विज्ञान और तकनीक के शोध में अटका रहे रोड़ा
महिला सशक्तिकरण की असलियत का खुलासा
फेलोशिप के परिणाम में जानबूझकर कर रहे देरी
नई दिल्ली, 24 सितंबर (एजेंसियां)। महिला सशक्तिकरण को लेकर केंद्र सरकार द्वारा किया जाने वाला दावा खोखला ही साबित हो रहा है। विज्ञान और तकनीक के शोध में महिलाओं को आगे बढ़ने में खुद केंद्र सरकार का विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय रोड़े अंटका रहा है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए लाई गई दो प्रमुख फेलोशिप योजनाओं के रिजल्ट मंत्रालय ने 15 महीने से रोक रखे हैं। इस तरह के रवैये से विज्ञान और इंजीनियरिंग क्षेत्र में महिलाओं को वाइज़ पीएचडी और वाइज़ पोस्ट डॉक्टरल फेलोशिप नहीं मिल पा रही है और उनका पूरा करियर अधर में पड़ा हुआ है। फेलोशिप परीक्षा के परिणाम 15 महीने से मंत्रालय के गलियारे में भटक रहे हैं। महिला सशक्तिकरण की नीतियों का सत्ता गलियारे में इस हाल के कारण पहली पीढ़ी की सैकड़ों महत्वाकांक्षी महिला वैज्ञानिक अपने शैक्षणिक भविष्य को लेकर अधर में हैं।
जिन लोगों ने यह फेलोशिप हासिल की है, उन्हें भी शोध अनुदान में 18 महीने तक की देरी के कारण संघर्ष करना पड़ रहा है। यह देरी ऐसे समय में हुई है जब भारत में अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) गतिविधियों में सीधे तौर पर लगे कुल 3,62,000 कर्मियों में से महिलाओं की संख्या केवल 18.6 प्रतिशत है। करियर में रुकावटों के कारण महिला वैज्ञानिकों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के डीएसटी के प्रयासों ने उनकी परेशानियों को और बढ़ा दिया है। 2018 में वाइज़-नॉलेज इन्वॉल्वमेंट इन रिसर्च एडवांसमेंट थ्रू नर्चरिंग (वाइज़-किरन) पहल के तहत लिंग-आधारित फेलोशिप के पुनर्गठन और जनवरी 2025 से दो अन्य कार्यक्रमों के साथ इसके विज्ञान धारा योजना में विलय के कारण धन वितरण और फेलोशिप परिणामों में देरी हुई है।
वर्ष 2023-24 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 2018 में शुरू की गई वाइज़-किरन पहल के तहत वाइज़-पीएचडी में वुमेन इन साइंस-ए कार्यक्रम का पुनर्गठन किया। यह पहल पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण करियर में रुकावट का सामना कर रही महिलाओं की मदद के लिए शुरू की गई थी। इस योजना में साक्षात्कार शामिल था, लेकिन वाइज़-पीएचडी में चयन के लिए कोई साक्षात्कार नहीं है। वाइज़-पीएचडी योजना के तहत, विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त 27 से 45 वर्ष की आयु की महिलाएं बुनियादी और अनुप्रयुक्त विज्ञान में डॉक्टरेट अनुसंधान करने के लिए पांच वर्षों में 35.69 लाख तक प्राप्त कर सकती हैं। वाइज़-पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप योजना स्टेम में पीएचडी प्राप्त 27 से 60 वर्ष की आयु की महिलाओं को प्रयोगशाला-आधारित अनुसंधान के लिए तीन वर्षों में 42.6 लाख तक की सहायता प्रदान करती है।
दोनों फेलोशिप के लिए दो चरणों वाली चयन प्रक्रिया अपनाई जाती है। उम्मीदवारों द्वारा प्रस्तुत परियोजना प्रस्तावों की प्रारंभिक स्क्रीनिंग, उसके बाद विषय विशेषज्ञ समितियों द्वारा मूल्यांकन। प्रारंभिक स्क्रीनिंग में सफल होने वाले वाइज़-पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप आवेदकों को साक्षात्कार भी देना होगा। हालांकि सरकार ने विज्ञान और अनुसंधान के लिए बजट आवंटन में लगातार वृद्धि की है, लेकिन मंत्रालय के अनुसंधान एवं विकास आंकड़े बताते हैं कि भारत ने 2020-21 में अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का महज 0.64 प्रतिशत ही अनुसंधान एवं विकास पर खर्च किया, जबकि अन्य विकासशील ब्रिक्स देशों ब्राजील (1.3 प्रतिशत), रूसी संघ (1.1 प्रतिशत), चीन (2.4 प्रतिशत) खर्च हुई। दक्षिण अफ्रीका और भारत की स्थिति समान रही।
वर्ष 2023-24 में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने वाइज़-पीएचडी के अंतर्गत 100 परियोजनाओं को मंजूरी दी, जो 2024-25 में बढ़कर 140 हो गई। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने 2023-24 में वाइज़-पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप के अंतर्गत 108 परियोजनाओं और 2024-25 में 159 परियोजनाओं की सिफारिश की। मंत्रालय ने तीन प्रमुख योजनाओं विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, संस्थागत एवं मानव क्षमता निर्माण, अनुसंधान एवं विकास और नवाचार प्रौद्योगिकी विकास एवं परिनियोजन के अंतर्गत आने वाले सभी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) कार्यक्रमों को विज्ञान धारा योजना में विलय कर दिया है। 8 अगस्त को जारी एक कार्यालय ज्ञापन में, डीएसटी के नीति समन्वय एवं कार्यक्रम प्रबंधन (पीसीपीएम) प्रभाग की ज्योति शर्मा ने धन की सीमित उपलब्धता का हवाला देते हुए, विज्ञान धारा योजना के अंतर्गत नई परियोजनाओं के लिए धनराशि को अस्थायी रूप से निलंबित करने का आदेश दिया।
केरल के कालीकट की एक महिला उम्मीदवार सात महीने से अपने वाइज़-पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप साक्षात्कार परिणाम का इंतजार कर रही हैं। उन्होंने अगस्त 2024 में आवेदन किया था, जनवरी 2025 में शॉर्टलिस्ट हुई और फरवरी 2025 में मंत्रालय के पैनल के सामने साक्षात्कार और प्रस्तुति दी। लंबे विलंब के कारण शोध की योजना बनाना मुश्किल हो रहा है। नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा, तेजी से बदलते तकनीकी परिदृश्य में, हो सकता है कि शुरू होने तक हमारा प्रस्तावित कार्य नया न रहे। चरणों के बीच महीनों इंतजार करने से हम अपने प्रस्ताव से संपर्क खो देते हैं और दोबारा तैयारी करने में समय बर्बाद होता है।
उन्होंने बताया कि वाइज़-पीएचडी के लिए आवेदन करने वाली ज्यादातर महिलाएं 30 की उम्र के आसपास होती हैं और उनके पास पारिवारिक जिम्मेदारियां होती हैं। समय सीमा स्पष्ट न होने पर, तीन साल की शोध यात्रा की योजना बनाना मुश्किल होता है। इसी तरह जम्मू की एक युवती, जो वैज्ञानिक बनने और समाज में योगदान देने की इच्छा रखती है, पिछले साल जून में फेलोशिप के लिए आवेदन करने के बाद भी अपने वाइज़-पीएचडी परिणामों का इंतजार कर रही हैं। वाइज़-पीएचडी फेलोशिप पांच विषयों में शोध को बढ़ावा देती है भौतिक और गणितीय विज्ञान, रसायनिक विज्ञान, जीवन विज्ञान, पृथ्वी और वायुमंडलीय विज्ञान एवं इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी। जम्मू की इस युवती ने कहा, मैंने इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में शोध के लिए आवेदन किया था। 15 महीने हो गए हैं और हमें अभी तक परिणाम नहीं मिले हैं। प्रस्ताव तैयार करने में एक साल से ज़्यादा समय लगता है, लेकिन नियम कहते हैं कि पीएचडी पंजीकरण डीएसटी अनुशंसा पत्र के छह महीने के भीतर हो जाना चाहिए। इन देरी और नए आवेदन न आने के कारण, दूसरे वर्ष के कई छात्र फेलोशिप से चूक जाएंगे क्योंकि वे प्रस्तावों के अगले आवेदन से पहले ही तीसरे वर्ष में प्रवेश कर जाएंगे।
वाइज़-पीएचडी कार्यक्रम उन महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करता है जो पीएचडी के लिए पंजीकरण कराना चाहती हैं या जो अपनी पीएचडी के पहले दो वर्षों में हैं और जिनके पास फेलोशिप सहायता नहीं है। जो आवेदक अपने दूसरे वर्ष में आवेदन करते हैं, वे पात्र रहते हैं, भले ही वे परिणाम घोषित होने तक तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुके हों। लेकिन जो आवेदक अपनी पीएचडी के तीसरे, चौथे या पांचवें वर्ष में हैं, वे आवेदन नहीं कर सकते। शोधकर्ताओं के अनुसार, वुमेन इन साइंस-ए कार्यक्रम के तहत प्रस्तावों के लिए आमंत्रण साल भर खुले रहते थे और परिणाम छह महीने के भीतर घोषित किए जाते थे। वाइज़ पीएचडी और वाइज़ पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप के लिए अंतिम आमंत्रण क्रमशः दिसंबर 2024 और फरवरी 2025 में लिए गए थे, लेकिन परिणाम अभी भी लंबित हैं। परिणामों में देरी स्पष्ट से रूप से मंत्रालय और सरकार की बेरुखी प्रदर्शित कर रही है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के फेलोशिप के तहत मौजूदा शोधकर्ताओं को भी वित्त पोषण में देरी के कारण काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। कश्मीर के एक सरकारी विश्वविद्यालय में वुमेन इन साइंस-ए फेलोशिप के तहत भौतिकी परियोजना वैज्ञानिक, अस्मा ताहिर को पिछले नौ महीनों से अपनी मासिक फेलोशिप और एचआरए नहीं मिला है, जबकि उन्होंने परियोजना के सभी काम पूरे कर लिए हैं। वित्तीय कठिनाइयों के बावजूद, वह चार शोधपत्र प्रकाशित करने में सफल रही हैं, और दो और समीक्षाधीन हैं। उन्होंने कहा, मैं अपने शोध के पांचवें वर्ष में हूं। यह दुखद है कि मुझे इस वर्ष के लिए कोई धनराशि प्राप्त किए बिना ही दिसंबर तक परियोजना पूरी करनी होगी।
दिल्ली स्थित एक केंद्रीय सरकारी विश्वविद्यालय में एक शोधकर्ता ने अपने दूसरे वर्ष में वाइज़-पीएचडी फेलोशिप के लिए आवेदन किया और जनवरी 2024 में उसका चयन हो गया, तब तक वह अपने तीसरे वर्ष में थी। हालांकि, उन्हें फेलोशिप अगस्त 2024 में ही मिलनी शुरू हुई। उन्होंने कहा, दिसंबर 2024 में मुझे अपनी आखिरी मासिक फेलोशिप मिली। तब से मैं 2025 के लिए मिलने वाले धन का इंतजार कर रही हूं। इस देरी ने मेरे शोध को बुरी तरह प्रभावित किया है, मैं उपकरण नहीं खरीद पा रही हूं और न ही अपना काम ठीक से जारी रख पा रही हूं। यह अनिश्चितता मेरे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल रही है।
एनआईटी त्रिची की डॉ. अंजू थॉमस ने अपनी डीएसटी वाइज-पीडीएफ फेलोशिप राशि में देरी के लिए विज्ञान धारा योजना को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने 30 दिसंबर, 2024 को अपने मेजबान संस्थान में दाखिला लिया और उनके पहले वर्ष के लिए 15.48 लाख स्वीकृत हुए, लेकिन नई योजना के लागू होने के कारण इसका अधिकांश हिस्सा मंत्रालय को वापस कर दिया गया। केवल उनकी फेलोशिप सैलरी और 2.42 लाख का एचआरए ही रखा गया। अप्रैल 2025 के बाद से उन्हें कोई और राशि नहीं मिली है। उन्होंने बताया, यह फ़ेलोशिप मेरी आय का एकमात्र स्रोत है। देरी के कारण मुझे गंभीर वित्तीय कठिनाई हुई है और मैं उपकरण खरीदने या डेटा एकत्र करने में असमर्थ रही, जिसके परिणामस्वरूप शोध का समय बर्बाद हुआ। थॉमस, जो वर्तमान में अपने शोध पर ध्यान केंद्रित करने के लिए वीआईटी वेल्लोर में सहायक प्रोफेसर के रूप में अपनी नौकरी से छुट्टी पर हैं, ने कहा कि धन की कमी के कारण उनका पोस्टडॉक्टरल शोध विलंबित हो रहा है। सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (सीएसटीईपी) की डॉ. इंदु के. मूर्ति ने कहा कि अनुसंधान निधि में प्रणालीगत देरी महिलाओं को आवास, परिवार नियोजन या आगे की पढ़ाई जैसे जीवन के फैसले टालने पर मजबूर करती है। मूर्ति, जो पहले भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु में सलाहकार वैज्ञानिक के रूप में काम कर चुके हैं, ने कहा, भारत के अनुसंधान एवं विकास कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 18.6 प्रतिशत है, ऐसे अवरोध उनकी कमतर उपस्थिति का संकेत देते हैं और उन्हें अकादमिक क्षेत्र से बाहर धकेलने का जोखिम पैदा करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्टेम में देश के लिए प्रतिभा, नवाचार और विविधता की हानि होती है।
मंत्रालय या विभाग के अधिकारी फंड वितरण में देरी के कारणों के बारे में पूछे गए सवालों का कोई जवाब नहीं देते। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने 31 जुलाई 2025 को राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में कहा था कि पिछले तीन वर्षों के दौरान नए फंड प्रवाह में बदलाव के कारण फेलोशिप वितरण में कठिनाइयां आई हैं। केंद्र सरकार के इस शॉर्ट-कट जवाब से महिला सशक्तिकरण की असलियत का जवाब स्पष्ट हो गया।
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