देश की आर्द्रभूमि का दो महीने में निर्धारण करें

 आर्द्रभूमि (वेटलैंड) को लेकर सुप्रीम कोर्ट का सख्त निर्देश

देश की आर्द्रभूमि का दो महीने में निर्धारण करें

नई दिल्ली, 24 अगस्त (एजेंसियां)। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों की लापरवाही पर नाराजगी जताते हुए आर्द्रभूमि की सीमा तय करने का आदेश दो महीने में पूरा करने को कहा है। अदालत ने चेतावनी दी कि पालन न करने पर राज्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से पेश होना होगा। छोटे आर्द्रभूमि की सुरक्षा पर भी जोर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि सभी आर्द्रभूमि की जानकारी राज्यों की वेबसाइट पर सार्वजनिक की जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में आर्द्रभूमियों की सीमा तय करने और उसकी जमीनी हकीकत की प्रक्रिया पर गंभीर नाराजगी जताई है। अदालत ने साफ कहा कि राज्य आर्द्रभूमियों प्राधिकरण कछुए की चाल से काम कर रहे हैं। इसलिए सभी राज्यों को आदेश दिया गया है कि दो महीने के भीतर सभी आर्द्रभूमियों की सीमा चिन्हित कर इसे सार्वजनिक करें। अदालत ने यह भी कहा कि यदि निर्देश का पालन नहीं हुआ तो संबंधित राज्यों के पर्यावरण विभाग के सचिवों को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होना होगा।

न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने कहा कि अब तक राज्यों द्वारा की गई कवायद बेहद निराशाजनक रही है। कोर्ट ने कहा कि पहले भी दिशा-निर्देश दिए गए थेलेकिन नतीजे सकारात्मक नहीं निकले। अदालत ने साफ चेतावनी दी कि अगर राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण ने इस आदेश को गंभीरता से नहीं लिया तो कोर्ट मजबूरन कठोर आदेश पारित करेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि आर्द्रभूमि की पहचान की जा चुकी हैइसलिए अब राज्यों की जिम्मेदारी है कि वे इन्हें अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करें। अदालत ने आदेश दिया कि यह काम तुरंत पूरा किया जाए और अनुपालन का शपथपत्र दायर किया जाए। साथ ही यह भी कहा गया कि अगली सुनवाई से पहले यह प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए। कोर्ट ने 19 अगस्त को दिए अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार को भी राज्यों के आर्द्रभूमि प्राधिकरणों के साथ समन्वय स्थापित करना होगा और लंबित अधिसूचनाओं को जल्द जारी करना होगा।

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पीठ ने यह भी कहा कि आंकड़ों के अनुसार 2.25 हेक्टेयर से छोटी आर्द्रभूमि की संख्या लगभग 5,55,557 है और इन्हें भी मौजूदा नियमों के अनुसार चिन्हित करना अनिवार्य है। अदालत ने कहा कि राज्यों द्वारा दाखिल किए जाने वाले शपथपत्रों में यह भी बताया जाना चाहिए कि इन छोटी आर्द्रभूमि की रक्षा के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं और आगे क्या कदम उठाए जाएंगे। अदालत ने यह मामला 7 अक्टूबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।

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यह मामला पक्षी प्रेमी आनंद आर्यअधिवक्ता एम.के. बालाकृष्णन और एनजीओ वनशक्ति द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर चल रहा है। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ ने हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से कहा कि इसरो ने पहले ही 2,31,195 आर्द्रभूमि (2.25 हेक्टेयर से बड़े) की पहचान कर ली हैजबकि छोटे आर्द्रभूमि की संख्या 5,55,557 है। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि इन सभी आर्द्रभूमि को सुरक्षित करने की दिशा में जल्द और ठोस कार्रवाई की जाएक्योंकि यह पर्यावरण और जैव विविधता के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।

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