मोदी–सावरकर पर ‘अपमानजनक टिप्पणी’ का तूफ़ान: वर्धा विश्वविद्यालय ने 10 छात्र बाहर किए, परिसर में सनसनी
वर्धा, 14 नवंबर (एजेंसियां)। महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा एक बार फिर विवादों के केंद्र में आ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में विश्वविद्यालय प्रशासन ने दस छात्रों को निलंबित कर दिया है। दो हफ़्तों के लिए छात्रावास से निलंबित किए गए इन छात्रों के खिलाफ पुलिस में भी औपचारिक शिकायत दर्ज करा दी गई है, जिसके बाद परिसर का माहौल गर्म हो गया है।
यह विवाद उस समय भड़का जब 6 नवंबर को दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव के नतीजे आए, जहां भारतीय जनता पार्टी समर्थित संगठन को हार का सामना करना पड़ा और वामपंथी मोर्चा विजयी हुआ। इसी परिणाम के बाद वर्धा विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने कथित रूप से ‘‘सॉरी सावरकर’’ और ‘‘गो नरेंद्र’’ जैसे नारे लगाए, जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन ने बेहद गंभीर और ‘अपमानजनक’ बताया। प्रशासन के अनुसार इस तरह के नारे न केवल शैक्षणिक और वैचारिक वातावरण को दूषित करते हैं, बल्कि परिसर की अनुशासन व्यवस्था को भी सीधा चुनौती देते हैं।
घटना के तुरंत बाद विश्वविद्यालय ने एक जांच समिति का गठन किया, जिसने वीडियो फुटेज और उपलब्ध साक्ष्यों की समीक्षा की। प्राथमिक जांच में यह भी सामने आया कि शामिल कुछ छात्र पूर्व में भी विवादित गतिविधियों के कारण प्रशासन की निगरानी में रहे हैं। समिति की रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन ने दस छात्रों को दो सप्ताह के लिए छात्रावास से निलंबित कर दिया। हालांकि छात्रों को विश्वविद्यालय से निष्कासित नहीं किया गया है।
रजिस्ट्रार नवाज़ खान ने कहा कि परिसर की शांति और मर्यादा को भंग करने वाली किसी भी हरकत को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जैसे ही मामला बढ़ा, प्रशासन ने तत्काल कार्रवाई करते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने यह भी बताया कि छात्रों के अलग-अलग वैचारिक समूह—दक्षिणपंथी, वामपंथी, मध्यमार्गी और अम्बेडकरवादी—अक्सर भिड़ते रहते हैं, जिस कारण विश्वविद्यालय में तनावपूर्ण स्थितियां समय-समय पर पैदा होती रहती हैं। इनमें से कई झड़पें इतनी गंभीर हो चुकी हैं कि पुलिस को दखल देना पड़ा है और बड़े शैक्षणिक कार्यक्रमों तक को रद्द करना पड़ा है। इनमें एक ऐसा कार्यक्रम भी शामिल है जो भारत के राष्ट्रपति से जुड़ा हुआ था, जिसे सुरक्षा कारणों से अंतिम समय में रद्द करना पड़ा।
वर्धा विश्वविद्यालय की यह नई घटना न केवल परिसर की राजनीति को फिर सुर्खियों में ले आई है, बल्कि यह भी साफ कर दिया है कि विचारों की लड़ाई जब मर्यादा पार करती है तो प्रशासन को कड़े फैसले लेने ही पड़ते हैं।
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