90 प्रतिशत गिरे बनावटी हीरे के भाव
नकली हीरा बनाने वाली मशीनों की बाढ़ है बाजार में
लखनऊ, 10 अक्टूबर (एजेंसियां)। लैब में तैयार होने वाले कृत्रिम हीरों से सराफा बाजार पटा पड़ा है। नकली हीरे इतने वास्तविक दिखते हैं कि असली और नकली में भेद कर पाना बेहद मुश्किल हो जाता है। आईआईटी द्वारा तैयार 5 हजार रिएक्टर सूरत सहित उत्तर प्रदेश के कई शहरों में दिनरात नकली हीरे बना रहे हैं। हाल यह हो गया है कि महज चार साल में एक कैरेट कृत्रिम हीरे के दाम 4 लाख से गिरकर 25 हजार पर आ गए। असली हीरों का बाजार भी फिर से दमक उठा है। इसका नतीजा है कि आठ महीने में असली हीरों ने 15 फीसदी का मुनाफा दिया है।
एक तरफ सोना-चांदी रोजाना कीमतों के नए रिकार्ड गढ़ रहे हैं तो दूसरी तरफ हीरे की मंद होती चमक भी लौट रही है। पिछले साल हीरा बाजार के लिए बेहद उतार चढ़ाव भरे रहे। वर्ष 2018 में पहली बार लैब में तैयार किया गया हीरा दुनिया के सामने आया। वर्ष 2020 में एक कैरेट के कृत्रिम और एक कैरेट के असली हीरे के दाम 4 लाख रुपए थे। बीच में यही असली हीरा गिरकर 3 लाख से 3.25 लाख पर आ गया था लेकिन 4 लाख वाला नकली हीरा 25 हजार रुपए में आ गिरा। अगले एक साल में ये 15 से 20 हजार रुपए में आने के आसार हैं। असली हीरे से बढ़ते प्रेम का नतीजा है कि कुल बाजार में 20 फीसदी हिस्सेदारी डायमंड ज्वैलरी की है।
करीब दो साल पहले वित्त मंत्रालय ने आईआईटी चेन्नई को लैब में हीरे तैयार वाले रिएक्टर का प्रोजेक्ट दिया था। फिर आईआईटी कानपुर, आईआईटी बाम्बे सहित अन्य आईआईटी में भी इसे बनाने की होड़ मची। उनकी तकनीक से पहले बेहद महंगा रियेक्टर अब दो करोड़ का बिक रहा है। 50 लाख निवेश कर शेष रकम लोन लेकर सूरत में हजारों मशीनें लगी हैं। यूपी, दिल्ली, राजस्थान और महाराष्ट्र में भी ये मशीनें धड़ल्ले से लग रही हैं। अब डिमांड से ज्यादा सप्लाई हो गई। पिछले महीने हांगकांग में आयोजित दुनिया के सबसे बड़े ज्वैलरी शो में सोने की ज्वैलरी के साथ लैब वाला नकली हीरा फ्री में देने की घोषणा ने इस बाजार की हालत और पस्त कर दी। अब तो हीरों को सर्टिफाई करने वाले अंतरराष्ट्रीय रत्न संस्थान (जीआईए) ने फोर सी ग्रेडिंग को लैब ग्रोन डायमंड यानी कृत्रिम डायमंड को सर्टिफाई करना बंद कर दिया है। हीरों का प्रमाणीकरण न होने की वजह से इनकी कीमतों में इतनी गिरावट आई है।
प्राकृतिक हीरा धरती के गर्भ में 150 किलोमीटर नीचे बेहद उच्च तापमान में 10 लाख साल में तैयार होता है। भूकंप व ज्वालामुखी फटने से मैग्मा के साथ ऊपर आता है। इसे दस किलोमीटर नीचे खदान से निकाला जाता है। इन कच्चे हीरों को बाहर निकालकर तराशा जाता है। कटिंग व पॉलिश के बाद ये अलग-अलग रूप में तैयार होते हैं। जबकि नकली हीरे लैब में तैयार होते हैं, इसीलिए इन्हें शॉर्ट में एलजीडी भी कहा जाता है। ये दो तरीके से लैब में बनते हैं। पहला हाई प्रेशर हाई टेम्परेचर (एचपीएचटी) और दूसरा केमिकल वेपर डिस्पोजिशन (सीबीडी)। ये डायमंड का रिएक्टर होता है, जिसमें इसे तैयार किया जाता है। इन रिएक्टरों से एक हीरा 7 से 15 दिन में बन जाता है।
असली और नकली हीरे में पहचान कर पाना बेहद मुश्किल है। असली के नाम पर नकली हीरा कोई न थमा दे, इससे बचने के लिए सर्टिफिकेट जरूर लेना चाहिए, जिसमें साफ-साफ नैचुरल डायमंड लिखा हो। भरोसेमंद और साख वाले ज्वैलर्स से ही हीरा खरीदना चाहिए, जिसके पास हीरे की पहचान करने वाला हाईटेक माइक्रोस्कोप हो।
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