एसआईआर के खिलाफ तमिलनाडु सरकार जाएगी सुप्रीम कोर्ट
ममता बनर्जी भी उतरीं मैदान में
नई दिल्ली, 2 नवंबर (एजेंसियां)। सुप्रीम कोर्ट के हालिया ऐतिहासिक निर्णय के बाद देश की राजनीति और कानूनी हलचल में नया मोड़ आ गया है। तमिलनाडु सरकार ने “एसआईआर” (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने का निर्णय लिया है। राज्य सरकार का आरोप है कि केंद्र की जांच एजेंसियाँ एसआईआर रिपोर्ट के नाम पर राज्य सरकार के अधिकारियों और वकीलों को अनावश्यक रूप से तलब कर रही हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही साफ कर चुका है कि वकीलों को मुवक्किल के अपराधों के मामलों में बिना ठोस कारण नहीं बुलाया जा सकता।
राज्य के कानून मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बावजूद जांच एजेंसियाँ वकीलों और कानूनी सलाहकारों को पूछताछ के लिए बुला रही हैं, जो न केवल अदालत की भावना के विपरीत है बल्कि संविधान के संघीय ढांचे को भी कमजोर करता है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार जल्द ही सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर स्पष्टता चाहती है कि एजेंसियाँ इस तरह की कार्यवाही नहीं कर सकतीं।
तमिलनाडु की याचिका में यह मांग की जाएगी कि सुप्रीम कोर्ट अपने पूर्व निर्णय को लागू करने के लिए दिशानिर्देश जारी करे, ताकि राज्य सरकारों और कानूनी पेशे से जुड़े व्यक्तियों को अनावश्यक दबाव से राहत मिले। याचिका में यह भी कहा गया है कि केंद्र की एजेंसियाँ राज्य की स्वायत्तता में हस्तक्षेप कर रही हैं, जिससे प्रशासनिक संतुलन पर असर पड़ रहा है।
इसी बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी खुलकर तमिलनाडु सरकार का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि यह केवल एक राज्य का नहीं, बल्कि पूरे संघीय ढांचे का मामला है। “आज अगर वकीलों और अधिकारियों को इस तरह बुलाया जाएगा तो कल किसी भी राज्य की नीतिगत स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी,” ममता बनर्जी ने कहा। उन्होंने विपक्षी मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाने की घोषणा की है ताकि इस मुद्दे पर साझा रणनीति बनाई जा सके।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला वकील-मुवक्किल संबंध की गोपनीयता को मजबूत करता है। अदालत ने यह स्पष्ट किया था कि जब तक वकील स्वयं किसी अपराध में प्रत्यक्ष रूप से शामिल न हो, तब तक उसे केवल मुवक्किल के अपराध के कारण पूछताछ के लिए नहीं बुलाया जा सकता। इस निर्णय का उल्लंघन करने वाली किसी भी एजेंसी के खिलाफ अदालत अवमानना की कार्यवाही कर सकती है।
राजनीतिक हलकों में इसे केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन से जुड़ा अहम मामला माना जा रहा है। विपक्षी दलों का कहना है कि जांच एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक दबाव के लिए किया जा रहा है, जबकि केंद्र का पक्ष है कि एजेंसियाँ कानून के अनुसार काम कर रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब कानूनी जगत में यह बहस तेज हो गई है कि क्या वकील-मुवक्किल संवाद की गोपनीयता को भंग करने वाली कोई भी कार्रवाई सीधे न्यायिक स्वतंत्रता पर हमला मानी जाएगी। तमिलनाडु की याचिका और ममता बनर्जी के बयान के बाद यह मामला अब केवल कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी चर्चा का विषय बन गया है।
ममता बनर्जी भी उतरीं मैदान में — दस प्रमुख बिंदु:
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तमिलनाडु सरकार के एसआईआर मामले में खुला समर्थन जताया है।
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उन्होंने कहा कि यह केवल कानूनी नहीं, बल्कि संघीय ढांचे और राज्यों की स्वायत्तता की रक्षा का सवाल है।
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ममता ने आरोप लगाया कि केंद्र की एजेंसियाँ विपक्ष-शासित राज्यों को राजनीतिक रूप से दबाने के औजार के रूप में इस्तेमाल की जा रही हैं।
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उन्होंने चेन्नई में आयोजित एक प्रेस वार्ता में कहा, “अगर आज तमिलनाडु निशाने पर है, तो कल बंगाल या कोई और राज्य होगा।”
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ममता ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से फोन पर बात कर एकजुट होकर कानूनी लड़ाई लड़ने का प्रस्ताव दिया।
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उन्होंने विपक्षी मुख्यमंत्रियों की एक आपात बैठक बुलाने की घोषणा की है, जिसमें साझा रणनीति पर चर्चा होगी।
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ममता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के वकील-मुवक्किल गोपनीयता संबंधी फैसले की अवहेलना लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।
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उन्होंने कहा कि यदि एजेंसियाँ इस तरह काम करती रहीं, तो “कोई भी वकील स्वतंत्र रूप से अपने मुवक्किल का बचाव नहीं कर सकेगा।”
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ममता ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर नियंत्रण रखे और राज्यों के अधिकारों का सम्मान करे।
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता का यह कदम विपक्षी दलों को एक साझा मंच पर लाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास हो सकता है।
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