बंगाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत की उम्मीद
कोलकाता, 07 सितंबर (एजेंसियां)। पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में केंद्र सरकार के द्वारा लागू किए गए नए नियमों का बड़ा असर हो सकता है। भाजपा को उम्मीद है कि इसका उसे चुनाव में फायदा मिलेगा। केंद्र सरकार ने इमिग्रेशन और फॉरेनर्स एक्ट- 2025 के तहत कई नियम और आदेशों को अधिसूचित कर दिया है। एक सितंबर से लागू हुए इन नियमों के तहत विदेशी नागरिकों के भारत में प्रवेश, रुकने और निकलने की व्यवस्था में बड़े बदलाव किए गए हैं।
इन नियमों के लागू होने से यह होगा कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर भारत आए अल्पसंख्यक (मुख्य रूप से गैर-मुस्लिम) बिना वीजा और पासपोर्ट शर्तों के भारत में रह सकते हैं। शर्त यह है कि वे 31 दिसंबर 2024 तक भारत में आ चुके हों। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के तहत भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए 31 दिसंबर, 2014 की कटऑफ की तारीख अभी भी यही है। ऐसे में नए नियम उन लोगों पर भी लागू होंगे जिन्हें दीर्घकालिक वीज़ा चाहिए। भारत की नागरिकता लेने के लिए उन्हें नैचुरलाइजेशन की प्रक्रिया से गुजरना ही होगा।
पश्चिम बंगाल में भाजपा को उम्मीद है कि इस कदम से उसे मतुआ वोटरों को अपने साथ लाने में मदद मिलेगी जबकि राज्य सरकार की अगुवाई कर रही टीएमसी ने आरोप लगाया है कि 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले यह अल्पसंख्यकों को डराने की चाल है। अनुसूचित जाति वर्ग में आने वाले मतुआ समुदाय के लोग मूल रूप से बांग्लादेश के हैं। मतुआ लोग 1947 में हुए देश के विभाजन और 1971 में बांग्लादेश बनने के दौरान हुए युद्ध के बाद पश्चिम बंगाल में आ गए। पश्चिम बंगाल में उनके असर को देखते हुए भाजपा व टीएमसी दोनों ही उन्हें अपने साथ लाने की कोशिश करती हैं।
भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सीएए लागू करने का वादा किया था। इस वजह से उसे मतुआ समुदाय का वोट मिला और भाजपा को तब पश्चिम बंगाल में अपनी सबसे बड़ी जीत मिली। भाजपा ने राज्य की 42 में से 18 लोकसभा सीटें जीती थी। पश्चिम बंगाल सरकार मानती है कि राज्य में मतुआ समुदाय की आबादी लगभग 17 प्रतिशत है और कम से कम 30 विधानसभा सीटों पर इस समुदाय के मतदाताओं का असर है। जबकि मतुआ समुदाय के नेता कहते हैं कि उनकी हिस्सेदारी 20 प्रतिशत तक है और वे विधानसभा की 40–45 सीटों को प्रभावित करते हैं।
बिहार की तरह पश्चिम बंगाल में भी वोटर लिस्ट के एसआईआर को लेकर मतुआ समुदाय के लोग परेशान हुए और उन्होंने कांग्रेस से सम्पर्क किया। यहां तक कि एक स्थानीय भाजपा नेता बिहार जाकर विपक्ष के नेता राहुल गांधी से भी मिले। इससे भाजपा के भीतर खलबली मच गई। भाजपा जानती है कि अगर उसे पश्चिम बंगाल में सरकार बनानी है तो हिंदू मतदाताओं को पूरी तरह अपने साथ रखना होगा और इसमें मतुआ समुदाय काफी अहम है।
भाजपा के नेताओं का मानना है कि नए नियम लागू होने के बाद पश्चिम बंगाल की राजनीति बदल सकती है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, हमें उम्मीद है कि अगले विधानसभा चुनावों में ध्रुवीकरण और बढ़ेगा। नए नियम से न सिर्फ मतुआ वोट मिलेंगे बल्कि हिंदू मतदाताओं में भी भरोसा बढ़ेगा। ममता बनर्जी मतुआ वोटों की अहमियत समझती हैं। ममता ने विधानसभा में कहा, भाजपा बंगाल विरोधी है और उसके नेता चोर हैं। चुनाव आते ही ये सीएए और एनआरसी की बात करने लगते हैं। 2019 में आपने कहा था सबको नागरिकता मिलेगी। लेकिन क्या हुआ?
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