सूचना के अधिकार से हुए कई बड़े खुलासे
सीआईसी की रिपोर्ट बता रही आरटीआई की असलियत
लगातार बढ़ रहा है आरटीआई का इस्तेमाल
नई दिल्ली, 18 अक्टूबर (एजेंसियां)। सूचना के अधिकार को लेकर कांग्रेस पार्टी ने केंद्र सरकार पर जो आरोप लगाए वह भी तथ्यात्मक आधार पर झूठा साबित हुआ है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरटीआई को कमजोर करने का आरोप लगाया था और कहा था कि सूचनाएं छुपाई जा रही हैं। लेकिन तथ्यों और आंकड़ों को सामने रखें तो तस्वीर कांग्रेस के दावे के ठीक विपरीत है। केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) की ताजा रिपोर्ट और आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार के कार्यकाल में आरटीआई न सिर्फ मजबूत हुआ, बल्कि और आसान, तेज एवं पारदर्शी बना। कोविड जैसे मुश्किल वक्त में भी आरटीआई का डिस्पोजल रेट बढ़ा, वह भी डिजिटल इंडिया की बदौलत।
कांग्रेस ने अक्टूबर 2025 में आरटीआई के 20 साल पूरे होने पर मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला था। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि सरकार आरटीआई को क्रमशः खोखला कर रही है। डेटा प्रोटेक्शन लॉ के नाम पर सूचनाएं रोकने की कोशिश हो रही है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पांच बड़े मुद्दे गिनाए, पीएम की डिग्री, फर्जी राशन कार्ड, नोटबंदी, राफेल डील और इलेक्टोरल बॉन्ड्स। उनका कहना था कि इन मामलों में आरटीआई से सवाल पूछे गए, जिससे सरकार डर गई और 2019 में आरटीआई एक्ट में संशोधन करके सेंट्रल इंफॉर्मेशन कमीशन (सीआईसी) को कमजोर कर दिया।
अब आप देखें असली सच्चाई और उसे उजागर करने वाले आंकड़े। 2023-24 की सीआईसी रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 17.5 लाख आरटीआई एप्लीकेशन फाइल हुईं, जो दस साल पहले के मुकाबले दोगुनी हैं। यानी जनता का आरटीआई पर भरोसा बढ़ा है। डिस्पोजल रेट 90 प्रतिशत से ऊपर रहा। नवंबर 2023 में चीफ इंफॉर्मेशन कमिश्नर हीरालाल समरिया ने कहा कि वित्त वर्ष में पहली बार 90 प्रतिशत से ज्यादा डिस्पोजल रेट हासिल हुआ। पेंडिंग केस 2020-21 के 38,116 से घटकर 2023-24 में 19,233 रह गए। जुलाई 2024 से जून 2025 तक के डेटा में जुर्माना (पेनल्टी इम्पोज) सिर्फ 1.2 प्रतिशत रहा, लेकिन निपटारे का ग्राफ ऊंचा रहा। जून 2025 तक सीआईसी में 26,800 केस पेंडिंग थे, जो पूरे सिस्टम की तुलना में बेहतर है। सतर्क नागरिक संगठन की एक रिपोर्ट कहती है कि 29 सूचना आयोगों में 4,13,972 केस पेंडिंग हैं, लेकिन डिस्पोजल रेट में सुधार साफ दिखता है। देश में करीब 25,000 पब्लिक अथॉरिटी हैं, जो आरटीआई के तहत जवाब देती हैं। इनका एनुअल रिटर्न फाइलिंग रेट 92 प्रतिशत से ज्यादा है, जो यूपीए के समय 77 प्रतिशत था।
आरटीआई ने पिछले कुछ वर्षों में कई बड़े खुलासे किए। चाहे वो सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार हो, राशन कार्ड की धांधली हो या स्कॉलरशिप की गड़बड़ी, आरटीआई से लाखों लोगों को उनके हक मिले। मिसाल के तौर पर, मनरेगा में मजदूरी के भुगतान की जानकारी आरटीआई से मिली, जिससे हजारों मजदूरों को समय पर पेमेंट हुआ। पेंशन स्कीम में गड़बड़ियां उजागर हुईं, जिससे बुजुर्गों को लाभ मिला। सरकारी जमीनों के गलत आवंटन के केस सामने आए, जिससे भ्रष्टाचार रुका। 2023-24 में 17.5 लाख आरटीआई फाइलिंग्स दिखाती हैं कि लोग अब ज्यादा जागरूक हैं। रिजेक्शन रेट सिर्फ 5.65 प्रतिशत रहा, यानी ज्यादातर लोगों को जवाब मिला।
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