बंगाल में भी शुरू हुआ मतदाता सूची का संशोधन
बिहार के बाद प. बंगाल: कटेंगे फर्जी मतदाताओं के नाम
एक हजार लापरवाह बीएलओ को आयोग की नोटिस
नई दिल्ली, 22 अक्टूबर (एजेंसियां)। चुनाव आयोग ने देशभर में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया शुरू की है। प्रक्रिया की शुरुआत बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से हुई। इसी कड़ी में अब पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले एसआईआर प्रक्रिया जारी है। एसआईआर को लेकर बंगाल में भी सत्ताधारी पार्टी समेत कई राजनीतिक दलों का विरोध और तीखी बयानबाजियां शुरू हो गई हैं।
दूसरी तरफ एसआईआर के काम में कोताही बरतने वाले कम से कम एक हजार बूथ स्तर के अधिकारियों (बीएलओ) के खिलाफ चुनाव आयोग ने नोटिस जारी की है। पश्चिम बंगाल में चुनाव संबंधी निर्देशों का पालन न करने के आरोप में इनके खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी की गई है। यह कार्रवाई जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत हुई है। संबंधित सभी बीएलओ ने निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) की बार-बार अपील के बावजूद ईआरओ-नेट पोर्टल पर अपने नाम दर्ज नहीं कराए थे। इसी को आधार बनाते हुए नोटिस जारी किए गए हैं। नोटिस में कहा गया है कि ऐसा न करना जानबूझकर की गई लापरवाही और कर्तव्य की गंभीर उपेक्षा है, जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 32 के उल्लंघन के बराबर है। इस धारा के तहत निर्वाचन कार्य में नियुक्त सभी अधिकारियों को चुनाव आयोग के निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है। नोटिसों में इसका भी जिक्र किया गया है कि चुनावी कामकाज के दौरान बीएलओ भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) के प्रतिनियुक्ति पर माने जाते हैं और उसके अनुशासनात्मक नियंत्रण के अंतर्गत होते हैं। इन सभी बूथ स्तरीय अफसरों से तीन दिनों के भीतर स्पष्टीकरण मांगा गया है कि उनके खिलाफ जानबूझकर लापरवाही और सरकारी आदेश की अवहेलना के लिए अनुशासनात्मक या दंडात्मक कार्रवाई क्यों न की जाए। अधिकारी ने बताया कि तय समय सीमा के भीतर जवाब न देने की स्थिति में यह माना जाएगा कि संबंधित अधिकारी के पास कोई वैध कारण नहीं है, और फिर विभागीय नियमों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
पश्चिम बंगाल में शुरू हुए विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया को लेकर मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि वह भाजपा के दबाव में काम कर रहा और एसआईआर को एनआरसी की तरह लागू करने की साजिश कर रहा है। ममता ने दावा किया कि जैसे एनआरसी में नागरिकों और घुसपैठियों की पहचान की गई थी, उसी तरह एसआईआर के माध्यम से मतदाता सूची से कुछ लोगों को बाहर किया जा सकता है, खासकर उन समुदायों के मतदाता जिन्हें भाजपा अवैध मान सकती है।
हालांकि चुनाव आयोग स्पष्ट कर चुका है बंगाल में एसआईआर के दौरान कोई भी वैध मतदाता सूची से बाहर नहीं होगा। यह आश्वासन राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज अधिकारी मनोज कुमार अग्रवाल ने दिया। उन्होंने कहा कि कानून के निर्धारित की प्रक्रिया की जाएगी। चुनाव आयोग ने एसआईआर के लिए अब तक 3.96 करोड़ डाटा अपलोड कर दिया। शुरुआती डाटा में लगभग 3.48 करोड़ नाम साल 2002 के एसआईआर डाटा से मेल खाते पाए गए हैं। यह कुल मतदाताओं का लगभग 44 से 45 प्रतिशत हिस्सा है जबकि राज्य में वर्तमान में कुल पंजीकृत मतदाता लगभग 7.6 करोड़ है।
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पश्चिम बंगाल में बढ़ते घुसपैठ के मामलों को देखते हुए विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) जरूरी माना जा रहा है। बंगाल में आए दिन घुसपैठ और अवैध मतदाता शामिल होने के मामले सामने आते रहते हैं। ताजा मामला 22 अक्टूबर 2025 का है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश किया, जिसमें 400 बांग्लादेशी घुसपैठियों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भारतीय पासपोर्ट बनवाए थे। ऐसे कई मामले हर दूसरे दिन सामने आते हैं। बंगाल में एसआईआर प्रकिया का विशेष कारण यही है।
जुलाई 2025 में भी भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया था कि बंगाल में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को निवास प्रमाण पत्र दिए जा रहे हैं, जिससे उनकी पहचान मतदाता सूची में शामिल हो रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बंगाल में एसआईआर प्रक्रिया का खुलकर समर्थन किया है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने कहा कि एसआईआर पार्टी के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है और इसमें कोई भी लापरवाही 2026 के चुनावों में नुकसान पहुंचा सकती है। सांसद और केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने एसआईआर के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि इस प्रक्रिया के दौरान एक से डेढ़ करोड़ अवैध मतदाताओं के नाम हटाए जा सकते हैं, जिनमें रोहिंग्या, घुसपैठिए और काल्पनिक मतदाता शामिल हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वास्तविक शरणार्थियों को नागरिकता मिलने पर उनका मतदान का अधिकार सुरक्षित रहेगा।
भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने एसआईआर को आगामी चुनावों के सेमीफाइनल के रूप में बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर एसआईआर समय पर पूरा नहीं हुआ तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की नौबत आ सकती है। उनका कहना है कि इस प्रक्रिया में 2.4 करोड़ अवैध मतदाताओं के नाम हटाए जा सकते हैं, जो चुनावी निष्पक्षता के लिए बेहद जरूरी हैं। भाजपा प्रवक्ता कीया घोष ने टीएमसी के मंत्रियों के विवादास्पद बयानों की आलोचना करते हुए कहा कि वे बयान राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ सकते हैं। उनका कहना है कि एसआईआर जैसी प्रक्रिया के माध्यम से ही राज्य में अवैध मतदाता और घुसपैठियों की पहचान की जा सकती है, जिससे चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी होंगे।
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