"लॉयर्स में ज्ञान नहीं, जानने की ललक जरूरी — न्यायमूर्ति सूर्य कान्त; योगी बोले, रामराज्य में भेदभाव को जगह नहीं"
डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय का चतुर्थ दीक्षान्त समारोह सम्पन्न, मुख्य अतिथि रहे उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति सूर्य कान्त
लखनऊ, 02 नवम्बर (एजेंसियां)। लखनऊ में शनिवार को डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय का चतुर्थ दीक्षान्त समारोह अत्यंत गरिमामय माहौल में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश मा. न्यायमूर्ति श्री सूर्य कान्त मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे, जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समारोह के विशिष्ट अतिथि थे। उनके साथ उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश मा. न्यायमूर्ति श्री विक्रम नाथ, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मा. न्यायमूर्ति श्री अरुण भंसाली तथा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अमरपाल सिंह सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति भी समारोह में मौजूद रहे।
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दीक्षान्त समारोह का शुभारम्भ मा. न्यायमूर्ति श्री सूर्य कान्त द्वारा किया गया। इसके पश्चात उन्होंने और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विश्वविद्यालय के मेधावी छात्र-छात्राओं को मेडल एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया। मा. न्यायमूर्ति श्री सूर्य कान्त ने अपने प्रेरक सम्बोधन में कहा कि विधि क्षेत्र केवल एक पेशा नहीं, बल्कि समाज में परिवर्तन का माध्यम है। उन्होंने कहा कि एक लॉयर की सफलता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि वह कितना जानता है, बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि उसके भीतर जानने और सीखने की कितनी इच्छा है। उन्होंने युवा वकीलों से आग्रह किया कि वे अपने ज्ञान के दायरे को निरंतर विस्तार दें और न्याय को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाने का संकल्प लें।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सम्बोधन में कहा कि राज्य सरकार न्याय व्यवस्था को सुलभ, पारदर्शी और आधुनिक बनाने के लिए पूरी प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में दिया गया दीक्षा उपदेश भारत की प्राचीन गुरुकुल परम्परा के समावर्तन समारोह की झलक प्रस्तुत करता है। तैत्तिरीय उपनिषद के मंत्र ‘सत्यं वद, धर्मं चर’ का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि सत्य बोलना और धर्म का आचरण करना इस दीक्षा उपदेश का मूल भाव है।
मुख्यमंत्री ने छात्रों से कहा कि यह दिन उनके जीवन का सबसे स्वर्णिम दिन है, क्योंकि आज वे भारत की न्यायपालिका के शीर्ष न्यायमूर्तियों के कर-कमलों से उपाधि प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि धर्म हमारे जीवन की आधारशिला है, जो हमें अपने कर्तव्यों के प्रति सदैव सजग रखता है। उन्होंने कहा कि रामराज्य में किसी भी प्रकार के भेदभाव का कोई स्थान नहीं था, और यही आदर्श आज भी सुशासन की अवधारणा का मूल है। समाज के प्रत्येक तबके को योग्यता और क्षमता के अनुरूप अवसर प्रदान करना ही सुशासन का सच्चा रूप है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता उसके न्यायिक ढांचे पर निर्भर करती है। न्यायिक व्यवस्था जितनी मजबूत होगी, शासन उतना ही पारदर्शी और प्रभावी बनेगा। इसी दृष्टि से राज्य सरकार न्यायिक प्रणाली को आधुनिक तकनीक से सुसज्जित करने के प्रयास कर रही है। प्रदेश के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में छात्रों को डिजिटल प्लेटफॉर्म, ई-कोर्ट प्रणाली, अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रेजोल्यूशन और साइबर लॉ जैसे उभरते विधिक क्षेत्रों में विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है।
उन्होंने बताया कि प्रदेश में न्यायिक प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान में नए हॉस्टल, स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और अत्याधुनिक प्रशिक्षण कक्षाओं का निर्माण कराया जा रहा है। इसके माध्यम से न्यायिक अधिकारियों, अभियोजकों, पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों को निरंतर प्रशिक्षण और कौशल विकास के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आजादी के अमृतकाल के प्रथम वर्ष में देश में तीन नए कानून — भारतीय न्याय संहिता-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम-2023 — लागू किए गए हैं, जो न्याय की धारणा को और सशक्त बनाएंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि “रूल ऑफ लॉ” केवल तब संभव है जब बेंच और बार के बीच बेहतर समन्वय हो। उन्होंने कहा कि प्रदेश में बेंच और बार के बीच इस समन्वय को और सशक्त करने हेतु एकीकृत न्यायालय परिसरों (इंटीग्रेटेड कोर्ट कैंपस) का निर्माण किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत 10 जनपदों में एक साथ धनराशि जारी कर दी गई है, जिससे एक ही परिसर में विभिन्न न्यायालयों, बार कक्षों, आवासीय और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था की जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि जिलों के न्यायालयों में डिस्ट्रिक्ट जजों के चेम्बरों में एसी लगाने की अनुमति दी गई है तथा डिजिटल डिपोजिशन राइटर्स की स्वीकृति भी दी जा चुकी है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराधों में त्वरित न्याय के लिए 380 से अधिक पॉक्सो और फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित किए गए हैं। इसके साथ ही लोक अदालत, मीडिएशन और आर्बिट्रेशन के माध्यम से विवादों के निपटारे के लिए भी ठोस कदम उठाए गए हैं। न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए प्रत्येक रेंज स्तर पर विधि विज्ञान प्रयोगशालाएं (फॉरेंसिक लैब) स्थापित की गई हैं, जो कार्य प्रारम्भ कर चुकी हैं।
राज्य स्तर पर यूपी स्टेट फॉरेंसिक इंस्टीट्यूट की स्थापना भी की गई है, जो युवाओं को उन्नत प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है। इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के तहत ई-कोर्ट, ई-पुलिसिंग, ई-प्रॉसीक्यूशन, ई-फॉरेंसिक और ई-प्रिजन को एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जोड़ा जा रहा है। इससे न्यायिक और प्रशासनिक प्रक्रियाएं और अधिक तेज़, पारदर्शी और सुलभ बनेंगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार की प्रतिबद्धता है कि हर नागरिक को शीघ्र, निष्पक्ष और प्रभावी न्याय प्राप्त हो सके।
इस अवसर पर मा. न्यायमूर्ति श्री विक्रम नाथ, मा. न्यायमूर्ति श्री अरुण भंसाली और विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अमरपाल सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। समारोह में उच्च शिक्षा मंत्री श्री योगेन्द्र उपाध्याय, वरिष्ठ न्यायाधीशगण, प्रशासनिक अधिकारी, जनप्रतिनिधि, शिक्षाविद् और गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समापन विश्वविद्यालय के दीक्षा उपदेश के साथ हुआ, जिसने छात्रों को उनके कर्तव्यों और समाज के प्रति जिम्मेदारियों का बोध कराया।

