मोदी और नीतीश रहे संग-संग
राहुल-तेजस्वी का याराना भंग
पटना, 19 अक्टूबर (एजेंसियां)। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में पहले चरण के मतदान से पहले कई दिलचस्प समीकरण सामने आ रहे हैं। कांग्रेस के राहुल गांधी और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के तेजस्वी यादव का याराना भंग होता दिख रहा है। बिहार के चुनावी माहौल में यह सवाल सब तरफ उछल रहा है कि दोनों दलों के बीच फ्रेंडली फाइट है या खुली जंग। दूसरी तरफ पीएम मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संग-संग हैं। अमित शाह एनडीए के सहयोगी दलों में दरार नहीं पड़ने दे रहे हैं। बिहार के सियासी चौसर पर शह-मात की चाल में भाजपा नीत एनडीए गठबंधन बढ़त बनाता जा रहा है।
बिहार की सियासत में दोस्ती-दुश्मनी की नई इबारत लिखी जा रही है। महागठबंधन की युवा जोड़ी राहुल गांधी-तेजस्वी यादव टिकट बंटवारे के पहले पायदान पर ही भिड़ गई। दोनों कुछ नहीं बोल रहे, लेकिन दोनों दलों के सूरमा एक-दूसरे को जख्मी कर गए। यूं कहें कि नेट प्रैक्टिस में ही महागठबंधन के खिलाड़ी ऐसा भिड़े कि मुकाबले से पहले तमाम खिलाड़ी रिटायर्ड हर्ट होते दिख रहे हैं। वहीं, पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार की जोड़ी और टीम एकजुट है।
कांग्रेस-राजद के बीच सीट बंटवारे की खींचतान अब खुली जंग में बदल चुकी। करीब दर्जनभर सीटों पर दोनों दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिए। वैशाली से लालगंज, कहलगांव से राजापाकड़ तक दोस्ती में कुश्ती का नजारा साफ है। कांग्रेस के दलित नेता राजेश राम के मुकाबले राजद ने सुरेश पासवान को टिकट थमा दिया। पासवान ने साफ कहा, कई सीटों पर फ्रेंडली फाइट होगी। वहीं राजेश राम ने साफ कहा फाइट में फ्रेंडली कुछ नहीं होता। लड़ाई तो लड़ाई है।
कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी की रिपोर्ट को ठेंगा दिखाकर टिकट बंटवारे से असंतोष चरम पर है। वरिष्ठ नेता तारिक अनवर ने खुला सवाल उठाया कि जो कल तक कांग्रेस को कोसते थे, उन्हें टिकट कैसे? योगेंद्र यादव के करीबी अनुपम को टिकट मिलने से कार्यकर्ताओं में बगावत भड़क उठी है। राजद के भीतर भी कई सीटों पर नाराजगी, और कांग्रेस में नेतृत्व-संवाद की कमी से गठबंधन की एकता पर खतरा मंडरा रहा। मौजूदा स्थिति से खिन्न बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता और प्रदेश के शोध विभाग के अध्यक्ष आनंद माधव ने कहा कि हम राहुल गांधी को प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं, लेकिन वर्तमान व्यवस्था के खिलाफ आवाज नहीं उठाई तो ये कांग्रेस के लोकतांत्रिक मूल्यों और फासीवाद के खिलाफ हमारे संघर्ष को कमजोर करेगा। उन्होंने करीब 150 कांग्रेस के पूर्व विधायकों, जिलाध्यक्षों और पदाधिकारियों के साथ मीडिया से बात की और कहा कि हम आवाज उठा रहे हैं ताकि आलाकमान तक सच्चाई पहुंचे।
दूसरी तरफ शुरुआती रस्साकशी के बाद एनडीए में तालमेल बढ़िया दिख रहा है। गृह मंत्री अमित शाह ने जदयू-भाजपा संगठन और बूथ प्रबंधन की कमान खुद थामी। उन्होंने इसे चुनावी अनुशासन का नया मॉडल बताया। गृह मंत्री अमित शाह ने पटना के होटल मौर्यालोक पहुंचते ही संगठन के नट-बोल्ट कस दिए। पहले अलीनगर से पराजय की कगार पर खड़ी मैथिली ठाकुर के सामने बागी उम्मीदवार पप्पू सिंह को बिठाया और फिर औरंगाबाद सीट पर खड़े दो निर्दलीय उम्मीदवारों को भी समझा लिया। शाह के मैनेजमेंट ने पार्टी को रेस में वापसी का मौका दिया।
पीएम मोदी बिहार में 12 मेगा रैलियां करने वाले हैं। 23 अक्टूबर को सासाराम, भागलपुर, गया के बाद 28 अक्टूबर को पटना, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, फिर एक नवंबर को पूर्वी चंपारण, समस्तीपुर, छपरा और तीन नवंबर को पश्चिम चंपारण, सहरसा और अररिया में प्रधानमंत्री की रैली होगी। दूसरी तरफ चुनाव से पहले वोट चोरी का बवाल काटने वाले राहुल गांधी परिदृश्य से लापता हैं। कांग्रेस और महागठबंधन पर इसका प्रभाव खराब पड़ा है। बिहार का चुनाव विचारों से ज्यादा टीम मैनेजमेंट का है। महागठबंधन सीटों पर उलझा, टिकटों पर बिखरा और प्रचार पर अटका। एनडीए एकजुट रणनीति से मैदान पर हावी दिख रहा है। एक तरफ फ्रेंडली फाइट की जद्दोजहद तो दूसरी ओर नीतीश-मोदी की केमिस्ट्री। दीवाली के बाद हवाएं कैसी चलेंगी, उससे ही तय होगा कि 14 नवंबर को बिहार में सत्ता की दीवाली कौन मनाएगा। वैसे स्थितियां अभी से ही साफ होती दिखने लगी हैं।
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