बंद हो गया कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज

शेयर व्यापार के एक प्रभावशाली युग का अंत

 बंद हो गया कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज

कोलकाता, 22 अक्टूबर (एजेंसियां)। कभी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) से मुकाबला करने वाली 117 साल पुरानी कोलकाता स्टॉक एक्सचेंज (सीएसई) ने अपना काम समेट लिया है। कई सालों के कानूनी और नियामक अड़चनों के बाद सीएसई ने अपनी आखिरी काली पूजा और दिवाली का जश्न मनाया और सोमवार (20 अक्टूबर 2025) को स्थाई रूप से काम करना बंद कर दिया।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने 2013 में सीएसई का ट्रेडिंग निलंबित कर दिया था क्योंकि यह नियामक मानकों का पालन नहीं कर पा रही थी। पिछले दस साल में ट्रेडिंग को पुनर्जीवित करने और सेबी के फैसले को चुनौती देने के प्रयासों के बावजूद एक्सचेंज ने पूरी तरह से बंद होने का निर्णय लिया। पहले सीएसई ने सेबी के आदेशों को अदालत में चुनौती देने का इरादा रखा था, लेकिन अनुकूल फैसला पिछले साल तक संभव नहीं था। दिसंबर 2024 में सीएसई बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट और कोलकाता हाई कोर्ट में लंबित मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया। इसके बाद उसने स्वयं से बाहर निकलने का अनुरोध किया।

सीएसई के चेयरमैन दीपंकर बोस ने कहा, 25 अप्रैल 2025 को आयोजित विशेष आम सभा में शेयरधारकों से एक्सचेंज व्यवसाय से बाहर निकलने की मंजूरी प्राप्त की गई। इसके बाद सीएसई ने सेबी को बाहर निकलने के लिए आवेदन सौंपा, जिसने अब स्टॉक एक्सचेंज का मूल्यांकन करने के लिए एक वैल्यूएशन एजेंसी नियुक्त की है, जो फिलहाल प्रगति पर है। अगर सेबी सीएसई को बाहर निकलने की अनुमति दे देता है, तो सीएसई सिर्फ एक होल्डिंग कंपनी के रूप में ही बनी रहेगी। इसके तहत आने वाली सहायक कंपनी सीएसई कैपिटल मार्केट्स प्राइवेट लिमिटेड अब भी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) और बीएसई (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) पर कारोबार करती रहेगी। इसके अलावा, सीएसई की तीन एकड़ की ईएम बाईपास संपत्ति को सृजन ग्रुप को 253 करोड़ रुपए में बेचने की योजना को भी सेबी ने मंजूरी दे दी है। यह बिक्री तब पूरी होगी जब सीएसई का बाहर निकलना आधिकारिक रूप से पूरा हो जाएगा।

सीएसई की स्थापना 1908 में हुई थी और यह कभी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) की प्रतियोगी थी। यह कोलकाता के वित्तीय इतिहास और लाइयन्स रेंज के हब का भी प्रतीक माना जाता था। सीएसई के लिए सबसे बड़ा झटका 2013 में आया, जब सेबी ने ट्रेडिंग रोकने का फैसला लिया। एक्सचेंज ने कई महत्वपूर्ण नियमों का उल्लंघन किया था, जिससे यह कदम उठाना पड़ा। इसके खिलाफ सीएसई ने कई बार अदालतों का रुख किया, लेकिन इसका नतीजा आर्थिक दबाव और ट्रेडिंग में गिरावट के रूप में सामने आया। यह गिरावट उस समय और भी ज्यादा महसूस हुई जब एनएसई और बीएसई पर ट्रेडिंग का बूम चल रहा था।

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सीएसई के पतन के मुख्य कारणों में बीएसई और एनएसई का प्रभुत्व, प्रासंगिकता का कम होना और तकनीकी उन्नति के साथ तालमेल न बिठा पाना शामिल है। विशेष रूप से 2000 के दशक की शुरुआत में डॉट कॉम बूम के बाद, सीएसई तेजी से बदलती वित्तीय दुनिया में खुद को ढाल नहीं पाया और पीछे रह गया। केतन पारेख घोटाले का खुलासा 2001 में सीएसई के लिए आखिरी बड़ा झटका साबित हुआ। पेशे से एक स्टॉक ब्रोकर पारेख ने कुछ स्टॉक्स जिन्हें के-10 स्टॉक्स कहा जाता था की कीमतें बढ़ाने के लिए एक्सचेंज की कमजोरियों का फायदा उठाया। इससे सख्त नियम लागू हुए और निवेशकों का विश्वास काफी घट गया। अंततः सीएसई का पतन इस कारण हुआ कि समय के साथ यह नियमों का पालन नहीं कर सका।

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सीनियर स्टॉक ब्रोकरेर सिद्धार्थ थिरानी ने बताया, हम हर दिन ट्रेडिंग शुरू करने से पहले देवी लक्ष्मी की पूजा करते थे, यह परंपरा अप्रैल 2013 तक चली जब ट्रेडिंग को रेगुलेटर ने निलंबित कर दिया। इस दिवाली का मतलब हमारे उस वैभवपूर्ण समय को अलविदा कहना है। शेयरधारकों ने औपचारिक प्रस्ताव को 25 अप्रैल को मंजूरी दी, जिसे पहले 18 फरवरी को सेबी को भेजा गया था। सेबी ने इसे पूरा करने के लिए राजवंशी एंड एसोसिएट्स को नियुक्त किया है और यह प्रक्रिया बाहर निकलने की अंतिम मंजूरी से पहले की आखिरी स्टेज है। सीएसई में 1,749 सूचीबद्ध कंपनियां और 650 पंजीकृत सदस्य थे। चेयरमैन दीपंकर बोस ने वित्तीय वर्ष 2025 की रिपोर्ट में कहा कि एक्सचेंज ने भारत के पूंजी बाजारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2024-2025 के दौरान उन्हें डायरेक्टर की बैठक फीस के रूप में 5.9 लाख रुपए मिले।

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बाहर निकलने से पहले एक्सचेंज ने सभी कर्मचारियों को एक वॉलंटरी रिटायरमेंट स्कीम (वीआरएस) का लाभ दिया। इसके तहत कर्मचारियों को एक बार का भुगतान 20.95 करोड़ रुपए और सालाना लगभग 10 करोड़ रुपए की बचत सुनिश्चित की गई। कुछ कर्मचारियों को केवल अनुपालन कार्यों के लिए अनुबंध पर रखा गया, लेकिन सभी ने इस ऑफर को स्वीकार कर लिया। सीएसई के बाहर निकलने के साथ ही भारत के क्षेत्रीय स्टॉक एक्सचेंजों का एक युग खत्म हो रहा है। पहले ये एक्सचेंज बहुत सक्रिय थे, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म के आने के बाद बाजार का केंद्र मुंबई चला गया। सीएसई जैसी संस्थाएं आज भी वित्तीय इतिहास की पहचान हैं, जो भारत के पूंजी बाजारों के विकास, तकनीकी आधुनिकीकरण और नियमों के सुदृढ़ीकरण का प्रतीक हैं।

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