वंशवाद के कारण सड़ गई भारतीय राजनीति
बेटे-बेटियों, भाई-भतीजों, साले-बहनोई, बहू-दामाद का है लोकतंत्र
सांसद, विधायक, एमएलसी और राज्यपाल तक हैं वंशवाद के उत्पाद
भारतीय लोकतंत्र का मौजूदा विपक्ष सम्पूर्ण रूप से परिवारवाद और वंशवाद का विपक्ष है। वंशवादी राजनीति का विरोध करने वाला सत्ता पक्ष (प्रमुख रूप से भाजपा) भी अब वंशवाद के सामने आत्मसमर्पण की मुद्रा में आ गई है। वंशवाद की राजनीति पर भाजपा का प्रहार धारदार नहीं रह गया है। बिहार विधानसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में भारतीय राजनीति का वंशवाद एक बार फिर प्रासंगिक सवाल बन कर उभरा है।
बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला एक पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे से है। सत्ताधारी दल का उभरता युवा नेता एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का बेटा है, जबकि मौजूदा उपमुख्यमंत्री भी एक पूर्व मंत्री के बेटे हैं। यही सिलसिला पूरे देश में चलता रहता है। भारतीय लोकतंत्र का जमीनी यथार्थ यही है कि विधायकों, सांसदों, मंत्रियों और पार्टी प्रमुखों के बेटे-बेटियां, सभी पार्टी में शामिल हो रहे हैं, फिर लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधान परिषदों का टिकट पा रहे हैं। भारतीय राजनीति को परिवारवाद ने प्रदूषित करते रख दिया है।
केंद्र की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी अपने तीसरे कार्यकाल में है। राज्यों में भाजपा के लगातार बढ़ते प्रभाव के साथ अब 2,078 विधायक भाजपा के हैं। इन 2,078 भाजपा विधायकों में 18.62 प्रतिशत विधायक वंशवाद की उपज हैं। कांग्रेस का हिस्सा तो दोगुना है। लोकसभा में कांग्रेस सांसदों की संख्या घटकर 99 रह गई है। देश के केवल तीन राज्यों में कांग्रेस की सत्ता है, जहां इसके 857 विधायक हैं। इनमें से 33.25 प्रतिशत लोग वंशवाद की पैदाइश हैं। वंशवाद की यह प्रवृत्ति संसद में तीन गांधी परिवार के शीर्ष से शुरू होती है। क्षेत्रीय दलों की बात करें तो यह प्रवृत्ति और भी प्रबल है, जो राज्य स्तर पर पार्टियों के प्रवेश की बाधाओं और राजनीति व संरक्षण के मामले में समान अवसर के अभाव का प्रमाण है। एनडीए में, उसके सहयोगी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी के 163 विधायकों में से 51 (31.28 प्रतिशत) और जनता दल (यूनाइटेड) के 81 विधायकों में से 28 (34.57 प्रतिशत) विधायक वंशवादी हैं। इंडी गठबंधन में तो स्थिति और भी बदतर है।
अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के 158 विधायकों में से 55 (34.81 प्रतिशत) वंशवादी उत्पाद हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के 268 विधायकों में से 33 (12.31 प्रतिशत) वंशवाद के प्रतिफल हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन की डीएमके के 172 विधायकों में से 30 (17.44 प्रतिशत) विधायक वंशवादी प्रोडक्ट हैं। आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी के 56 में से 15 विधायक (26.78 प्रतिशत) वंशवादी प्रोडक्ट हैं। वंशवाद का तात्पर्य प्रत्यक्ष वंशजों या विवाह से जुड़े रिश्तेदारों से है। मसलन बेटे-बेटियां, माता-पिता, भाई-
छह केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, पांच केंद्रीय राज्य मंत्री, नौ मुख्यमंत्री, सात उप-मुख्यमंत्री, 35 राज्य मंत्री और दो विधानसभा अध्यक्ष परिवारवाद के उत्पाद हैं, और इन 149 परिवारों में से 23 परिवारों के दो-दो से ज्यादा सदस्य राज्य विधानसभाओं या संसद में शोभायमान हैं। इन 149 परिवारों का पार्टीवार ब्यौरा देखना भी बड़ा रोचक है। इन परिवारों में भाजपा 84 विधायकों के साथ शीर्ष पर है उसके बाद कांग्रेस 73 विधायकों के साथ दूसरे स्थान पर है। कुल मिलाकर, इन विधायकों में पिता और पुत्रों के 49 जोड़े, पिता और पुत्रियों के 14 जोड़े, माता और पुत्रों के सात जोड़े और माता और पुत्रियों के चार जोड़े शामिल हैं। 80 भाई-बहन और 21 विवाहित जोड़े हैं। इस सूची में 26 चचेरे भाई-बहन, चाचा-भतीजों के 17 जोड़े, और दो चाची-भतीजे व अन्य सदस्य भी शामिल हैं। इन 149 परिवारों में 27 ऐसे हैं जिनके सदस्य पूरी तरह से भाजपा से जुड़े हैं, जबकि 23 ऐसे हैं जिनके विधायक भाजपा और अन्य दलों या निर्दलीय हैं। इसी तरह, 32 परिवार पूरी तरह से कांग्रेस से जुड़े हैं, जिनमें से पांच अन्य दलों के विधायकों के साथ हैं।
इन दिग्गजों में शामिल हैं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उनके विधायक पुत्र पंकज सिंह। राज्यसभा सांसद और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और उनके पुत्र प्रियांक खड़गे, जो कर्नाटक के मंत्री और विधायक हैं। महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके पुत्र श्रीकांत शिंदे, जो लोकसभा सांसद हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके छोटे पुत्र यतींद्र, जो विधान परिषद सदस्य हैं। इस सूची में सबसे ऊपर आने वाला परिवार जाना-माना है। इनमें सबसे शीर्ष पर है गांधी परिवार (कांग्रेस)। उसके बाद सिंधिया परिवार (भाजपा)। नायडू परिवार (तेदेपा) और दिवंगत मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र अखिलेश यादव (सपा) का वृहत्तर परिवार। लालू प्रसाद (राजद), शरद पवार (राकांपा गुट), एचडी देवगौड़ा (जेडीएस), वाईएस जगनमोहन (वाईएसआरसीपी), के चंद्रशेखर राव (बीआरएस) और बीएस येदियुरप्पा (भाजपा) और एमके स्टालिन (द्रमुक) परिवारवाद के सिरमौर हैं।
मुलायम-अखिलेश परिवार के वर्तमान पदधारी नेताओं की पारिवारिक सूची में सबसे अधिक आठ सदस्य हैं। इनमें पांच सदस्य लोकसभा में, एक राज्यसभा में और दो विधानसभा में हैं। फिर कर्नाटक के चार जारकीहोली बंधु जैसे लोग हैं जो कई पार्टियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। बालचंद्र और रमेश भाजपा विधायक हैं। सतीश कांग्रेस विधायक और राज्य मंत्री हैं। उनकी बेटी प्रियंका पार्टी सांसद हैं और लखन एक निर्दलीय एमएलसी हैं। पूर्वोत्तर के संगमा समुदाय का भी विशेष स्थान है। पूर्व स्पीकर दिवंगत पीए संगमा के पुत्र मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की पत्नी, चाचा और बहनोई भी विधायक हैं।
दो अन्य मामले ऐसे हैं जो ऊपर सूचीबद्ध मानदंडों पर खरे नहीं उतरते, लेकिन फिर भी महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान विधायक जो वर्तमान राज्यपालों के रिश्तेदार हैं। गोवा के राज्यपाल पुसापति अशोक गजपति राजू की बेटी पुसापति अदिति विजयलक्ष्मी गजपति राजू, विजयनगरम से टीडीपी विधायक हैं। तेलंगाना के राज्यपाल जिष्णु देबबर्मन की भतीजी कृति देवी देबबर्मन, त्रिपुरा पूर्व से भाजपा की लोकसभा सांसद हैं।
कुल मिलाकर देश के 5,294 मौजूदा सांसद, विधायक और विधान पार्षद में 989 परिवारों के 1174 वंशज हैं। ये सब एक राजनीतिक वंश से ताल्लुक रखते हैं और पारिवारिक विरासत का लाभ उठाते हैं। भाजपा के 2,078 (सांसद, विधायक और एमएलसी) पदधारकों की सूची में 387 वंशवादी (18.62 प्रतिशत) में से कम से कम 83 अन्य पदों पर भी हैं, जैसे मंत्री या पार्टी पदाधिकारी। भाजपा की सूची में तीन विधानसभा अध्यक्ष महाराष्ट्र के राहुल नार्वेकर, उत्तराखंड की रितु खंडूरी और छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमन सिंह और कई मंत्री एवं पदाधिकारी शामिल हैं। नार्वेकर राकांपा विधान परिषद सदस्य रामराजे नाइक-निंबालकर के दामाद हैं। रितु खंडूरी पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी की बेटी हैं और रमन सिंह के बेटे पूर्व सांसद हैं।
दिल्ली में तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज की विरासत को उनके बच्चे हरीश खुराना (विधायक), प्रवेश वर्मा (विधायक और मंत्री) और बांसुरी स्वराज (सांसद) आगे बढ़ा रहे हैं। कांग्रेस के 857 पदधारियों में से 285 (33.26 प्रतिशत) वंशवादी-उत्पाद हैं। कांग्रेस की सूची पूरे देश में फैली हुई है, जहां दिग्गज नेताओं के परिवारों ने अपने क्षेत्रों में पार्टी का नाम और झंडा बुलंद रखा है। उदाहरण के लिए, असम के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों, हितेश्वर सैकिया और तरुण गोगोई के वंशज, गुवाहाटी और दिल्ली में पार्टी के नए चेहरे हैं। गोगोई के बेटे गौरव लोकसभा में पार्टी के उपनेता हैं और सैकिया के बेटे देवव्रत राज्य में विपक्ष के नेता हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पूर्व केंद्रीय मंत्री एस जयपाल रेड्डी के भाई के दामाद हैं। अन्य प्रमुख कांग्रेसी वंशवादियों में पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट के पुत्र सचिन पायलट (राजस्थान), पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की पुत्री अनुपमा रावत (उत्तराखंड), पूर्व मुख्यमंत्री अमरसिंह चौधरी के पुत्र तुषार अमर सिंह चौधरी (गुजरात), विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पुत्र दीपेंद्र सिंह हुड्डा (हरियाणा) और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह (हिमाचल) शामिल हैं। इस सूची में शामिल अन्य पार्टियां मुख्यतः क्षेत्रीय सत्ता वाले परिवारों द्वारा संचालित हैं, जैसे कि जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार, और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक। कुल मिलाकर विभिन्न सदनों में 1,174 राजवंशों, पूर्व और वर्तमान विधायकों के रिश्तेदार में कम से कम 21 केंद्रीय मंत्री, 13 मुख्यमंत्री, आठ उपमुख्यमंत्री, कम से कम 129 राज्य मंत्री, चार विधानसभा अध्यक्ष और विभिन्न सदनों में अपनी पार्टियों के 18 नेता हैं।
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