संघ शताब्दी वर्ष में पंच परिवर्तन यात्रा का लखनऊ आगमन, संगोष्ठी में आत्मपरिवर्तन का संदेश गूंजा
यात्रा का पहला चरण पूरा, समाज में संगठन और राष्ट्र निर्माण का संदेश फैलाने की प्रेरणा
लखनऊ, 13 अक्टूबर 2025। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में निकली “पंच परिवर्तन यात्रा” पांच सौ किलोमीटर की दूरी तय कर सोमवार को लखनऊ पहुंची। राजधानी के दुबग्गा क्षेत्र में भारतीय केसरिया वाहिनी सहित तमाम हिंदूवादी संगठनों ने यात्रा का भव्य स्वागत किया। स्वागत समारोह के बाद रथयात्रा का विशाल काफिला अलीगंज सेक्टर Q स्थित सरस्वती शिशु मंदिर प्रांगण में पहुँचा। रथयात्रा में सैकड़ों वाहन शामिल थे, जिन्होंने शहरभर में उत्साह और श्रद्धा का माहौल उत्पन्न किया।
भारतीय केसरिया वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज श्रीवास्तव ने बताया कि यह यात्रा 3 अक्टूबर को दिल्ली के जंतर मंतर से प्रारंभ हुई थी। यात्रा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अनेक जनपदों से होकर लखनऊ पहुँची और इसी के साथ पहले चरण का समापन हुआ। उन्होंने यह भी बताया कि यात्रा का दूसरा चरण जल्द ही घोषित किया जाएगा, जिसमें और अधिक जनपदों और समुदायों को शामिल किया जाएगा।
लखनऊ आगमन पर यात्रा के पहले चरण के समापन अवसर पर भारतीय केसरिया वाहिनी द्वारा विशेष “विचार संगोष्ठी” का आयोजन सरस्वती शिशु मंदिर, रायपुरवा, सेक्टर Q, अलीगंज में किया गया। इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य संघ के पाँच उद्देश्यों को समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुँचाना और संगठन के विचारों को नई दिशा देना था। आयोजकों के अनुसार, यह कार्यक्रम केवल एक सभा नहीं, बल्कि समाज में राष्ट्र निर्माण, संगठनात्मक विस्तार और सांस्कृतिक चेतना को सशक्त बनाने वाला आयोजन था।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राष्ट्रीय सह संगठन सचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना एवं पूर्व प्रांत प्रचारक (अवध प्रांत) संजय हर्ष जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने अपने उद्बोधन में संघ के मूल संदेश और पंच परिवर्तन के महत्व को रेखांकित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रभु नारायण श्रीवास्तव जी, पूर्व प्रांत संघ चालक (अवध प्रांत) एवं महामना मालवीय मिशन के संस्थापक सदस्य ने की।
यात्रा के पहले चरण के समापन पर भारतीय केसरिया वाहिनी के साथ-साथ भारत-तिब्बत सहयोग मंच, भारतीय श्रमिक कामगार कर्मचारी महासंघ, विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के सैकड़ों कार्यकर्ता भी उपस्थित थे। उन्होंने मिलकर यात्रा और संगोष्ठी को भव्य बनाने में योगदान दिया।
संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि संघ का पंच परिवर्तन केवल एक विषय नहीं है, बल्कि एक जीवंत साधना है। यह हमें यह स्मरण कराता है कि परिवर्तन का आरंभ व्यक्ति से होता है, बाहर से नहीं। जब व्यक्ति अपने भीतर अनुशासन, सेवा और समर्पण का भाव जगाता है, तभी परिवार में सौहार्द आता है, समाज में समरसता फैलती है, और राष्ट्र सशक्त बनता है।
संघ का यह पंच परिवर्तन हमें यह भी सिखाता है कि आत्मपरिवर्तन के बिना समाजपरिवर्तन संभव नहीं। व्यक्ति का आचरण ही समाज का दर्पण है। जब हम अपने व्यवहार, अपनी वाणी और अपने विचारों को शुद्ध करते हैं, तो वही शुद्धता समाज में फैलती है। पंच परिवर्तन यह भी दर्शाता है कि संगठन ही शक्ति है। जब हम संगठित होकर राष्ट्र के हित में कार्य करते हैं, तो असंभव भी संभव हो जाता है। संघ इस परिवर्तन को किसी आंदोलन के रूप में नहीं, बल्कि एक तपस्या और साधना के रूप में देखता है।
वक्ताओं ने उपस्थित लोगों को यह संदेश भी दिया कि आज भारत को फिर से विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने का समय आ गया है। यह तभी संभव होगा जब हम सब मिलकर पंच परिवर्तन के मार्ग पर चलें — अपने भीतर परिवर्तन लाएँ, अपने परिवेश को प्रेरित करें, और समाज को नवचेतना से आलोकित करें। इस संदेश के साथ सभी उपस्थितों से यह संकल्प लिया गया कि संघ के इस पंच परिवर्तन को अपने जीवन में उतारा जाएगा और राष्ट्र को आत्मविश्वास, आत्मबल और आत्मगौरव से भर दिया जाएगा।
भारतीय केसरिया वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि यह संगोष्ठी संघ शताब्दी वर्ष के ऐतिहासिक क्षणों को समर्पित है। उन्होंने यह भी कहा कि पंच परिवर्तन यात्रा समाज में राष्ट्रीय चेतना और संगठनात्मक एकता का सशक्त प्रतीक बनेगी।