छठ महापर्व जनआस्था है, सियासी नाटक नहीं..!

 राहुल गांधी के शब्दों में नासमझी और उद्दंडता की झलक

 छठ महापर्व जनआस्था है, सियासी नाटक नहीं..!

छठ महापर्व पर राहुल गांधी का कटाक्ष आत्मघाती

शुभ-लाभ आस्था

कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छठ पूजा अनुष्ठानों में भाग लेने का मजाक उड़ाने वाली हालिया टिप्पणी ने बिहार में एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी ने राहुल गांधी पर जनआस्था और त्यौहारी अर्थव्यवस्थादोनों का अपमान करने का आरोप लगाया है। जैसे-जैसे राहुल गांधी साठ के करीब पहुंच रहे हैंउनकी बहस क्षमता घटकर भौंडे वक्तव्य और सड़कछाप प्रदर्शन पर केंद्रित हो गई है। भारत के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक वंश के उत्तराधिकारी के साथ न केवल एक उपनाम हैबल्कि एक पौराणिक कथा भी है, जिसकी जड़ें राष्ट्रीय जागरण के नेहरू-गांधी युग में हैं। फिर भीएक ऐसे लोकतंत्र मेंजो अब वंश से ज्यादा प्रामाणिकता को महत्व देता हैयह विरासत आशीर्वाद से ज्यादा बोझ बन गई है।

एक चुनावी रैली के दौरान और सोशल मीडिया परराहुल गांधी ने छठ मनाने में मोदी की आस्था और संस्कार पर सवाल उठायाइसे राजनीतिक नाटक कहा। उन्होंने पीएम मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी भी कीजिसमें कहा गया कियदि आप उन्हें वोट के लिए नृत्य करने के लिए कहेंगेतो वह मंच पर नाचेंगे भी। हालांकियह टिप्पणी तेजी से उनके ही उलटी पड़ गई हैजो ऐसे समय में आई है जब आस्था और पूजन के साथ-साथ छठ त्यौहार ने बिहारउत्तर प्रदेश और दिल्ली-एनसीआर में अनुमानित 50,000 करोड़ का कारोबार भी किया है। अर्थशास्त्रियों और स्थानीय व्यापारियों ने इस त्यौहार को क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा बढ़ावा बताया, जिसमें पारंपरिक वस्तुओंखाद्य पदार्थोंबांस की टोकरियोंकपड़ोंमिठाइयों और पर्यटन सेवाओं की बिक्री शामिल है। भाजपा ने यह बताने में देर नहीं लगाई कि जहां इस त्यौहार ने आजीविका को मजबूत किया और लाखों लोगों के चेहरे पर मुस्कान दिया है। वहीं राहुल गांधी की टिप्पणी ने उस महान उत्सव को छोटा करने की कोशिश जिससे आस्था को भयानक चोट पहुंची है।

केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस बयान को बेहद अपमानजनक करार देते हुए गांधी से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने की मांग की। धर्मेंद्र प्रधान ने कहाछठ कोई चुनावी हथकंडा नहीं है, यह करोड़ों भारतीयों की भक्तिआजीविका और पहचान है। इसका मजाक उड़ाने का मतलब है उन लोगों का मजाक उड़ाना जो इस महापर्व से आस्था के सूत्र से बंधे हैं और उनकी आर्थिक व्यवस्था भी चल रही है। बिहार के तमाम नागरिकों ने राहुल गांधी के अभिजात्यवादी लहजे की कड़ी आलोचना की और उन पर भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक वास्तविकताओं से नाता तोड़ने का आरोप लगाया। यह विवाद तब और गहरा गया जब यह पता चला कि गांधी के छठ पर्व की शुभकामनाओं में इस्तेमाल की गई तस्वीर वही थी जो 2024 में शेयर की गई थी।

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राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह मुद्दा अब एक सांस्कृतिक विवाद से कहीं बढ़कर चुनावी मौसम में एक आर्थिक और भावनात्मक मुद्दा बन गया है। बिहार के छोटे व्यापारीकारीगर और ट्रांसपोर्टर अक्सर अपनी वार्षिक आय के लिए त्यौहारों पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं और छठ पूजा के आसपास होने वाला व्यापक व्यापार आंदोलन आजीविका के साथ इसके गहरे जुड़ाव को दर्शाता है। राजधानी पटना के बुद्धिजीवी कहते हैं कि राहुल गांधी के शब्द न केवल राजनीतिक रूप से लापरवाह थेबल्कि आर्थिक रूप से भी बेसुरे थे। ऐसे समय में जब कोविड मामारी के बाद छठ महापर्व स्थानीय आस्था, एकता और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित कर रहा हैइसका मजाक उड़ाना आस्था से प्रेरित मतदाताओं और मजदूर वर्ग के व्यापारियों दोनों को अलग-थलग कर देता है।

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भाजपा को इस विवाद का फायदा मिलेगा। भाजपा ने इसे एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बना दिया है जिसमें मोदी की सांस्कृतिक भागीदारी और स्थानीय परंपराओं के प्रति सम्मान की तुलना गांधी के वंशवादी अहंकार से की जा रही है। राजधानी पटना और गया समेत तमाम शहरों में पार्टी पदाधिकारियों ने गर्व से कहोहम छठवासी हैं नारे के साथ छोटे-छोटे गली-मोहल्लों में अभियान चलाए हैं और इस त्यौहार को बाहरी लोगों के अपमान के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है।

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कांग्रेस सफाई पर सफाई दे रही है कि राहुल गांधी की टिप्पणी राजनीतिक नाटकबाजी के उद्देश्य से थीन कि त्यौहार के लिए। लेकिन कांग्रेस का नुकसान तो पहले ही हो चुका। राजनीति में लगभग दो दशक बादराहुल एक पहेली बने हुए हैं। एक युवा नेता होने का दावा करने वाले अधेड़, फिर भी राजनीतिक और बौद्धिक रूप से अविकसित राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के लिए विवशता बने हुए हैं। जैसे-जैसे बिहार चुनाव के लिए तैयार होता जा रहा हैराहुल गांधी के बेजा बयान का प्रकरण निर्णायक परीक्षा में बदलता जा रहा है। ऐसे राज्य में जहां आस्थागौरव और आर्थिक जीवंतता छठ जैसे त्यौहारों के इर्द-गिर्द घूमती है। राहुल गांधी का कटाक्ष एक आत्मघाती गलती साबित हो सकती है। जिसका भाजपा अंतिम वोट डाले जाने तक फायदा उठाने की कोशिश करेगी।

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