बांग्लादेशी सेना की जगह इस्लामी मिलिशिया लेगी जगह
बांग्लादेश में एक गंभीर और सुनियोजित साजिश का खुलासा
यूनुस की शैतानी परियोजना को सोरोस-गिरोह की मदद
शुभ-लाभ चिंता
बांग्लादेश में एक गंभीर और सुनियोजित साजिश का खुलासा हुआ है। राजनीतिक बयानबाजी और भेदभाव-विरोधी मुखौटे के पीछे, मुहम्मद यूनुस ने शैतानी परियोजना शुरू की है जो दक्षिण एशिया में सबसे गंभीर सुरक्षा संकट को जन्म दे सकती है। बांग्लादेश में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी आर्मी (आईआरए) के गठन का काम चल रहा है, जिसका उद्देश्य बांग्लादेशी सेना की जगह यूनुस और उसके इस्लामी सहयोगियों के प्रति वफादार मिलिशिया को स्थापित करना और पड़ोसी देश खासकर भारत में इस्लामिक खुराफातों को बढ़ावा देना है।
इस्लामिक रिवोल्यूशनरी आर्मी के गठन की कवायद कट्टरपंथी इस्लामवाद, विदेशी खुफिया साठगांठ और नागरिक नेटवर्क के सैन्यीकरण के सुनियोजित प्रयासों का खतरनाक संगम है। अगर इसे रोका नहीं गया, तो इसके परिणाम बांग्लादेश को एक उदार मुस्लिम लोकतंत्र से दक्षिण एशिया में जेहादियों के विस्तार के लिए एक लॉन्चपैड में बदलने वाले हैं। बीते 20 अक्टूबर 2025 को यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ। यूनुस शासन के एक प्रभावशाली और विवादास्पद सलाहकार, आसिफ महमूद शोजिब भुयान ने सात प्रशिक्षण केंद्रों में 8,850 लोगों की भर्ती और प्रशिक्षण की सार्वजनिक घोषणा की। भुयान ने कहा, प्रशिक्षुओं को मार्शल आर्ट, जूडो, ताइक्वांडो और आग्नेयास्त्रों का प्रशिक्षण दिया जाएगा। भुयान का यह बयान एक फ्लैश की तरह सार्वजनिक हुआ और कुछ ही घंटों में गायब हो गया। खुफिया एजेंसियों ने इसकी पुष्टि की कि यह बड़ी योजना का पहला चरण है। 8,850 रंगरूटों वाले कम से कम पांच क्रमिक बैचों को जनवरी 2026 तक प्रशिक्षण पूरा करना है। भर्ती प्रक्रिया में लिखित, मौखिक और शारीरिक परीक्षाएं शामिल हैं। सभी की देखरेख पाकिस्तान समर्थक मजबूत झुकाव वाले सेवानिवृत्त बांग्लादेशी अधिकारियों के साथ-साथ पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) और तुर्की की मिल्ली इस्तिहबारत टेस्किलाती (एमआईटी) के गुप्त प्रतिनिधियों द्वारा की जाएगी। यह सामान्य सुरक्षा अभ्यास नहीं हैं। चयनित रंगरूटों, पुरुष और महिला दोनों को पाकिस्तान और तुर्की में उन्नत कमांडो और जासूसी प्रशिक्षण के लिए तैयार किया जा रहा है। खुफिया आकलन बताते हैं कि इनमें से कुछ गुर्गों को बाद में विदेशों में, विशेष रूप से भारत, नेपाल और म्यांमार के साथ-साथ पश्चिमी देशों में विध्वंसक या खुफिया जानकारी जुटाने वाले मिशनों को अंजाम देने के लिए तैनात किया जाएगा।
इस सशस्त्र गठन का वैचारिक औचित्य यूनुस शासन से संबद्ध इस्लामी संगठनों, विशेषकर जमात-ए-इस्लामी द्वारा प्रचारित व्याख्या (नैरेटिव) में निहित है। 27 सितंबर 2025 को जमात के नायब-ए-अमीर डॉ. सैयद अब्दुल्ला मुहम्मद ताहिर ने न्यूयॉर्क में एक सभा में घोषणा की कि जमात के 50 लाख युवा भारत के विरुद्ध आजादी की लड़ाई के लिए तैयार हैं। उसने कहा, यदि भारत बांग्लादेश में प्रवेश करता है तो 1971 में हम पर लगाया गया बदनामी का दाग मिट जाएगा। हम खुद को सच्चे स्वतंत्रता सेनानी साबित करेंगे। जमात के 50 लाख युवाओं का एक हिस्सा गुरिल्ला युद्ध में शामिल होगा, जबकि बाकी भारत के अंदर गजवा-ए-हिंद को लागू करने के लिए फैलेंगे। यह बयानबाजी प्रतीकात्मक नहीं है। यह जेहादी युद्ध सिद्धांत की प्रतिध्वनि है, भारत को दुश्मन के रूप में चित्रित करती है और ऐतिहासिक अपमान की भरपाई के खिलाफ एक पवित्र युद्ध का महिमामंडन करती है। बांग्लादेश के सुरक्षा प्रतिष्ठान के लिए यह 1971 के संशोधनवाद का खतरनाक पुनरुत्थान है। यह एक नए इस्लामवादी नैरेटिव में पाकिस्तान समर्थक सहयोगियों को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में पुनः स्थापित करने का प्रयास है।
इस्लामिक रिवोल्यूशनरी आर्मी के बीज अक्टूबर के खुलासे से बहुत पहले ही बो दिए गए थे। दिसंबर 2024 में भेदभाव-विरोधी छात्र आंदोलन नामक एक कट्टरपंथी समूह जो मुहम्मद यूनुस के वफादार छात्रों से बना था, उसने सार्वजनिक रूप से इस्लामिक रिवोल्यूशनरी आर्मी नाम से ही मिलिशिया शुरू करने की घोषणा की थी। उसने युवाओं से 20 दिसंबर को सुबह 8 बजे ढाका विश्वविद्यालय में नामांकन के लिए इकट्ठा होने का आह्वान किया था। जिसमें तीन दिवसीय मार्शल आर्ट सत्र के आयोजन और दूसरे हिस्से में सेना और अर्धसैनिक बलों द्वारा संचालित एक महीने की ट्रेनिंग देने की योजना थी। इस आंदोलन को बराक ओबामा, बिल और हिलेरी क्लिंटन और जॉर्ज सोरोस सहित पश्चिमी लिबरल वित्तपोषकों द्वारा भारी मात्रा में धन दिया गया।
बांग्लादेशी खुफिया एजेंसियों की जांच से विदेशी समन्वय का एक स्पष्ट पैटर्न सामने आया। नवंबर 2024 में पाकिस्तान के विशेष सेवा समूह (एसएसजी) के कम से कम पांच अधिकारी दुबई और कतर होते हुए आईआरए कैडरों को प्रशिक्षित करने के लिए गुप्त रूप से ढाका में दाखिल हुए। पाकिस्तान की एसएसजी पूरे एशिया में गैर-सरकारी आतंकवादी समूहों को गुप्त प्रशिक्षण देने के लिए कुख्यात है। खुफिया रिपोर्टों से पता चलता है कि इन गुर्गों ने यूनुस समर्थक तत्वों और इस्लामी छात्र नेताओं के साथ संयुक्त सत्र आयोजित किए और उन्हें गुरिल्ला युद्ध, निगरानी और तोड़फोड़ का प्रशिक्षण दिया। तुर्की का एमआईटी ने भी एक सक्रिय सलाहकार की भूमिका निभाई। यूनुस के राजनीतिक उदय के बाद से ढाका और चटगांव में कई तुर्की सांस्कृतिक आदान-प्रदान और शैक्षिक सहयोग कार्यक्रमों का चुपचाप विस्तार हुआ है। इन कार्यक्रमों ने एमआईटी द्वारा किए जाने वाली भर्तियों और लॉजिस्टिक सप्लाई के काम को छिपाने के लिए पर्दे का काम किया। ढाका में आईएसआई और एमआईटी के बीच समन्वय एक गहन रणनीतिक एजेंडे की ओर इशारा कर रहा है जो ईरान के आईआरजीसी की तर्ज पर मिलिशिया के निर्माण में और पूरे क्षेत्र में इस्लामी शक्ति को प्रदर्शित करने के तिकड़म में लगा है।
पाकिस्तानी एसएसजी पहले से ही हिज्ब-उत-तहरीर (एचयूटी) और बांग्लादेश में रह रहे बिहारी मुस्लिम समुदाय के 300 गुर्गों को प्रशिक्षित कर रहा था। यह प्रशिक्षण पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में हुआ जो कट्टरपंथी उग्रवाद का एक जाना-माना केंद्र है। भारत और नेपाल के रास्ते छोटे-छोटे समूहों में लाए गए इन गुर्गों को असममित युद्ध, शहरी तोड़फोड़ और घुसपैठ की रणनीति में प्रशिक्षित किया गया था। अब वे नए इस्लामिक रिवोल्यूशनरी आर्मी ढांचे में एकीकृत होते दिख रहे हैं। जो इस्लामी विचारधारा, पाकिस्तान के प्रति प्रवासी निष्ठा और यूनुस के राजनीतिक संरक्षण को जोड़ता है।
हथियारों की तस्करी के सबूत इस साजिश के वैचारिक और प्रशिक्षण आयामों को पुष्ट करते हैं। पिछले साल पाकिस्तान की सत्तारूढ़ मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के एक वरिष्ठ नेता इरशाद अहमद खान ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया था कि पाकिस्तान कराची बंदरगाह के रास्ते वाणिज्यिक वस्तुओं में छिपाकर हथियार बांग्लादेश भेज रहा है। बांग्लादेशी खुफिया एजेंसियों को कृषि मशीनरी, स्पेयर पार्ट्स और रसायनों की खेपों पर नजर रखने से रोक दिया गया था जिनमें से कई कराची से जुड़ी निजी कार्गो लाइनों के जरिए भेजी जाती थीं, जिनमें हथियार के पुर्जे छिपाए जाने का संदेह था। इन हथियारों को आतंकवादी संगठनों और इस्लामी गढ़ों में वितरित किया जाता है। यह सप्लाई नेटवर्क 1980 के दशक के दौरान अफगानिस्तान में इस्तेमाल किए गए मॉडल की नकल है। नागरिक आड़ में हथियारों की तस्करी, गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से वित्तपोषण और मदरसा नेटवर्क के माध्यम से हथियारों का वितरण। यही ढांचा अब पहले से अधिक परिष्कृत और डिजिटल समन्वय के साथ बांग्लादेश में इस्तेमाल हो रहा है।
इस्लामिक रिवोल्यूशनरी आर्मी के गठन का अंतिम लक्ष्य केवल आंतरिक एकीकरण नहीं है। इसका उद्देश्य बांग्लादेश को अंतरराष्ट्रीय जेहादी अभियानों के लिए एक रणनीतिक केंद्र में बदलना है। एक ऐसा अड्डा जो धर्मनिरपेक्ष विपक्ष का सफाया करते हुए पाकिस्तान के भू-राजनीतिक हितों की पूर्ति करे। यूनुस शासन इस्लामी तत्वों के साथ गठजोड़ बनाकर और उन्हें जमीनी रक्षक के रूप में प्रस्तुत करके बांग्लादेशी सेना को बेअसर करना चाहता है। इससे भारत के पूर्वी हिस्से में घुसपैठ कारगर तरीके से संभव होगी और बंगाल की खाड़ी में समुद्री मार्गों तक पहुंच संभव होगी। यह विदेशी प्रायोजन, क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं और सांप्रदायिक मंशा से एक अर्धसैनिक आंदोलन के व्यवस्थित निर्माण का प्रतिनिधित्व करता है। यदि इस्लामिक रिवोल्यूशनरी आर्मी (आईएसए) अपने दावे के अनुसार अपनी सेना का एक हिस्सा भी एकजुट कर लेती है, तो परिणाम विनाशकारी होंगे। सबसे पहले बांग्लादेश का नाजुक सांप्रदायिक संतुलन बिगड़ जाएगा। धार्मिक अल्पसंख्यक हिंदू, बौद्ध और ईसाई इस्लामी उग्रवाद की एक नई लहर के तहत लक्षित उत्पीड़न का सामना करेंगे। दूसरा, सीमा पार आतंकवाद बढ़ेगा, खासकर भारत और म्यांमार के खिलाफ। आईआरए कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षित घुसपैठिए आसानी से छिद्रपूर्ण सीमाओं का फायदा उठा कर तोड़फोड़ और हत्या के अभियानों को अंजाम दे सकेंगे तीसरा, क्षेत्रीय स्थिरता को ध्वस्त करने का मौका मिलेगा जिससे भारत, नेपाल और आसियान देशों को अपने सुरक्षा सिद्धांतों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। दुनिया इससे मुंह मोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकती।
छात्रावासों में जमा हो रहा है हथियारों का जखीरा
इसी 21 अक्टूबर को बांग्लादेश के अनुभवी राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ बीएनपी नेता मेजर (सेवानिवृत्त) मोहम्मद अख्तरुज्जमां रंजन ने यह सनसनीखेज खुलासा किया कि बांग्लादेश में एक नया सशस्त्र बल बनाने की कोशिशें चल रही हैं। उन्होंने कहा, हम जानते हैं कि विश्वविद्यालय के हॉल में ढेर सारे हथियार जमा किए जा रहे हैं। छात्रावासों में हथियारों का जखीरा छिपा कर जमा किया जा रहा है। यह आने वाले दिनों में राजनीतिक लामबंदी के रूप में छिपे सशस्त्र संघर्ष की आशंका का संकेत दे रहा है। मेजर अख्तरुज्जमां ने दावा किया कि ऐसे हथियारों को वापस पाने के लिए, विदेशी सशस्त्र बलों की आवश्यकता पड़ेगी। बांग्लादेश के सशस्त्र बल उन्हें वापस नहीं पा सकेंगे। फिर गृह युद्ध छिड़ जाएगा।
रिटायर्ड सेनाधिकारी ने कहा, इसीलिए यूनुस सरकार बांग्लादेश सेना का मनोबल गिराने की कोशिशों में लगी है। भविष्य में बांग्लादेश और इस पूरे भूभाग की रक्षा खतरे में पड़ जाएगी। कुल मिलाकर देश को ऐसी स्थिति में पहुंचाया जा रहा है कि वह पड़ोसी देश भारत को रहनुमा या संरक्षक के तौर पर नहीं बल्कि शत्रु की तरह देखे, जैसा पाकिस्तान देखता है और दिखाना चाहता है।
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