सतर्क न होती सरकार तो शत्रु सम्पत्ति भी हड़प लेता वक्फ बोर्ड

देश में 13000 से अधिक शत्रु सम्पत्ति : कीमत 1 लाख करोड़

सतर्क न होती सरकार तो शत्रु सम्पत्ति भी हड़प लेता वक्फ बोर्ड

फिर कभी नहीं हो पाती परवेज मुशर्रफ की जमीन की नीलामी

शुभ-लाभ राष्ट्र-चिंतन

कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2005 में राजा महमूदाबाद को हजारों करोड़ की सम्पत्ति लौटा दी थी। लेकिन भाजपा सरकार ने इसे रोक दिया। नए कानूनों ने वक्फ बोर्ड की मनमानी पर लगाम लगाई और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत किया। भारत सरकार ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के बागपत स्थित पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ की जमीन नीलाम की। कुछ दिन पहले उत्तराखंड में राजा महमूदाबाद की सम्पत्ति को सरकार ने पार्किंग प्लेस में बदला। बीते साल दिसंबर में पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की सम्पत्तिजिसमें 1918 में बनी मस्जिद भी शामिल थीउसे कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया। इस जमीन को लेकर दावा किया गया था कि देश की आजादी से पहले ही इसे वक्फ कर दिया गया था। लेकिन वह दावा फर्जी निकला। मस्जिद होने और वक्फ का होने के दावे के बावजूद यह जमीन सरकार को मिलीक्योंकि यह जमीन शत्रु सम्पत्ति के दायरे में आती थी।

तीनों मामलों को देखें तो आपको इनमें एक अंतरसंबंध (लिंक) दिखेगा। वह था शत्रु सम्पत्ति का होना और अब ऐसी सम्पत्तियों को भारत सरकार अपने जरूरतों के मुताबिक इस्तेमाल कर सकती है। ऐसा इसलिए हो पायाक्योंकि साल 2017 में मोदी सरकार एक कानून लाई थीजिसका नाम शत्रु सम्पत्ति (संशोधन और सत्यापन) विधेयक 2016 था। इस कानून के मुताबिकसिर्फ दुश्मन देश में गया व्यक्ति ही नहींदुश्मन देश गए व्यक्ति के वारिस भी दुश्मन की श्रेणी में आएंगे और वे दुश्मन सम्पत्ति यानी शत्रु सम्पत्ति पर कोई दावा नहीं कर पाएंगे।

मोदी सरकार के इस कदम से देश भर की 13 हजार से अधिक सम्पत्तियां सरकार के अधीन हो गईंजिनकी कीमत एक लाख करोड़ रुपए से भी अधिक है। मोदी सरकार जो वक्फ संसोधन कानून लेकर आई हैउसमें भी एविक्टी (शत्रु सम्पत्ति) पर वक्फ के दावों को नकार दिया गया है। इसका असर दूरगामी है। मोदी सरकार ने दोनों कानून लाकर वह काम किया हैजो कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारें मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण करने से बचती रही हैं। उल्लेखनीय है कि शत्रु सम्पत्ति वे सम्पत्तियां हैंजिनके स्वामी 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान या 1962 (चीन के साथ युद्ध), 1965 और 1971 (पाकिस्तान के साथ युद्ध) के बाद भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए या चीन की नागरिकता ले ली। भारत सरकार ने इन्हें शत्रु मानाक्योंकि ये लोग उन देशों के साथ चले गएजो भारत के खिलाफ युद्ध में थे। ऐसी सम्पत्तियों को जब्त करने का मकसद था कि इनका इस्तेमाल देश की सुरक्षा और विकास के लिए हो। शत्रु सम्पत्ति अधिनियम 1968 के तहत इन सम्पत्तियों की देखरेख के लिए कस्टोडियन ऑफ एनिमी प्रॉपर्टी फॉर इंडिया बनाया गयाजो गृह मंत्रालय के अधीन काम करता है। देशभर में ऐसी 13,252 सम्पत्तियां हैंजिनमें से 12,485 पाकिस्तानी नागरिकों और 126 चीनी नागरिकों की हैं। इनकी कुल कीमत 1.04 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है। इसमें भी सबसे ज्यादा सम्पत्तियां उत्तर प्रदेश (6,255) और पश्चिम बंगाल (4,088) में हैं।

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उदाहरण के लिएमुजफ्फरनगर में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की आठ बिसवा जमीन थीजिस पर मस्जिद और दुकानें बनी थीं। जांच में पाया गया कि ये शत्रु सम्पत्ति थी। इसी तरह भोपाल में नवाब हमीदुल्लाह खान की बेटी आबिदा सुल्तान 1950 में पाकिस्तान चली गई थी। उसकी सम्पत्तियां जैसे फ्लैग स्टाफ हाउस और नूर-उस-सबाह पैलेस भी शत्रु सम्पत्ति घोषित हुई। उसकी कीमत 15,000 करोड़ रुपए से ज्यादा है। पाकिस्तान के तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ की यूपी के बागपत में 13 बीघा जमीन को 2024 में 1.38 करोड़ रुपए में नीलाम किया गया। ये सारी सम्पत्तियां भारत सरकार के कब्जे में हैंताकि इनका दुरुपयोग न हो।

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शत्रु सम्पत्ति और वक्फ सम्पत्ति का बखेड़ा खड़ा किया जाता रहा है। कई शत्रु सम्पत्तियों को वक्फ बोर्ड ने अपने कब्जे में लेने की कोशिश की। इसका सबसे बड़ा कारण 1984 और 1995 के वक्फ कानूनों की खामियां थीं। 1984 में इंदिरा गांधी सरकार ने वक्फ कानून में एक संशोधन कियाजिसके तहत इवेक्यूइ प्रॉपर्टी (यानी वो सम्पत्तियां जो विभाजन के दौरान छोड़ी गई थीं) को वक्फ घोषित करने की छूट दी गई। अगर कोई सम्पत्ति पहले वक्फ थीलेकिन बाद में शत्रु सम्पत्ति बन गईतो उसे फिर से वक्फ में बदला जा सकता था। इसका मतलब यह हुआ कि जो सम्पत्तियां देश छोड़कर जा चुके लोगों की थींउन्हें वक्फ बोर्ड अपने नाम कर सकता था।

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मोदी सरकार ने साल 2017 में कानून में संशोधन किया। 2017 में शत्रु सम्पत्ति (संशोधन और सत्यापन) अधिनियम लाया गयाजिसने इस कानून को और सख्त किया। इस संशोधन के जरिए कई अहम बदलाव किए गए मसलनशत्रु की परिभाषा का विस्तार। अब शत्रु के वारिसभले ही वे भारत के नागरिक होंइन सम्पत्तियों पर दावा नहीं कर सकते। कस्टोडियन का मालिकाना हक यानि शत्रु सम्पत्ति का कस्टोडियन अब भारत सरकार है। इसके साथ ही सिविल कोर्ट की भूमिका खत्म हुई। शत्रु सम्पत्ति से जुड़े मामले अब सिविल कोर्ट में नहींबल्कि खास ट्रिब्यूनल में सुने जाएंगे। सरकार अब ऐसी सम्पत्तियों को बेच सकती है और इसका पैसा देश के खजाने में जमा हो सकता है।

राजा महमूदाबादयानी मोहम्मद अमीर अहमद खान एक प्रमुख शिया मुस्लिम परिवार से थे। महमूदाबाद एस्टेट के तहत उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विशाल साम्राज्य था। उनके पिता मोहम्मद अली मोहम्मद खान ने 1931 में अपनी मृत्यु के बाद विशाल सम्पत्ति छोड़ीजिसमें लखनऊ का बटलर पैलेसहजरतगंज में महमूदाबाद मेंशननैनिताल में मेट्रोपोल होटल और सीतापुर में 956 एकड़ जमीनएक चीनी मिलपॉलिटेक्निक संस्थान और डिग्री कॉलेज शामिल थे। मोहम्मद अमीर अहमद खान 1945 में इराक चले गए और 1957 में पाकिस्तानी नागरिकता ले ली। वे मुस्लिम लीग के कोषाध्यक्ष और मोहम्मद अली जिन्ना के करीबी सहयोगी थेजिन्होंने पाकिस्तान आंदोलन को वित्तीय और राजनीतिक समर्थन दिया। खास बात यह है कि अमीर अहमद खान ने अपनी सारी सम्पत्तियां पाकिस्तान को दान दे दी थीं। भारत में भी उनकी काफी सम्पत्तियां छूटी हुई थीं। भारत सरकार ने उनकी सम्पत्तियों को शत्रु सम्पत्ति अधिनियम 1968 के तहत जब्त कर लिया।

उनके बेटे मोहम्मद अमीर मोहम्मद खान (जिन्हें सुलेमान मियां भी कहा जाता था) भारतीय नागरिक थे और उन्होंने 1974 से अपनी पैतृक सम्पत्तियों को वापस पाने के लिए कानूनी लड़ाई शुरू की। यह लड़ाई 37 साल तक चलीजिसमें जिला अदालतबॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट शामिल थे। साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला दियाजिसमें कहा गया कि सुलेमान मियां भारतीय नागरिक हैं और शत्रु नहीं हैं। कोर्ट ने उनकी सभी सम्पत्तियों को वापस करने का आदेश दियाजिनकी कीमत उस समय 20,000 से 50,000 करोड़ रुपए बताई गई। इनमें लखनऊ का बटलर पैलेसहजरतगंज की प्राइम रियल एस्टेटमहमूदाबाद का किला और सीतापुर की विशाल जमीनें शामिल थीं।

साल 2005 में जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आयातब केंद्र में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व में यूपीए सरकार थी। इस फैसले ने सरकार को असहज स्थिति में डाल दियाक्योंकि इतनी विशाल सम्पत्तियां एक ऐसे परिवार को लौटानाजिसके अब्बा ने पाकिस्तान आंदोलन का समर्थन किया थाराष्ट्रीय सुरक्षा और जनभावना के लिए संवेदनशील मुद्दा था। लेकिन यूपीए सरकार ने इस फैसले को प्रभावी ढंग से लागू करने की दिशा में कई कदम उठाए। लखनऊ जिला प्रशासन ने 21 दिसंबर 2005 को बटलर पैलेस की चाबी और छह अन्य सम्पत्तियों के दस्तावेज सुलेमान मियां को सौंप दिए।

कांग्रेस सरकार की इस कार्रवाई की कई वजहें थीं। सुलेमान मियां खुद 1985 और 1989 में कांग्रेस के टिकट पर महमूदाबाद से विधायक रह चुके थेजिससे उनका पार्टी के साथ गहरा रिश्ता था। उस समय कांग्रेस की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति थी। कई लोग मानते हैं कि कांग्रेस ने इस मामले में ढील बरती और सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से अपना पक्ष नहीं रखाजिसके कारण इतनी बड़ी सम्पत्तियां राजा महमूदाबाद को लौटाने का रास्ता साफ हुआ।

हालांकिइस फैसले के बाद भारी विवाद हुआ। कई राजनीतिक दलों खासकर भाजपा ने इसे राष्ट्रीय हितों के खिलाफ बताया। इसके जवाब में यूपीए सरकार ने 2010 में एक आकस्मिक अध्यादेश लाने की कोशिश कीजिसमें कहा गया कि शत्रु सम्पत्तियों पर केवल सरकार का अधिकार होगा। लेकिन यह अध्यादेश संसद में विधेयक के रूप में पेश नहीं हो सकाक्योंकि कांग्रेस के भीतर और बाहर से दबाव था। इस दबाव में सलमान खुर्शीद की अहम भूमिका थीजिसने सुप्रीम कोर्ट वाले केस में राजा महमूदाबाद की पैरवी की थी और अगले ही साल वो यूपीए की केंद्र सरकार में कानून मंत्री जैसी हैसियत में थे। वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद उस समय केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री थे। वे राजा महमूदाबाद के वकील के तौर पर सुप्रीम कोर्ट में उनके पक्ष में लड़े। इस केस में उनके सामने पी. चिदंबरमअरुण जेटली और राम जेठमलानी जैसे दिग्गज वकील थेजो सरकार की तरफ से थे। खुर्शीद ने तर्क दिया कि सुलेमान मियां भारतीय नागरिक हैं और उनके पिता की गतिविधियों के आधार पर उन्हें शत्रु नहीं माना जा सकता। उनकी दलीलों ने 2005 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अहम भूमिका निभाई। लेकिन सलमान खुर्शीद की भूमिका सिर्फ कोर्टरूम तक सीमित नहीं थी। 2010 में जब यूपीए सरकार ने शत्रु सम्पत्ति अधिनियम को संशोधित करने के लिए अध्यादेश लाने की कोशिश कीतो खुर्शीद ने इसका विरोध किया। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात कर एक मुस्लिम सांसदों के समूह का नेतृत्व कियाजिसमें लालू प्रसाद यादवमुलायम सिंह यादव और मोहम्मद अदीब जैसे नेता शामिल थे। इस समूह ने तर्क दिया कि शत्रु सम्पत्ति कानून में संशोधन मुस्लिम विरोधी है और इससे भारतीय मुस्लिम समुदाय की भावनाएं आहत होंगी।

खुर्शीद की अगुआई में इस दबाव के चलते अध्यादेश को संसद में विधेयक के रूप में पेश नहीं किया गया। इसके अलावा अध्यादेश में एक प्रावधान था कि शत्रु सम्पत्ति के वारिस को 120 दिनों के भीतर अपनी भारतीय नागरिकता साबित करनी होगी। लेकिन जब विधेयक तैयार हुआतो इस प्रावधान को हटा दिया गयाजिससे शत्रु सम्पत्तियों पर दावे आसान हो गए। कई विश्लेषकों का मानना है कि खुर्शीद ने अपनी कानूनी और राजनीतिक पहुंच का इस्तेमाल कर राजा महमूदाबाद के पक्ष में माहौल बनाया और कांग्रेस सरकार को इस मामले में नरम रुख अपनाने के लिए मजबूर किया। इसके पीछे की वजहें स्पष्ट थीं। सलमान खुर्शीद का कांग्रेस में मजबूत प्रभाव था और मुस्लिम समुदाय के बीच उनकी खासी लोकप्रियता थी। राजा महमूदाबाद का कांग्रेस से पुराना रिश्ता थाक्योंकि सुलेमान मियां दो बार कांग्रेस विधायक रह चुके थे। इसके पीछे यूपीए सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति भी थीजिससे वह मुस्लिम वोट बैंक को खुश रखना चाहती थी। इस पूरे मामले में खुर्शीद की भूमिका को साफ तौर पर वोट बैंक की राजनीति से जोड़कर देखा जा सकता हैक्योंकि उन्होंने इसे मुस्लिम समुदाय के हितों से जोड़ाभले ही इसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ता।

मोदी सरकार ने वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 में शत्रु सम्पत्तियों को वक्फ बनने से रोकने के लिए कई सख्त कदम उठाए। पुराने वक्फ अधिनियम 1995 में कुछ खामियां थींजिनके चलते वक्फ बोर्ड मनमाने तरीके से सम्पत्तियों को वक्फ घोषित कर सकता था। उदाहरण के लिएधारा 40 के तहत बोर्ड बिना ठोस सबूत के किसी भी सम्पत्ति को वक्फ बता सकता था और इसे केवल वक्फ ट्रिब्यूनल में चुनौती दी जा सकती थी। इससे कई शत्रु सम्पत्तियां जैसे मुजफ्फरनगर में लियाकत अली खान की जमीनवक्फ के दावे में फंस गई थीं।

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 ने इन खामियों को दूर किया और इन अहम प्रावधानों के जरिए शत्रु सम्पत्तियों को वक्फ बनने से रोका। पुराने कानून में धारा 40 वक्फ बोर्ड को अनियंत्रित शक्ति देती थी। अब इसे हटा दिया गया हैजिससे बोर्ड बिना दस्तावेजी सबूत के किसी सम्पत्ति को वक्फ नहीं बता सकता। इससे शत्रु सम्पत्तियों पर वक्फ का दावा करना लगभग असंभव हो गया है। उदाहरण के लिए भोपाल में नवाब की सम्पत्तियां जो शत्रु सम्पत्ति हैंअब वक्फ नहीं बन सकतीं। इस विधेयक ने एक केंद्रीय पोर्टल की व्यवस्था की हैजहां सभी वक्फ सम्पत्तियों का रिकॉर्ड पारदर्शी तरीके से रखा जाएगा। इससे केवल वैध दस्तावेजों वाली सम्पत्तियां ही वक्फ मानी जाएंगी। शत्रु सम्पत्तियों जैसे लियाकत अली खान की जमीन अब वक्फ के नाम पर कब्जा नहीं किया जा सकेगा।

पुराने कानून की धारा 108 और 108ए जो शत्रु सम्पत्तियों को वक्फ में बदलने की छूट देती थींअब खत्म कर दी गई हैं। इससे यह सुनिश्चित हुआ है कि कोई भी शत्रु सम्पत्ति वक्फ नहीं बन सकती। उदाहरण के लिए विजयपुरा (कर्नाटक) में 123 एकड़ जमीन पर वक्फ बोर्ड का दावा खारिज हुआक्योंकि वह शत्रु सम्पत्ति थी। अब जिला कलेक्टर को वक्फ सम्पत्तियों की जांच का अधिकार है। अगर कोई सम्पत्ति शत्रु सम्पत्ति निकलती हैतो कलेक्टर उसे वक्फ घोषित होने से रोक सकता है। यह प्रावधान वक्फ बोर्ड की मनमानी को रोकता है। विधेयक में मुतवल्ली (वक्फ सम्पत्ति के प्रबंधक) की जवाबदेही बढ़ाई गई है। अगर कोई मुतवल्ली रिकॉर्ड नहीं रखता या सम्पत्ति का दुरुपयोग करता हैतो उसे हटाया जा सकता है। इससे शत्रु सम्पत्तियों को गलत तरीके से वक्फ बताने की कोशिशें रुकेंगी।

अगर वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 में ये प्रावधान न किए जाते तो शत्रु सम्पत्तियां वक्फ बोर्ड के कब्जे में जा सकती थीं। उदाहरण के लिए महमूदाबाद की सम्पत्तियांजिनकी कीमत 50,000 करोड़ रुपए से ज्यादा थीवक्फ के नाम पर जा सकती थीं। इससे न सिर्फ आर्थिक नुकसान होताबल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा हो सकता थाक्योंकि ऐसी सम्पत्तियों का दुरुपयोग देश के खिलाफ हो सकता था। साथ ही वक्फ बोर्ड की अनियंत्रित शक्तियां और बढ़ जातींजिससे आम लोगों की सम्पत्तियों पर भी गलत दावे हो सकते थे। जैसेविजयपुरा में 123 एकड़ जमीन और मुनंबम (केरल) में कई सम्पत्तियों पर वक्फ बोर्ड ने दावे किए थेजो शत्रु सम्पत्तियां थीं।

कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने 2005 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजा महमूदाबाद को हजारों करोड़ रुपए की सम्पत्तियां लौटाने में अहम भूमिका निभाई। इस प्रक्रिया में सलमान खुर्शीद की भूमिका निर्णायक थीजिन्होंने न सिर्फ कोर्ट में सुलेमान मियां का पक्ष मजबूती से रखाबल्कि 2010 में अध्यादेश को कमजोर करने के लिए मुस्लिम सांसदों का नेतृत्व कर सरकार पर दबाव बनाया। लेकिन वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 और शत्रु सम्पत्ति (संशोधन) अधिनियम 2017 ने ऐसी सम्पत्तियों को वक्फ बनने से रोकने के लिए सख्त कदम उठाए।

मोदी सरकार ने राजा महमूदाबाद की सम्पत्तियों को वापस करने से इन्कार कर दिया है। ये मामला कोर्ट में लंबित है और अब मौजूदा कानूनों के तहत इनका वापस राजा महमूदाबाद के वारिसों तक पहुंचना असंभव है। ऐसे में साफ है कि मोदी सरकार के लाए इन कानूनों ने न सिर्फ वक्फ बोर्ड की मनमानी पर लगाम लगाईबल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि शत्रु सम्पत्तियां देश के हित में रहें। मोदी सरकार का यह कदम न सिर्फ आर्थिक और कानूनी पारदर्शिता को बढ़ाते हैंबल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी मजबूत करते हैं।

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