देश को रसातल में ले जाने पर आमादा तुष्टिवादी कांग्रेस

संसद से पारित वक्फ कानून पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट आमादा

देश को रसातल में ले जाने पर आमादा तुष्टिवादी कांग्रेस

शुभ-लाभ विमर्श

वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल करने की होड़ कल समाप्त हो गई, जब खुद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अखबारों में नाम छपवाने के लिए याचिकाएं दाखिल करने की होड़ मची है, लिहाजा अब याचिकाएं स्वीकार नहीं की जाएंगी। सुप्रीम कोर्ट वक्फ कानून को लेकर 20 मई को सुनवाई करेगी, जबकि यह विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित होकर कानून बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट के इस अति-सक्रियतावादी रवैये के खिलाफ पूरे देश में आक्रोश व्याप्त है।

वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में 70 से अधिक याचिकाएं दर्ज हैं। इनमें से 10 याचिकाओं पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दो दिन की सुनवाई के बाद संशोधित कानून पर रोक तो नहीं लगाईलेकिन एक अंतरिम आदेश अवश्य दिया। इसमें केंद्र सरकार के आग्रह पर उसे इस मुद्दे पर दाखिल याचिकाओं का जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया। साथ हीअगली सुनवाई तक रजिस्टर्ड वक्फ बाइ यूजर में कोई बदलाव न करने और वक्फ बोर्ड में नई नियुक्तियां न करने के निर्देश हैं। हालांकिकेंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ने यह आश्वासन सुनवाई शुरू होते ही दे दिया था। अब बीआर गवई सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बन चुके हैं।

अगली सुनवाई पर न्यायालय जो भी निर्णय देलेकिन इस मामले में कांग्रेस एक बार फिर पूरी तरह से बेनकाब हो गई है। वक्फ संशोधन कानून का विरोध तो अन्य दल भी कर रहे हैंलेकिन कांग्रेस में इस मुद्दे पर इंडी गठबंधन के अन्य सहयोगियों पीछे छोड़ देने की होड़ दिखी है। तुष्टिकरण में जुटी कांग्रेस को देखते हुए यह आरोप निराधार नहीं लगता कि वह देश का इस्लामीकरण करने वाली शक्तियों के साथ खड़ी है। साथ हीउन आशंकाओं को भी आधार मिलता है कि कांग्रेस का मुस्लिम प्रेम आम मुसलमानोंमहिलाओं के लिए न होकर कट्टरपंथी मुस्लिमों तक ही सीमित है। इस कानून के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल याचिकाओं में कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी की दिलचस्पी और भूमिका इस बात की पुष्टि करती है कि मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए कांग्रेस किसी भी हद तक जा सकती है।

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सिब्बल और सिंघवी जैसे महंगे वकील अक्सर हिंदू और सनातन संस्कृति विरोधी मुकदमे लड़ते हैं तो कभी आतंकवाद के आरोपियों के पक्ष में दलीलें देते हैं। लेकिन मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न और खाड़ी देशों में फंसे मुस्लिम युवकों की वापसी के लिए इनका हृदय नहीं तड़पता। स्पष्ट है कि कांग्रेस का उद्देश्य मुस्लिमों का कल्याण नहींसिर्फ मुस्लिम वोटों की बदौलत सत्ता का रास्ता आसान बनाने की कोशिश करना है। कांग्रेस इसलिए भी कठघरे में हैक्योंकि लोकसभा और राज्यसभा से वक्फ संशोधन विधेयक पारित होने के अगले ही दिन 4 अप्रैल को इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में सबसे पहले जिन दो लोगों की याचिका पहुंचीउनमें एक एआईएमआईएम के अध्यक्ष एवं सांसद असदुद्दीन ओवैसी थे और दूसरे बिहार के किशनगंज से कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद। इसी तरहविधेयक पारित होने के बाद जयराम रमेश का इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय जाने का ऐलान और कुछ घंटे बाद ही कांग्रेस सांसद जावेद की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करना बताता है कि इस पूरे प्रकरण के पीछे कांग्रेस है।

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कांग्रेस को लग रहा था कि वह मुसलमानों को यह संदेश देने में कहीं पीछे न रह जाए कि वह उनके हितों की ही संरक्षक नहीं हैबल्कि उनके वर्चस्वश्रेष्ठता और उनकी एकाधिकारवादी मानसिकता को भी समर्थन देने के लिए हर तरह से तैयार है। इसीलिए उसने अपने मुस्लिम सांसद की तरफ से याचिका कराई। बात-बात में पंथनिरपेक्षतासंविधान की रक्षा तथा लोकतंत्र बचाने की दुहाई देने वाली कांग्रेस इन मुद्दों पर पूरी तरह कठघरे में है। मजहब विशेष से जुड़ा कोई भी विषय आते ही न्यायालय की श्रेष्ठतासंविधान के सम्मानलोकतंत्र के मूल्यों की दुहाई देने वाली कांग्रेस ने अनेक बार हिंदू और सनातन संस्कृति के विरोध में न्यायालय में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सक्रिय रही है। याद कीजिएकांग्रेस सरकार ने न्यायालय में शपथ-पत्र देकर भगवान राम और रामसेतु को काल्पनिक बताया था। राम जन्मभूमि मंदिर सहित कई मामले इसके उदाहरण हैं।

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लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान प्रियंका गांधी वाड्रा की अनुपस्थिति को न केवल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीगबल्कि केरल की जमायत उल उलमा द्वारा संचालित मलयालम दैनिक सुप्रभातम् ने भी काला धब्बा बताया था। अखबार ने वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ संसद में राहुल गांधी के न बोलने पर सवाल उठाया था और वायनाड की सांसद प्रियंका गांधी की भी तीखी आलोचना की थी। अखबार ने अपने संपादकीय में लिखा, वायनाड की सांसद प्रियंका गांधीजिनसे देश बड़ी उम्मीदें रखता हैपार्टी व्हिप के बावजूद संसद में मौजूद नहीं थीं। यह उनके लिए एक दाग की तरह रहेगा। विधेयक पर बहस के दौरान वह कहां थींयह सवाल हमेशा बना रहेगा। प्रियंका गांधी वाड्रा मुस्लिम बहुल वायनाड से सांसद हैं। पहले यह राहुल गांधी की संसदीय सीट थी। लोकसभा चुनाव के दौरान इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के साथ प्रियंका वाड्रा के लिए प्रचार किया था।

हाल ही में कांग्रेस पार्टी के गुजरात अधिवेशन में राहुल गांधी ने वक्फ संशोधन कानून को मजहबी स्वतंत्रता और संविधान पर हमला करार दिया। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार लोकतंत्र को खत्म करना चाहती है। संवैधानिक संस्थाओं पर नियंत्रण करना चाहती है। उन्होंने यहां तक कहा कि आने वाले समय में दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों को भी निशाना बनाया जाएगा। राहुल का यह बयान कांग्रेस की मंशा बताने के लिए काफी है। प्रश्न यह है कि बात-बात में संविधान और लोकतंत्र बचाने की दुहाई देने वाले राहुल गांधी संवैधानिक प्रक्रिया के तहत लोकसभा में प्रस्तुत वक्फ संशोधन विधेयक पर चुप्पी साधे क्यों बैठे रहेउनकी मां सोनिया गांधी भी राज्यसभा में विधेयक पर कुछ क्यों नहीं बोलींयहां तक कि उनकी सांसद बहन प्रियंका गांधी वाड्रा भी विधेयक पर चर्चा के दौरान मौजूद नहीं थीं। सदन में चुप्पी और सड़क पर विरोधयह दोगलापन कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करता है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस ने वही रास्ता चुना हैजिस पर स्वतंत्रता संग्राम के समय मुस्लिम लीग चल रही थी।

कांग्रेस न तो लोकतंत्र का सम्मान करती है और न ही संविधानन्यायपालिका और विपक्ष के अधिकारों का। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि इन मुद्दों पर कांग्रेस का इतिहास काफी दागदार रहा है। ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है। हाल ही में नेशनल हेरल्ड मामले में ईडी की ओर से न्यायालय में दाखिल आरोप-पत्र से कांग्रेस के संविधान और न्यायालय के सम्मान की चिंता की पोल खुल जाती है। जांच एजेंसी द्वारा किसी मामले की जांच के बाद आरोपी के विरुद्ध न्यायालय में आरोप-पत्र दाखिल करना न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा हैपर इसके विरोध में कांग्रेस नेतृत्व ने जिस तरह कार्यकर्ताओं से देशव्यापी प्रदर्शन का आह्वान कियावह क्या हैक्या इसे न्यायिक प्रक्रिया को गैर-संवैधानिक तरीके से प्रभावित करने की कोशिश नहीं माना जाना चाहिएसंविधानन्यायपालिकालोकतंत्र की दुहाई देने वाले राहुल गांधी और कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए कि जब केंद्र में मनमोहन सरकार थीतब सलाहकार परिषद संविधान की किस व्यवस्था के तहत बनाई गई थी। सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली इस परिषद को किस लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत संविधानेत्तर अधिकार दिए गए थे?

राहुल को केंद्रीय मंत्रिमंडल से पारित प्रस्ताव को संविधान के किस अधिकार और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत सार्वजनिक रूप से फाड़ने का अधिकार मिला थाशाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए संसद से कानून बनाकर पलटना, 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय मानने के बजाए देश पर आपातकाल थोपनालोकसभा का कार्यकाल बढ़ाना तथा समूचे विपक्ष को जेल में ठूंस देनाऐसे कदम उठाकर कांग्रेस की तत्कालीन सरकारों ने किस संविधान की रक्षा की थीक्या यह न्यायपालिका का सम्मान और लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन था?

वक्फ संशोधन विधेयक को संविधान पर हमला और मुसलमानों की मजहबी स्वतंत्रता छीनने का षड्यंत्र बताना यह साबित करता है कि कांग्रेस को मुसलमानों से सहानुभूति कमउनका सियासी इस्तेमाल करने में ज्यादा दिलचस्पी है। अगर ऐसा न होता तो देश में अब तक सबसे अधिक समय तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस को वक्फ सम्पत्तियों को कुछ बड़े मुस्लिम नेताओं के कब्जे में रख देने के आरोपों का तथ्यपरक जवाब लेकर सामने आना चाहिए था। आंकड़ों के साथ यह बताना चाहिए था कि वक्फ सम्पत्तियों से इतने गरीब मुसलमानोंविधवाओं व गरीब मुस्लिम महिलाओं की सहायता की गई।

वक्फ के नाम पर देश में लाखों हेक्टेयर भूमि है। अगर इसका ठीक से उपयोग हुआ होता और कांग्रेस मुस्लिमों को सिर्फ वोट बैंक न समझती तो स्थिति कुछ और होती। आज मुस्लिम समुदाय के भीतर से संशोधित वक्फ कानूनों के समर्थन में आवाजें उठ रही हैंसमुदाय के लोग ही वक्फ बोर्डों पर सम्पत्तियां हड़पने के आरोप लगा रहे हैं। मुस्लिम समुदाय के लोग कांग्रेस सहित उन सभी दलों से जवाब मांग रहे हैंजो संशोधनों का विरोध कर रहे हैं।

यह तो आने वाला समय बताएगा कि नए वक्फ कानून का विरोध कांग्रेस को कितने मुस्लिम वोट दिला पाएगालेकिन वक्फ कानूनों के विरोध के बहाने उसकी हिंदू विरोधी होने की प्रवृत्ति एक बार फिर सामने आ गई है। हालांकि वक्फ कानूनों का मजहब की आजादी या मस्जिदों या अन्य मजहबी मामलों की व्यवस्थाओं से कोई लेना-देना नहीं है। इसका संबंध सिर्फ दान में दी गई जमीन अथवा मुस्लिमों की बेनामी जमीन और सम्पत्ति के प्रबंधन से हैलेकिन बांग्लादेश से लेकर संशोधित वक्फ कानूनों के विरोध के बहाने जिस तरह मुस्लिमों के ध्रुवीकरण की कोशिश हो रही हैवह चिंताजनक है। पश्चिम बंगाल में हो रहे हिंदुओं के उत्पीड़न पर कांग्रेस की चुप्पी भी सवाल खड़े करती है। आखिर क्यों कांग्रेस ममता सरकार पर सवाल नहीं उठा रही है?

क्या कांग्रेस को मुस्लिम वोटों के लिए हिंदुओं के उत्पीड़न से भी गुरेज नहीं हैभले ही वक्फ का इतिहास आजादी से पहले का हैलेकिन पहला वक्फ बोर्ड अधिनियम तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू सरकार ने बनाया था। फिर उसी सरकार ने 1955 में इसमें संशोधन किया और वक्फ बोर्ड को ज्यादा अधिकार दे दिए। इसके बाद 1995 में कांग्रेस सरकार ने ही इसमें संशोधन कर वक्फ को पहले से ज्यादा अधिकार दे दिए। इसके बाद 2013 में संशोधन कर वक्फ बोर्डों को असीमित अधिकार दे दिए गए। इसकी आड़ में वक्फ बोर्ड ने देश भर में बड़ी संख्या जमीन ही नहीं हथियाईबल्कि सरकारी जमीनों पर भी कब्जा कर लिया।

जानकार कहते हैं कि कांग्रेस सरकारों का वक्फ एक्ट देश के इस्लामीकरण के षड्यंत्र का हिस्सा था। इसकी आड़ में देश में मुगलिया सल्तनत को कायम रखने की साजिश की गई। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने देश में राज व्यवस्था का ऐसा मॉडल तैयार कियाजो भारत में एक अन्य पाकिस्तान तैयार करने वाला था। तो कांग्रेस की नीति और नीयत पर संशय खड़ा होना स्वाभाविक है। कांग्रेस सरकार की कार्यशैली और नीतियां सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण तक सीमित नहीं हैं। कांग्रेस सत्ता पाने के लिए भारत के इस्लामीकरण के लिए षड्यंत्ररूपी बीज को खाद-पानी भी देती चली आ रही है। कांग्रेस के शासनकाल में हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद का झूठा विमर्श गढ़ने के लिए कितने गहरे षडयंत्र रचे गए। इसे स्थापित करने के लिए एक कपोल कल्पित कथानक लिखा गया। आतंकी तहव्वुर राणा की गिरफ्तारी के बाद एक-एक कर वे षड्यंत्र उजागर हो रहे हैं।

संविधान को ठेंगा दिखा कर मुस्लिम आरक्षण की पैरवीकांग्रेस शासित राज्यों द्वारा न्यायालय के निर्देशों की अनदेखी कर बार-बार मुस्लिमों को आरक्षण की घोषणासलमान खुर्शीद जैसे नेताओं द्वारा हिंदुत्व की तुलना बोको हरम और आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों से करनामुंबई आतंकी हमले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं हिंदू संगठनों का हाथ बतानायह साबित करता है कि कांग्रेस अब मुस्लिम तुष्टिकरण से आगे हिंदुओं का उत्पीड़न कर देश के स्वरूप को बदलने के षड्यंत्र तक पहुंच गई है।

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