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न्यायमूर्ति सूर्यकांत होंगे अगले मुख्य न्यायाधीश
केंद्र ने शुरू की नियुक्ति की औपचारिक प्रक्रिया
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नई दिल्ली, 24 अक्टूबर (वार्ता)। उच्चतम न्यायालय में न्यायिक नेतृत्व के अगले अध्याय की शुरुआत का संकेत देते हुए केंद्र सरकार ने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की सेवानिवृत्ति के मद्देनजर उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू कर दी है। कानून और न्याय मंत्रालय ने परंपरागत प्रक्रिया के तहत न्यायमूर्ति गवई को पत्र लिखकर उनसे उनके उत्तराधिकारी के नाम की अनुशंसा करने का अनुरोध किया है। भारत में लंबे समय से चली आ रही न्यायिक परंपरा के अनुसार, उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को ही आमतौर पर अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाता है। इसी परिप्रेक्ष्य में न्यायमूर्ति सूर्यकांत का नाम स्वाभाविक रूप से सामने आया है।
वर्तमान में न्यायमूर्ति गवई के बाद न्यायमूर्ति सूर्यकांत सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं। न्यायमूर्ति गवई द्वारा की जाने वाली अनुशंसा पर राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद न्यायमूर्ति सूर्यकांत औपचारिक रूप से भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश का पदभार ग्रहण कर सकते हैं। उनकी नियुक्ति के पश्चात उनका कार्यकाल 9 फरवरी 2027 तक रहेगा। इस तरह, न्यायमूर्ति सूर्यकांत का कार्यकाल लगभग 15 महीनों का होगा, जिसमें उनसे कई महत्वपूर्ण संवैधानिक और सामाजिक मुद्दों पर न्यायिक दृष्टि की अपेक्षा की जाएगी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत का जीवन और करियर एक आदर्श न्यायविद् की प्रेरक यात्रा को दर्शाता है। उनका जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में हुआ। उन्होंने 1981 में हिसार के सरकारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1984 में महार्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। कानून की पढ़ाई के बाद उन्होंने 1984 में हिसार जिला न्यायालय से अधिवक्ता के रूप में अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत की। एक वर्ष बाद, उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय, चंडीगढ़ में प्रैक्टिस शुरू की, जहां उन्होंने अपने अद्वितीय तर्कशक्ति, संविधान की गहरी समझ और समाजिक दृष्टिकोण के कारण शीघ्र ही अपनी अलग पहचान बना ली।
वर्ष 2000 में न्यायमूर्ति सूर्यकांत को हरियाणा का महाधिवक्ता नियुक्त किया गया। इस दौरान उन्होंने राज्य सरकार की ओर से कई महत्वपूर्ण मामलों में न्यायालय के समक्ष पक्ष रखा। अगले ही वर्ष 2001 में उन्हें ‘सीनियर एडवोकेट’ का दर्जा दिया गया और उसी वर्ष उन्हें पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अपने निर्णयों में हमेशा संवैधानिक मर्यादा, न्याय की पारदर्शिता और समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा को प्राथमिकता दी।
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वर्ष 2018 में उन्हें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया, जहां उनके प्रशासनिक कौशल और न्यायिक दृष्टि की व्यापक सराहना हुई। अगले ही वर्ष 2019 में वे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए। सर्वोच्च न्यायालय में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसलों में भागीदारी की। इनमें अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण को संवैधानिक ठहराने वाले संविधान पीठ के निर्णय में उनकी भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय रही।
उनका न्यायिक दृष्टिकोण हमेशा संतुलित और जनहित के अनुकूल रहा है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अपने कार्यकाल में संविधान, मानवाधिकार, प्रशासनिक पारदर्शिता और लोकहित से जुड़े एक हजार से अधिक मामलों में योगदान दिया है। उनके निर्णयों में न केवल कानून की व्याख्या बल्कि समाज में न्याय के संतुलन को स्थापित करने की भावना झलकती है।
वर्तमान में न्यायमूर्ति सूर्यकांत राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के पदेन कार्यकारी अध्यक्ष हैं, जो देश में मुफ्त कानूनी सहायता और न्याय तक समान पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अतिरिक्त, वे नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची के विजिटर भी हैं, जहां वे विधि शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता और नैतिकता के संवर्धन पर जोर देते हैं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत का कार्यकाल ऐसे समय में शुरू होगा जब न्यायपालिका कई संवेदनशील मुद्दों से जूझ रही है—चाहे वह न्यायिक पारदर्शिता हो, अदालतों में लंबित मामलों का निपटारा या नागरिक अधिकारों की रक्षा। ऐसे में उनकी नियुक्ति से न्यायपालिका में एक सशक्त, संतुलित और संवेदनशील दृष्टिकोण के आने की उम्मीद की जा रही है।

