यूपी में जाति आधारित रैलियों पर पूरी तरह रोक

हाईकोर्ट के फैसले से निकला जातिवाद के रोग का इलाज

 यूपी में जाति आधारित रैलियों पर पूरी तरह रोक

सरकारी दस्तावेजों में भी नहीं होगा जाति का जिक्र

लखनऊ, 22 सितंबर (एजेंसियां)। जिस सामाजिक बीमारी का कानूनी इलाज आज तक विधायिका नहीं खोज पाई उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ढूंढ़ निकाला। हाईकोर्ट के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने आदेश जारी कर प्रदेश में जाति आधारित सभी रैलियों पर रोक लगा दी है। सरकार की तरफ से जारी आदेश के मुताबिक सरकारी दस्तावेजों और थानों में दर्ज होने वाली एफआईआर में भी जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में जाति आधारित रैलियों और सम्मेलनों पर पूरी तरह से रोक लगाने का औपचारिक आदेश जारी कर दिया है। इसके साथ ही यह भी आदेश दिया गया है कि पुलिस रिकॉर्डसरकारी दस्तावेजों और सार्वजनिक स्थानों पर जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा। इसके तहत एफआईआर और अरेस्ट मेमो में जाति की जगह माता-पिता के नाम लिखे जाएंगे। हालांकिएससी/एसटी एक्ट जैसे मामलों मेंजहां जाति का उल्लेख कानूनी रूप से आवश्यक हैवहां इस नियम में छूट रहेगी। 

आदेश के मुताबिक अब राज्य में किसी भी प्रकार की जाति आधारित रैलियों या आयोजनों पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। पुलिस रिकॉर्ड्स में भी आवश्यक बदलाव होगा और एफआईआरगिरफ्तारी मेमो और अन्य सभी पुलिस दस्तावेजों से जाति का कॉलम हटा दिया जाएगा। आरोपियों की पहचान के लिए अब माता-पिता के नाम दर्ज किए जाएंगे। सरकारी और कानूनी दस्तावेजो में भी जाति से संबंधित कॉलम हटा दिए जाएंगे। सार्वजनिक स्थलों से भी सारे जातीय संकेत हटाए जाएंगे। पुलिस थानों के नोटिस बोर्डवाहनों और साइनबोर्ड्स से जातीय संकेत और नारे हटा दिए जाएंगे। सोशल मीडिया पर सख्त निगरानी रखी जाएगी। जाति आधारित कंटेंट को बढ़ावा देने वाले सोशल मीडिया कंटेट को सख्त कानूनी घेरे में लिया जाएगा और आईटी नियमों के तहत कार्रवाई होगी। एससी/एसटी एक्ट में भी वहीं पर छूट मिलेगी जहां कानूनी रूप से जाति का उल्लेख आवश्यक होजैसे अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम। यह फैसला जातिगत भेदभाव को खत्म करने और समाज में समानता लाने के उद्देश्य से उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम हैजो जातिगत पहचान के बजाय सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित करेगा।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के इस फैसले को पूरे राज्य में जातिगत भेदभाव को खत्म करने की दिशा में ऐतिहासिक और बेहतरीन कदम बताया जा रहा है। अब उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों पर रोक रहेगी। वहींसार्वजनिक जगहों परपुलिस रिकॉर्ड्स और सरकारी दस्तावेजों में भी किसी की जाति का जिक्र नहीं किया जाएगा। मुख्य सचिव की तरफ से यह निर्देश इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया फैसले के बाद जारी किए गए हैं। निर्देशों के अनुसार अब पुलिस रिकॉर्ड्सजैसे कि एफआईआर और गिरफ्तारी मेमो में किसी भी व्यक्ति की जाति नहीं बताई जाएगी। इसके अलावासरकारी और कानूनी दस्तावेजों में भी जाति वाले कॉलम को हटाने की तैयारी है। सरकार का तर्क है कि इस कदम के जरिए समानता को प्राथमिकता दी जाएगी।

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बड़ी बात यह है कि अब जाति आधारित रैलियों और कार्यक्रमों पर रोक रहेगी। इसके अलावाअगर कोई सोशल मीडिया पर जाति का महिमामंडन करेगा या उसके जरिए नफरत फैलाने की कोशिश करेगातो उसके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की जाएगी। जानकारी के लिए बता दें कि कुछ दिन पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की बेंच ने एक शराब तस्करी मामले में सुनवाई की थी। उस मामले में याचिकाकर्ता का नाम प्रवीण छेत्री था। उन्होंने इस बात पर नाराजगी जताई थी कि उनकी गिरफ्तारी के दौरान एफआईआर में उनकी जाति का जिक्र किया गया था। कोर्ट ने भी इसे संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ माना और जाति का महिमामंडन राष्ट्रविरोधी तक बता दिया। इसके बाद कोर्ट ने यूपी सरकार को जरूरी बदलाव करने का निर्देश दिया था और अब मुख्य सचिव की तरफ से आदेश जारी भी कर दिए गए हैं।

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