सेक्स की उम्र 16 साल की जाए

सुप्रीम कोर्ट को न्याय-मित्र ने दी 'अहम' सलाह

 सेक्स की उम्र 16 साल की जाए

वोट डालने की उम्र भले ही 18 साल रहे

नई दिल्ली, 24 जुलाई (एजेंसियां)। लोकतंत्र को समझने और वोट डालने की उम्र भले ही 18 वर्ष तय हो, लेकिन सेक्स को समझने और यौन संबंधों में उतरने की उम्र 16 साल होनी चाहिए। न्याय मित्र (एमिकस क्यूरी) की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को यह सलाह दी गई है। यानी, मतदान की शुरुआत करने के दो साल पहले ही सेक्स की शुरुआत वैधानिक तौर पर की जा सकती है, ताकि ऐसा करने वाले पॉक्सो जैसे कानून से बचे रह सकें। ऐसा ही सुझाव एमिकस क्यूरी ने दिया है।

वरिष्ठ वकील एवं न्याय मित्र (एमिकस क्यूरी) इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि सहमति से यौन संबंध बनाने की कानूनी उम्र 18 से घटाकर 16 साल की जाएताकि किशोरों के बीच आपसी सहमति से बने संबंधों को अपराध न माना जाए। उन्होंने कहा कि वर्तमान कानून किशोरों की निजता के अधिकारों का उल्लंघन करता है और सामाजिक-सांस्कृतिक दबावों के कारण उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज होते हैं। जयसिंह ने अदालत से अपील की कि 1618 साल के किशोरों के बीच बने सहमति वाले यौन संबंधों को पॉक्सो और दुष्कर्म के कानूनों से बाहर रखा जाए। इंदिरा जयसिंह सुप्रीम कोर्ट में चल रहे निपुण सक्सेना बनाम भारत सरकार मामले में कोर्ट की सहायता कर रही हैं। उन्होंने अपनी दलील में कहा है कि 16 से 18 साल के किशोरों के बीच आपसी सहमति से बने यौन संबंधों को आपराधिक बनाना गलत है। यह प्रावधान पॉक्सो कानून 2012 और भारतीय दंड संहिता (आपीसी) की धारा 375 के तहत आता है।

जयसिंह ने दलील दी कि वर्तमान कानून किशोरों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को भी अपराध मानता है और यह उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि यह कानून सहमति वाले संबंधों को जबरदस्ती या शोषण जैसा मानता हैजबकि किशोरों में समझदारी और निर्णय लेने की क्षमता होती है। जयसिंह ने कहासहमति की उम्र 16 से 18 करने का कोई ठोस या वैज्ञानिक कारण नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले 70 वर्ष तक यह उम्र 16 ही थीलेकिन 2013 के आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम के बाद इसे बढ़ा दिया गयावह भी बिना किसी खुली बहस के। उन्होंने बताया कि जस्टिस वर्मा समिति ने भी सहमति की उम्र 16 साल ही बनाए रखने की सिफारिश की थी।

उन्होंने कहा कि आज के समय में किशोर पहले ही यौवनावस्था में पहुंच जाते हैं और अपने फैसले खुद लेने में सक्षम होते हैं। वे अपने मन से रोमांटिक और यौन संबंध बना सकते हैं। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण जैसे आंकड़े भी बताते हैं कि किशोरों में यौन संबंध बनाना कोई असामान्य बात नहीं है। जयसिंह ने आंकड़ों के हवाले से बताया कि 2017 से 2021 के बीच 1618 साल के किशोरों के खिलाफ पॉक्सो के मामलों में 180 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहाज्यादातर मामलों में अक्सर लड़की की मर्जी के खिलाफ शिकायत माता-पिता की ओर से दर्ज करवाई जाती हैखासकर जब मामला अंतरजातीय या अंतरधार्मिक संबंध का होता है। उन्होंने चेताया कि ऐसे मामलों को अपराध मानने से किशोर जोड़े डरकर छिपते हैंजल्दबाजी में शादी करते हैं या कानूनी संकट में पड़ जाते हैंजबकि उन्हें खुली बातचीत और यौन शिक्षा की जरूरत होती है।

Read More कांग्रेस की ९ लोकसभा सीटों पर जीत में कोई साजिश

इंदिरा जयसिंह ने सुझाव दिया कि कानून में क्लोज-इन-एज एक्सेप्शन यानि उम्र में नजदीकी का प्रावधान जोड़ा जाएजिससे 16 से 18 साल के किशोरों के बीच सहमति से बने यौन संबंधों को अपराध न माना जाए। उन्होंने कहाकिशोरों के बीच सहमति से बने यौन संबंधों को अपराध मानना न केवल अनुचित हैबल्कि संविधान के खिलाफ भी है। जयसिंह ने अंतरराष्ट्रीय नियमों और भारत के कानूनी फैसलों का भी जिक्र कियाजिनसे यह साबित होता है कि फैसले लेने की क्षमता सिर्फ उम्र पर आधारित नहीं होती।

Read More शत्रु की शैतानी और सेना की जांबाजी सुनेगा देश

उन्होंने ब्रिटेन के गिलिक मामले और भारत के पुट्टस्वामी मामले (गोपनीयता अधिकार से जुड़ा) का हवाला देते हुए कहास्वतंत्र निर्णय लेना निजता के अधिकार का हिस्सा है और यह अधिकार किशोरों को भी होना चाहिए। जयसिंह ने यह भी बताया कि बॉम्बेमद्रास और मेघालय जैसे हाईकोर्ट ने भी ऐसे मामलों में पॉक्सो के तहत सीधे मामले दर्ज होने पर आपत्ति जताई है। इन उच्च न्यायालयों ने कहा है कि सभी नाबालिगों के बीच यौन संबंध जबरदस्ती या शोषण नहीं होतेइसलिए कानून को सहमति और शोषण के बीच फर्क करना चाहिए। जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि 16 से 18 साल के किशोरों के बीच सहमति से बने यौन संबंधों को अपराध न माना जाए और उन्हें पॉक्सो या दुष्कर्म के कानून से बाहर रखा जाए। उन्होंने पॉक्सो की धारा 19 के तहत अनिवार्य रिपोर्टिंग की समीक्षा की मांग कीक्योंकि यह प्रावधान किशोरों को सुरक्षित चिकित्सा सहायता लेने से रोकता है। उन्होंने कहा, यौन स्वायत्तता मानव गरिमा का हिस्सा है। किशोरों को अपने शरीर से जुड़े फैसले लेने का अधिकार न देना संविधान के अनुच्छेद 141519 और 21 का उल्लंघन है।

Read More  हमारे लिए दोस्ती हमेशा पहले आती है: मोदी

#AmicusCuriae,#SupremeCourt, #LegalAdvice, #Judiciary, #LawyersIndependence, #EDSummons, #SCDirections,