#एसजयशंकर, #संयुक्तराष्ट्र, #UN80Years, #UNReforms, #UNSC, #आतंकवाद, #ग्लोबलसाउथ, #IndiaInUN, #ForeignPolicy, #Multilateralism, #PahalgamAttack, #InternationalRelations
जयशंकर ने यूएन सदस्यों पर आतंकी समूहों को बचाने का आरोप लगाया
'ऑल इज नॉट वेल इन UN'
On
नई दिल्ली, 24 अक्टूबर (एजेंसियां)। संयुक्त राष्ट्र (UN) की स्थापना के 80 वर्ष पूरे होने के अवसर पर नई दिल्ली में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली और उसकी निष्पक्षता पर गहरा सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि “ऑल इज नॉट वेल इन यूएन (All is not well in UN)” — यह वक्तव्य उस बढ़ती वैश्विक असंतुष्टि को रेखांकित करता है, जो विश्व के कई विकासशील देशों के भीतर लंबे समय से महसूस की जा रही है। जयशंकर ने न केवल संयुक्त राष्ट्र की मौजूदा संरचना पर सवाल उठाए, बल्कि सुरक्षा परिषद (UNSC) के कुछ सदस्य देशों पर आतंकी संगठनों को संरक्षण देने का गंभीर आरोप भी लगाया।
UN पर पक्षपात का आरोप
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि आज का संयुक्त राष्ट्र अपनी मूल भावना और उद्देश्य से काफी दूर चला गया है। उन्होंने कहा कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि संयुक्त राष्ट्र में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। यह न तो सभी देशों का समान प्रतिनिधित्व करता है और न ही दुनिया की बदलती जरूरतों के अनुरूप काम कर रहा है। जयशंकर के अनुसार, अब यूएन के भीतर निर्णय लेने की प्रक्रिया बहुत सीमित देशों के हितों पर केंद्रित हो गई है।
उन्होंने कहा कि बहसें अब अधिक विभाजित होती जा रही हैं और संयुक्त राष्ट्र के कामकाज में ठहराव नजर आ रहा है। यह संस्था उन देशों के लिए भी अब प्रभावी नहीं रही जो ग्लोबल साउथ (Global South) के हिस्से हैं और विकास की राह पर आगे बढ़ना चाहते हैं। जयशंकर ने कहा कि “संयुक्त राष्ट्र का आतंकवाद के प्रति रवैया उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। जब किसी संस्था की प्रतिक्रिया पक्षपातपूर्ण हो जाती है, तो वह अपने नैतिक आधार को खो देती है।”
उन्होंने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र की मौजूदा नीतियां न केवल राजनीतिक रूप से निष्क्रिय हैं बल्कि कई बार विकासशील देशों की वास्तविक चुनौतियों को नजरअंदाज कर देती हैं। उनका मानना है कि वैश्विक दक्षिण के देश अब संयुक्त राष्ट्र में अपनी उपेक्षा से असंतुष्ट हैं और इस संस्था के प्रति विश्वास धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है।
Read More MahaKumbh 2025: छा गई हनुमान मंदिर कॉरिडोर और पक्के घाट की सेल्फी, दर्शनार्थियों की बढ़ गई तादाद
यूएन में सुधार की मांग
जयशंकर ने कहा कि वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में अनेक विवाद, संघर्ष और मानवीय संकट पैदा हो चुके हैं। यह केवल व्यक्तिगत देशों को नहीं बल्कि पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने कहा, “ग्लोबल साउथ इस पीड़ा को गहराई से महसूस कर रहा है। आज संयुक्त राष्ट्र में सुधार की आवश्यकता सिर्फ एक मांग नहीं, बल्कि यह एक वैश्विक अनिवार्यता बन चुकी है।”
विदेश मंत्री ने यह स्पष्ट किया कि संयुक्त राष्ट्र के ढांचे में सुधार के बिना अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था संतुलित नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि आज भी निर्णय लेने वाले मंचों पर वही पुराने देश हावी हैं, जबकि 21वीं सदी की वास्तविकताएं बिल्कुल अलग हैं। ऐसे में यूएन रिफॉर्म्स (UN Reforms) अब टालने योग्य नहीं हैं। भारत लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए नए देशों को शामिल किया जाए ताकि दुनिया की विविधता और समानता को उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।
आतंकी संगठनों को बचाने का आरोप
जयशंकर का सबसे तीखा प्रहार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कुछ सदस्य देशों पर था। उन्होंने कहा कि जब सुरक्षा परिषद का कोई मौजूदा सदस्य आतंकवादी हमलों के जिम्मेदार संगठनों का बचाव करता है, तो इससे संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता पर गंभीर आघात होता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि “जब पहलगाम जैसे बर्बर आतंकी हमले की जिम्मेदारी लेने वाले संगठनों का खुलकर बचाव किया जाता है, तो यह संस्था की नैतिकता और निष्पक्षता को खत्म कर देता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवाद के पीड़ितों और अपराधियों को एक ही स्तर पर रखकर “वैश्विक रणनीति” का नाम देना मानवता के साथ सबसे बड़ा धोखा है। जयशंकर ने इस अवसर पर सवाल उठाया कि आखिर दुनिया कब तक राजनीतिक स्वार्थ के नाम पर आतंक के मुद्दे पर दोहरा रवैया अपनाती रहेगी।
उम्मीद छोड़नी नहीं चाहिए
हालांकि अपने कठोर रुख के बीच विदेश मंत्री ने आशा का संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि “हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। भले ही संयुक्त राष्ट्र की प्रणाली में खामियां हों, लेकिन बहुपक्षवाद (Multilateralism) के सिद्धांत को हमें त्यागना नहीं चाहिए।” उन्होंने कहा कि यह संस्था अभी भी दुनिया को एक मंच पर ला सकती है, बशर्ते सदस्य देश एकता और साझा उद्देश्य की भावना के साथ आगे बढ़ें।
जयशंकर ने अपने भाषण के अंत में कहा कि यह वर्षगांठ न केवल आत्ममंथन का अवसर है बल्कि यह दुनिया को यह सोचने का समय भी देती है कि आखिर हमें किस दिशा में बढ़ना है। उन्होंने कहा कि “भारत बहुपक्षवाद का समर्थन करता रहेगा, लेकिन यह भी चाहता है कि वह बहुपक्षवाद प्रभावी, समावेशी और न्यायपूर्ण हो।”

