वार्ताकार नियुक्त, विधानसभा चुनाव के पहले होगा खेला
केंद्र सरकार ने खोली गोरखालैंड की मांग वाली पुरानी फाइल
पूर्व डिप्टी एनएसए पंकज कुमार सिंह वार्ताकार (इंटरलोक्यूटर) नियुक्त
नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (एजेंसियां)। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के पहले केंद्र सरकार गोरखालैंड राज्य की ऐतिहासक मांग का वारान्यारा कर लेने की तैयारी में है। केंद्र सरकार ने हाल ही में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग पहाड़ियों में गोरखा समुदाय की लंबे समय से चली आ रही मांगों को पूरा करने के लिए पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पंकज कुमार सिंह को अपना वार्ताकार (इंटरलोक्यूटर) नियुक्त किया है। इस नियुक्ति से गोरखा लैंड राज्य की मांग का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है।
दार्जिलिंग के इंटरलोक्यूटर की नियुक्ति तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के बीच एक नए विवाद का मुद्दा बन गई है। मामला इतना बढ़ गया है कि टीएमसी प्रमुख मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखकर इस नियुक्ति को सहकारी संघवाद की भावना के खिलाफ बताया और इसे रद्द करने की मांग की है। अप्रैल-मई 2026 में होने वाले बंगाल विधानसभा के चुनावों को देखते हुए, अलग गोरखालैंड राज्य का मुद्दा दार्जिलिंग क्षेत्र में एक अलग राजनीतिक समीकरण की स्थिति पैदा करने वाला है।
अलग दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र का मुद्दा एक सदी पुराना है, लेकिन यह 1980 के दशक में सुर्खियों में आया। उस समय गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के नेता सुभाष घीसिंग ने गोरखालैंड शब्द गढ़ा था, जिसका मतलब दार्जिलिंग पहाड़ियों और आस-पास के डुआर्स और तराई क्षेत्रों को मिलाकर एक अलग राज्य बनाना था। सुभाष घीसिंग ने एक जोरदार आंदोलन शुरू किया था। 1988 में दार्जिलिंग पहाड़ियों के कुछ हिस्सों पर शासन करने के लिए दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल (डीजीएचसी) नाम की एक सेमी-ऑटोनॉमस बॉडी बनाई गई थी। डीजीएचसी ने 23 साल तक पहाड़ियों पर राज किया। लेकिन 2004 में जब घिसिंग के पूर्व सहयोगी बिमल गुरुंग और कुछ अन्य जीएनएलएफ नेताओं ने अलग होकर एक अलग पार्टी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) बनाने का फैसला किया, तो गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन फिर से शुरू हो गया। 2011 में दार्जिलिंग पहाड़ियों पर शासन करने के लिए एक और सेमी-ऑटोनॉमस बॉडी गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) बनाई गई। लेकिन अलग राज्य की मांग को लेकर बार-बार झड़पें और मशक्कतें होती ही रहीं।
वर्ष 2013 में, जब कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्लूसी) ने आंध्र प्रदेश से अलग तेलंगाना राज्य बनाने का प्रस्ताव पास किया और इसकी सिफारिश कांग्रेस के ही नेतृत्व वाली तत्कालीन केंद्र सरकार को भेजी, तो जीजेएम ने पहाड़ियों में अपना आंदोलन फिर से शुरू कर दिया। उन्होंने पहाड़ियों में बंद का आह्वान किया, जिसके बाद वहां अर्धसैनिक बल तैनात करना पड़ा। 2017 में टीएमसी के नेतृत्व वाली बंगाल सरकार ने पहाड़ियों के सरकारी स्कूलों में बांग्ला भाषा को अनिवार्य भाषा घोषित किया, तो एक नया आंदोलन शुरू हो गया। यह आंदोलन हिंसक हो गया और पुलिस के साथ झड़पों में 11 प्रदर्शनकारी मारे गए। इस घटना के बाद ही जीजेएम ने 104 दिनों तक दार्जिलिंग बंद का सफल आंदोलन चलाया था।
बहरहाल, गोरखालैंड की मांग वाली फाइल फिर से खोल कर केंद्र सरकार ने इसके लिए अपना वार्ताकार नियुक्त कर दिया है। टीएमसी नेताओं ने वार्ताकार के रूप में पूर्व आईपीएस अफसर पंकज कुमार सिंह की नियुक्ति को आने वाले बंगाल चुनावों से पहले गोरखा वोटरों को लुभाने के लिए एक राजनीतिक हथकंडा बताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर ममता बनर्जी अपना विरोध जता चुकी हैं। अपने पत्र में ममता ने कहा, मुझे यह जानकर हैरानी और दुख हुआ है कि भारत सरकार ने पंकज कुमार सिंह को पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग हिल्स, तराई और डुआर्स इलाकों में गोरखाओं से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करने के लिए इंटरलोक्यूटर नियुक्त किया है। यह नियुक्ति पश्चिम बंगाल सरकार से बिना किसी सलाह-मशविरा किए की गई है, जबकि ये मुद्दे सीधे तौर पर गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) के तहत आने वाले इलाके के शासन, शांति और प्रशासनिक स्थिरता से जुड़े हैं, जो पश्चिम बंगाल सरकार के तहत एक ऑटोनॉमस बॉडी है।
ममता ने यह भी कहा कि ऐसा एकतरफा कदम कोऑपरेटिव फेडरलिज्म की भावना के खिलाफ है, जो हमारे संविधान के बुनियादी सिद्धांतों में से एक है। ममता ने मोदी से अपील की कि वे पश्चिम बंगाल सरकार से पहले और ठीक से सलाह-मशविरा किए बिना जारी किए गए इस आदेश पर फिर से विचार करें और इसे रद्द करें। उत्तर बंगाल विकास मंत्री उदयन गुहा ने कहा, यह नियुक्ति वोट बटोरने की भाजपाई कोशिश है। यह साफ है कि यह विधानसभा चुनावों से पहले दार्जिलिंग और आस-पास के इलाकों के लोगों के वोट पाने की एक और कोशिश है। इस कदम के पीछे भाजपा का हाथ है। पहले भी बातचीत हुई थी लेकिन कुछ नहीं हुआ। एक बार फिर, भाजपा चुनाव के समय अलग राज्य के मुद्दे को हवा देकर तनाव भड़काने और लोगों को बांटने की कोशिश कर रही है।
भाजपा और जीजेएम और जीएनएलएफ समेत ज्यादातर पहाड़ी पार्टियों ने इस नियुक्ति का स्वागत किया है। इस मुद्दे पर दार्जिलिंग के कुछ नेता ममता के रुख से नाराज हैं। जीजेएम के जनरल सेक्रेटरी रौशन गिरी ने कहा कि उनकी पार्टी ने इंटरलोक्यूटर की नियुक्ति का स्वागत किया है क्योंकि जीटीए लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने में नाकाम रहा है। हमने केंद्र सरकार के इस कदम का स्वागत किया है कि उसने हमारी बात सुनने और पहाड़ियों और आस-पास के इलाके के लिए एक स्थायी राजनीतिक समाधान खोजने के लिए एक इंटरलोक्यूटर नियुक्त किया है। अलग राज्य के मुद्दे पर, हम बातचीत के लिए तैयार हैं। साथ ही, 11 गोरखा सब-ग्रुप्स के लिए अनुसूचित जनजाति (एसटी स्टेटस) का मुद्दा भी है। हम एक संवैधानिक संस्था चाहते हैं। जीटीए एक मिनी-डेवलपमेंट एजेंसी है जो फेल हो गई है।
गिरी ने कहा, सीएम ममता बनर्जी का पीएम नरेंद्र मोदी को इंटरलोक्यूटर की नियुक्ति रद्द करने के लिए लिखना बिल्कुल बेतुका है। 12 अक्टूबर 2021 को हुई तीन-तरफा मीटिंग में राज्य सरकार मौजूद नहीं थी। फिर 4 अप्रैल 2025 को एक और तीन-तरफा मीटिंग में भी राज्य सरकार ने हिस्सा नहीं लिया। राज्य सरकार ने हमेशा दिखाया है कि उसे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। तो अब वह क्यों रिएक्ट कर रही है और रद्द करने की मांग कर रही है?
जीएनएलएफ ने भी इस अपॉइंटमेंट का स्वागत किया है। इसके अध्यक्ष मान घिसिंग ने प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने गोरखा समुदाय के लिए एक स्थायी राजनीतिक समाधान खोजने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए पंकज कुमार सिंह को सरकार का प्रतिनिधि नियुक्त किया है। जीएनएलएफ प्रमुख ने कहा, हमें पूरा विश्वास है कि यह सबको साथ लेकर चलने वाली और सलाह-मशविरे वाली प्रक्रिया गोरखा समुदाय की लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक आकांक्षाओं के लिए एक ठोस, न्यायपूर्ण और स्थायी समाधान का रास्ता साफ करेगी। भाजपा के दार्जिलिंग सांसद राजू बिस्टा ने कहा, केंद्र सरकार ने इंटरलोक्यूटर नियुक्त करके यह दिखाया है कि वह दार्जिलिंग पहाड़ियों और गोरखाओं के मुद्दों को लेकर गंभीर है। ममता बनर्जी ने इसके खिलाफ पीएम चिट्ठी लिखी है, जो राज्य सरकार का अड़ियल रवैया प्रदर्शित करता है।
2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पहाड़ी इलाकों में दो सीटें दार्जिलिंग और कर्सियांग जीतीं। जबकि तीसरी सीट कलिम्पोंग भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) ने जीती थी, जिसके प्रमुख अनित थापा है। अनित थापा ममता बनर्जी के करीबी माने जाते हैं। 2011 और 2016 के विधानसभा चुनावों में जीजेएम ने ये तीनों सीटें जीती थीं। लोकसभा चुनाव में भाजपा वर्ष 2009 से लगातार दार्जिलिंग सीट जीतती आ रही है। 2022 में 45 सदस्यों वाले जीटीए के पिछले चुनावों में, बीजीपीएम ने 27 सीटें जीती थी और थापा इसके चेयरमैन बने थे।
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