था। शाहजहां ने 1649 में जफर खां को पंजाब का गवर्नर बनाया था। उसके बाद 1650 में दिल्ली और मुल्तान और 1651 में बिहार का गवर्नर बनाया गया। इतिहासकार एब्बा कोच की पुस्तक में लिखा है कि शाहजहां के दरबार में वह वजीर-ए-कुल यानी वित्त मंत्री रहा। 1658 में सामूगढ़ की लड़ाई के बाद औरंगजेब ने जफर खां को मालवा का गवर्नर बनाया और रैंक बढ़ा दी। 1670 में जफर खां की मृत्यु पर औरंगजेब ने दो राजकुमारियों को फरजाना बेगम के पास भेजा था।