पर्यटकों के लिए 40 पर्यटन स्थल खोलने की मांग

पर्यटकों के लिए 40 पर्यटन स्थल खोलने की मांग

जम्मू30 सितंबर (ब्यूरो)। पांच महीनों से पर्यटकों की राह ताक रहे जम्मू कश्मीर को ऑपरेशन सिंदूर और फिर बाढ़ ने जो जख्म दिए वे पहलगाम नरसंहार के जख्मों पर नमक की तरह थे। प्रदेश के वे लोग अभी तब इस त्रासदी से उबर नहीं पााए हैं जो पूरी तरह से पर्यटन पर निर्भर हैं।

कई महीनों से कश्मीर के कुछ सबसे पसंदीदा स्थलजैसे अरु घाटीपादशाही पार्कदारा शिकोह गार्डन और कमान पोस्टखाली पड़े हैं। होटलों और हाउसबोटों में पर्यटकों की रिकार्ड कमी का सामना करना पड़ रहा है। शिकारा मालिक डल झील के घाटों पर बेकार बैठे हैं। इसका असर दूर-दूर तक महसूस किया जा रहा है। यह असर कारीगरों से लेकर टट्टू वालों तक पर है। पहलगाम नरसंहार के उपरांत लगभग 40 पर्यटन स्थलों के बंद होने से आर्थिक संकट और गहरा गया। चुनौतियां अभी भी गंभीर हैं। होटलों में बुकिंग 20 प्रतिशत से भी कम हो गई हैऔर पर्यटकों का आगमन बहुत कम हो गया है। ट्रैवल एजेंट मानते हैं कि जब ये पसंदीदा पर्यटन स्थल अभी भी बंद हैंतो वे पर्यटकों को मना नहीं सकते। वे चेतावनी देते हैं कि बिना पहुंच के प्रचार काम नहीं करेगा। इसलिए सरकार को तेजी से कदम उठाने चाहिएऔर अधिक सर्किट खोलने चाहिएसुरक्षा और बुनियादी ढांचे में निवेश करना चाहिएऔर ऐसे लक्षित अभियान शुरू करने चाहिए जो पर्यटकों को याद दिलाएं कि कश्मीर अभी भी भारतीय पर्यटन का मुकुट रत्न क्यों है।

ऐसे में विश्व पर्यटन दिवस परजम्मू कश्मीर प्रशासन ने केंद्र शासित प्रदेश के 12 प्रमुख पर्यटन स्थलों को फिर से खोलने की घोषणा करने के लिए एक उपयुक्त समय चुना था। यह एक ऐसा निर्णय था जो 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद से स्तब्ध पड़े उस क्षेत्र के लिए आशा की किरण जगाता हैजिसने न केवल लोगों की जान लीबल्कि घाटी के पर्यटन जगत की धड़कन भी बंद कर दी थी।

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा विस्तृत सुरक्षा समीक्षा के बाद पर्यटन स्थलों को फिर से खोलने की घोषणापुनरुद्धार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री से लेकर होटल और ट्रैवल एसोसिएशन तकसभी हितधारकों ने इस फैसले का स्वागत किया हैलेकिन जोर देकर कहा है कि यह तो बस शुरुआत है। उनका तर्क सही है कि जब तक सभी पर्यटन स्थलों को फिर से नहीं खोला जाता और उनका सक्रिय रूप से प्रचार नहीं किया जातापर्यटक आने से कतराएंगे। नतीजतनघाटी को 20222023 और 2024 की रौनक वापस पाने के लिए संघर्ष करना पड़ेगाजब पर्यटकों की संख्या ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गई थी।

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अगर 22 अप्रैल के नरसंहार के बाद की परिस्थितियों को देखें तो जो दांव पर लगा है वह राजस्व से कहीं ज्यादा है। कश्मीर में पर्यटनहोटल व्यवसायियों से लेकर फेरीवालों तकऔर गाइडों से लेकर कारीगरों तकआबादी के एक बड़े हिस्से का भरण-पोषण करता है। यह धारणा का भी मामला है। हर पर्यटक जो बर्फीली चोटियोंबगीचों और गर्मजोशी भरे आतिथ्य की यादें लेकर घर लौटता हैवह शांति और सामान्य स्थिति का दूत बन जाता हैऔर खुद को और दूसरों को फिर से लौटने के लिए प्रेरित करता है। इसलिएइन स्थलों को फिर से खोलना एक नौकरशाही निर्णय से कहीं बढ़कर है। यह एक दावा है कि भय को घाटी के भविष्य को तय करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। ऐसे में अब कश्मीरियों को उम्मीद यही है कि पर्यटकों का आना-जाना फिर से शुरू होगाजिससे आत्मविश्वास और आजीविका दोनों बहाल होंगे।

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