यूएन ने मानी भारत की ताकत: वीटो पावर की मांग को संयुक्त राष्ट्र का समर्थन

यूएन ने मानी भारत की ताकत: वीटो पावर की मांग को संयुक्त राष्ट्र का समर्थन

न्यूयॉर्क/नई दिल्ली, 23 सितंबर (एजेंसियां)। संयुक्त राष्ट्र के मंच पर भारत की लंबी समय से चली आ रही मांग को आखिरकार मजबूती मिलती दिखाई दे रही है। सुरक्षा परिषद में सुधार और स्थायी सदस्यता को लेकर भारत के प्रयास अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचते नजर आ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेस ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि बदलते वैश्विक हालात और विश्व राजनीति की नई प्राथमिकताओं के बीच अब पुरानी व्यवस्थाओं को कायम रखना संभव नहीं है। गुटेरेस ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र को अधिक चुस्त, प्रभावी और प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने के लिए बड़े सुधार आवश्यक हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत लगातार स्थायी सदस्यता और वीटो पावर की मांग उठा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र के दौरान गुटेरेस ने कहा कि सुरक्षा परिषद की संरचना उस दौर में बनी थी जब दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की तबाही से उबर रही थी। उस समय अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन को स्थायी सदस्यता और वीटो का विशेषाधिकार दिया गया था। लेकिन मौजूदा परिस्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं। भारत जैसे देशों की ताकत और वैश्विक भूमिका को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। महासचिव का यह बयान भारत की कूटनीतिक सफलता और उसकी बढ़ती ताकत का स्पष्ट प्रमाण माना जा रहा है।

भारत पिछले कई दशकों से यह मांग करता रहा है कि सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता उसे भी मिले, क्योंकि उसकी जनसंख्या, अर्थव्यवस्था, सैन्य क्षमता और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में योगदान इसे उस स्तर पर खड़ा करता है जहां उसे नज़रअंदाज़ करना असंभव है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के नाते भारत ने हमेशा वैश्विक शांति, विकास और सहयोग का समर्थन किया है। चाहे वह शांति सैनिकों की तैनाती का मामला हो या फिर अंतरराष्ट्रीय संकटों में मध्यस्थता का, भारत की भूमिका हमेशा रचनात्मक और सकारात्मक रही है।

गुटेरेस के हालिया बयान ने इस बहस को और धार दी है। उन्होंने साफ कहा कि यदि 1945 की व्यवस्थाओं के आधार पर ही संयुक्त राष्ट्र को संचालित करते रहे, तो 2025 की दुनिया में यह संस्था अप्रासंगिक हो जाएगी। उनका मानना है कि नई सदी की चुनौतियों से निपटने के लिए अधिक व्यापक प्रतिनिधित्व की जरूरत है और इसमें भारत की स्थायी सदस्यता स्वाभाविक रूप से शामिल होनी चाहिए।

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हालांकि, सुरक्षा परिषद में सुधार का रास्ता इतना आसान नहीं है। नियमों के अनुसार, किसी भी बदलाव के लिए दो-तिहाई बहुमत और सभी स्थायी सदस्यों की सहमति जरूरी है। चीन और पाकिस्तान लगातार भारत की दावेदारी का विरोध करते रहे हैं। चीन का मानना है कि भारत को स्थायी सदस्यता देने से एशिया में शक्ति संतुलन बिगड़ जाएगा। वहीं पाकिस्तान का विरोध भारत-पाक संबंधों के तनाव और कश्मीर मुद्दे के कारण है। इसके बावजूद अमेरिका, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों ने अलग-अलग मौकों पर भारत की दावेदारी का समर्थन किया है।

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विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में राज्यसभा में कहा था कि भारत अब स्थायी सदस्यता और वीटो पावर के बिना अधूरा प्रतिनिधित्व झेलने को तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत का वैश्विक योगदान, आर्थिक मजबूती और रणनीतिक स्थिति उसे सुरक्षा परिषद का स्वाभाविक सदस्य बनाती है।

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हाल ही में अफ्रीका शिखर सम्मेलन में भी भारत की दावेदारी को समर्थन मिला। कई अफ्रीकी देशों ने माना कि यदि संयुक्त राष्ट्र को वास्तव में संतुलित और प्रभावी बनाना है तो भारत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसी तरह लैटिन अमेरिकी देशों—जर्मनी, जापान और ब्राजील—ने भी भारत की मांग का समर्थन किया है। यह देश लंबे समय से सुरक्षा परिषद के विस्तार और नए सदस्यों को शामिल करने की वकालत करते रहे हैं।

भारत की दावेदारी को मजबूती देने वाला एक बड़ा कारण यह भी है कि वह आज दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई बड़ी अर्थव्यवस्था है। तकनीकी विकास, अंतरिक्ष कार्यक्रम, ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक व्यापार में भारत की स्थिति लगातार मजबूत हो रही है। इसके अलावा भारत ने कोविड-19 महामारी के दौरान जिस तरह दुनिया के कई देशों को दवाइयाँ और वैक्सीन उपलब्ध कराईं, उसने भी उसकी वैश्विक छवि को और ऊंचा किया।

संयुक्त राष्ट्र के मंच पर गुटेरेस का यह बयान भारत के लिए बड़ा कूटनीतिक लाभ माना जा रहा है। हालांकि यह तय नहीं है कि सुधार की प्रक्रिया कितनी जल्दी पूरी होगी, लेकिन इतना साफ है कि अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत की भूमिका को अनदेखा नहीं कर सकता। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की स्थायी सदस्यता का मुद्दा धीरे-धीरे वैश्विक सहमति की ओर बढ़ रहा है।

भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार यह बात कही है कि संयुक्त राष्ट्र को समय के साथ बदलना होगा। मोदी का तर्क है कि यदि वैश्विक संस्थाएँ वर्तमान युग की जरूरतों के अनुसार खुद को ढालने में विफल रहती हैं, तो उनकी प्रासंगिकता पर सवाल उठने लगेंगे। मोदी ने यह भी कहा है कि भारत की दावेदारी सिर्फ अपने हितों के लिए नहीं बल्कि उन सभी विकासशील और उभरते देशों की आवाज़ है, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता।

विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलने से एशिया और वैश्विक राजनीति में शक्ति संतुलन का नया दौर शुरू होगा। यह न केवल भारत की स्थिति को मजबूत करेगा बल्कि विश्व शांति और स्थिरता के प्रयासों को भी नया आयाम देगा।

संयुक्त राष्ट्र महासभा के मौजूदा सत्र में गुटेरेस की टिप्पणी ने इस मुद्दे को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है। अब दुनिया की निगाह इस बात पर टिकी है कि सुधार की दिशा में ठोस कदम कब और कैसे उठाए जाते हैं। भारत के लिए यह कूटनीतिक लड़ाई लंबी जरूर है, लेकिन इस बार उसके पक्ष में वैश्विक समर्थन पहले से कहीं अधिक मजबूत दिखाई दे रहा है।

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