संघ और सीपीएम दोनों से मेरा वैचारिक संघर्ष : राहुल

राहुल गांधी का वैचारिक दिवालियापन कर रहा बंटाधार

 संघ और सीपीएम दोनों से मेरा वैचारिक संघर्ष : राहुल

राहुल के बयान से वामदलों में भीषण नाराजगी

नई दिल्ली, 20 जुलाई (एजेंसियां)। कांग्रेस नेता राहुल गांधी का वैचारिक दिवालियापन इंडी गठबंधन का बंटाधार करता जा रहा है। अब बिहार चुनाव में राहुल गांधी कांग्रेस को डुबोने के लिए बिल्कुल तैयार हैं। राहुल गांधी का हाल का बयान पूरी कांग्रेस पार्टी को बिहार चुनाव में मुश्किल में डाल रहा है। राहुल गांधी ने कहा, मेरा आरएसएस और वामपंथियों दोनों से वैचारिक संघर्ष है। मैं वैचारिक तौर पर संघ और सीपीएम दोनों से लड़ता रहता हूं। राहुल का यह बयान बिहार चुनाव के पहले सियासी गलियारे में आग में घी का काम कर रहा है।

राहुल गांधी की वैचारिक उलझन कोई नई बात नहीं है। महाराष्ट्र में वह शिवसेना (यूबीटीके साथ गठबंधन में हैंजो पहले भाजपा की सहयोगी थी। केरल में वह कम्युनिस्टों का विरोध करते हैंलेकिन पश्चिम बंगाल में 2021 के चुनाव में सीपीएम के साथ गठजोड़ किया और हार गए। बिहार में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू होते ही सियासी हलचल तेज हो गई है। लेकिन इस बार राहुल गांधी के बयान को लेकर तमाम निंदा प्रस्ताव जारी हो रहे हैं। केरल के कोट्टायम में एक कार्यक्रम में राहुल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएसऔर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीएम को लेकर कहामैं आरएसएस और सीपीएम दोनों से वैचारिक रूप से लड़ता हूं। मेरी सबसे बड़ी शिकायत यह है कि इन दोनों में लोगों के लिए भावनाएं नहीं हैं। राहुल गांधी के इस बयान ने इंडी गठबंधन के सहयोगी वामपंथी दलों को भीषण नाराज कर दिया।

यह बयान बिहार जैसे संवेदनशील राज्य में, जहां वामपंथी पार्टियां इंडी गठबंधन का मजबूत हिस्सा हैंएक बड़े सियासी तूफान का कारण बन रहा है। लोग यह सवाल उठाने लगे हैं कि राहुल गांधी की राजनीतिक सोच आखिर क्या है कि वह बार-बार ऐसी स्थिति में फंस जाते हैंजहां उनकी अपनी पॉलिटिकल अप्रोच उन्हें और उनकी पार्टी को भंवर में फंसा देती है। लोगों का यह पूछना भी स्वाभाविक है कि आखिर क्या वजह है कि राहुल गांधी अक्सर वैचारिक मुद्दे पर अजीब किस्म के मतिभ्रम का शिकार हो जाते हैं और ऐसी उल-जलूल हरकत कर बैठते हैं कि उन्हें पूरे देश में कोई गंभीरता से नहीं लेता।

कांग्रेस पार्टी अपनी स्थापना से लेकर अब तक मध्यमार्गी और पॉपुलिस्ट विचारधारा का मिश्रण रही है। यह कभी समाजवादी नीतियों (जैसे इंदिरा गांधी के दौर में राष्ट्रीयकरण) तो कभी आर्थिक उदारीकरण (1991 के सुधार) की वकालत करती रही है। लेकिन राहुल गांधी की व्यक्तिगत विचारधारा इस मिश्रण को और जटिल बनाती हैक्योंकि वह न तो पूरी तरह समाजवादी हैंन दक्षिणपंथी और न ही वामपंथी। उनकी सोच एक ऐसी उलझन में फंसी हुई दिखती है। यह उलझन और विरोधाभास बार-बार उनके बयानों से झलकता है। राहुल गांधी का यह कहना कि आरएसएस और सीपीएम में लोगों के प्रति भावनाओं की कमी हैन सिर्फ तथ्यात्मक रूप से गलत हैबल्कि सियासी तौर पर आत्मघाती भी है। संघ और सीपीएम की विचारधाराएं एक दूसरे के विपरीत हैं, लेकिन दोनों विचारधाराओं के अपने-अपने जनाधार हैं। और जनाधार बिना भावना के तो बनता नहीं है।  

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केरल में भले ही कांग्रेस और सीपीएम प्रतिद्वंद्वी हैं। लेकिन वह वहां यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार में शामिल है जिसका नेतृत्व सीपीएम करती है। लेकिन बिहार में दोनों इंडी गठबंधन में साथ-साथ हैं। राहुल का केरल में दिया गया बयान बिहार के संदर्भ में पूरी तरह गलत संदेश देता हैजहां वामपंथी पार्टियों का ग्रामीण इलाकों में प्रभाव है। राहुल गांधी का यह बयान गठबंधन के कार्यकर्ताओं में भ्रम पैदा कर रहा है और वोटों के बंटवारे का खतरा बढ़ा रहा है।

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सीपीएम और सीपीआई के नेताओं ने राहुल के बयान की कड़ी आलोचना की है। सीपीएम महासचिव एमए बेबी ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि यह बयान केरल और भारत की राजनीतिक वास्तविकताओं की समझ की कमी को दर्शाता है। सीपीआई नेता डी राजा ने भी गठबंधन की वर्चुअल बैठक में इस मुद्दे को उठाया और कहा कि ऐसी टिप्पणियां कार्यकर्ताओं में भ्रम पैदा करती हैं। बिहार में वामपंथी दलों का वोट बैंक भले ही सीमित होलेकिन ग्रामीण इलाकोंखासकर सीमांचल और मगध क्षेत्र मेंउनकी संगठनात्मक ताकत अहम है। अगर यह नाराजगी बढ़ती हैतो गठबंधन के लिए सीट-बंटवारे और संयुक्त रणनीति में मुश्किलें आ सकती हैं। राहुल के बयान से वामपंथी कार्यकर्ताओं में भी असंतोष फैल रहा है।

आम आदमी पार्टी इंडी गठबंधन से बाहर हो चुकी है। इससे गठबंधन पहले से ही कमजोर स्थिति में है। अब अगर वामपंथी दल भी दूरी बनाते हैंतो बिहार में गठबंधन की संभावनाएं और कम हो जाएंगी। बिहार में राजद और कांग्रेस की ताकत सीमित है और वामपंथी दलों की संगठनात्मक क्षमता गठबंधन के लिए महत्वपूर्ण है। इस बार बिहार में वामपंथी दलों (सीपीआईसीपीएमसीपीआईएमएलकी मांग है कि उन्हें उनकी संगठनात्मक ताकत के आधार पर अधिक सीटें दी जाएं। राहुल गांधी के सीपीएम और आरएसएस को एक समान बताने वाले बयान से नाराज वामपंथी दल सीट बंटवारे की बातचीत को और जटिल बना सकते हैं। अगर वामपंथी दल गठबंधन से अलग होने का फैसला करते हैंतो यह गठबंधन को बड़ा झटका देगा।

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