बिहार चुनाव में जाति की सियासत को करारा झटका

NDA की जीत ने ‘हिंदू समाज को तोड़ने’ की राजनीति को दिखाया रास्ता

बिहार चुनाव में जाति की सियासत को करारा झटका

नई दिल्ली, 14 नवम्बर (एजेंसियां)। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का परिणाम केवल सत्ता परिवर्तन या सीटों का खेल नहीं था—यह मतदाताओं का वह निर्णायक संदेश था जिसने एक खास तरह की राजनीति की नींव हिलाकर रख दी। यह वह राजनीति थी, जो हर चुनाव में हिंदू समाज को जातियों में बांटकर अपने वोट-बैंक को मजबूत करने का प्रयास करती थी। वर्षों से बिहार में चुनावी अभियान जाति समीकरणों—यानी यादव, कुशवाहा, पासवान, राजपूत, ब्राह्मण, भूमिहार, वैश्य जैसे खांचे बनाकर—लड़े जाते रहे। परंतु इस बार जनता ने स्पष्ट कर दिया कि विकास, सशक्त नेतृत्व, सुरक्षा और स्थिरता जाति से कहीं बड़ा मुद्दा है।

इस चुनाव में NDA की ऐतिहासिक जीत और महागठबंधन की करारी हार ने सबसे बड़ा संदेश यही दिया कि हिंदुओं को बांटने की रणनीति अब अप्रभावी हो चुकी है। यह चुनाव उन दलों के लिए सबसे बड़ा झटका है, जिन्होंने वर्षों से जातियों को भड़काकर, आपस में संघर्ष पैदा कर सत्ता पाने की राजनीति की है।


जाति आधारित राजनीति का सबसे बड़ा प्रयोग—और सबसे बड़ी असफलता

महागठबंधन ने इस चुनाव में जातीय राजनीति का सबसे मजबूत कार्ड खेला। कई रैलियों और सभाओं में महागठबंधन के नेताओं ने खुलेआम जातीय बयान दिए, जिनमें हिंदू समुदाय के विभिन्न समूहों को आपस में भटकाने की कोशिश दिखाई दी।

कुछ प्रमुख जातिवादी बयान, जिन्होंने नकारात्मक असर डाला:

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  1. “ऊपर वाली जातियाँ सरकार को कब्जाए बैठी हैं, अब हमारा समय आएगा।”
    — यह बयान जातीय तनाव बढ़ाने की कोशिश के रूप में देखा गया।

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  2. “सरकारी नौकरी और सरकारी लाभ केवल दबे-कुचले समाज को मिलना चाहिए, बाकी लोग हमेशा लाभ उठाते रहे हैं।”
    — इस बयान को समाज के बीच ‘हम बनाम वे’ की खाई गहरी करने का प्रयास माना गया।

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  3. “राजपूत, ब्राह्मण और भूमिहार जैसी जातियों ने हमेशा हमारे अधिकार छीनें, अब हम उन्हें जवाब देंगे।”
    — ऐसे बयान हिंदू समाज को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास थे।

  4. कुछ रैलियों में यादव, अति पिछड़े और दलित समुदाय को अलग-अलग मंचों से यह कहा गया कि “सत्ता आपकी है, लेकिन छीन ली गई है।”

महागठबंधन की रणनीति साफ थी—एक तरफ यादव-मुस्लिम समीकरण को मजबूत करना, दूसरी तरफ गैर-यादव OBC और सामान्य वर्ग के हिंदू मतदाताओं को आपस में बांटना।
लेकिन जनता ने इस बार इन बयानों को गंभीरता से नहीं लिया। इसके बजाय मतदाताओं ने विकास और स्थिरता को प्राथमिकता दी।


NDA की रणनीति—‘समूह’ नहीं, ‘समाज’ पर फोकस

जहाँ महागठबंधन जातीय समूहों को अलग-अलग साधने में लगा था, वहीं NDA ने पूरे समाज को एक साथ जोड़ने की रणनीति अपनाई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने भाषणों में कभी किसी जाति-समुदाय को अलग से साधने की कोशिश नहीं की।

उनका फोकस था:

  • सड़क

  • बिजली

  • महिला सुरक्षा

  • शिक्षा

  • स्वास्थ्य

  • युवाओं के लिए रोजगार

  • गरीबों के लिए सरकारी योजनाएँ

महिलाओं के लिए दस-दस हजार रुपये की योजना, उज्ज्वला समेत अन्य कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सीधे घर-घर पहुँचने के कारण जाति की राजनीति कमजोर पड़ गई।
महिला वोटरों ने जाति पर नहीं, सुरक्षा और स्थिरता पर वोट दिया।


Hindus को बांटने की कोशिश—लेकिन पहली बार बड़े पैमाने पर असफल

महागठबंधन की जातिवादी राजनीति इसलिए भी विफल हुई क्योंकि पहली बार बिहार के हिंदू मतदाताओं ने ‘समूह हित’ से ऊपर उठकर ‘सामूहिक हित’ को प्राथमिकता दी।

कौन-कौन से जातिवादी प्रयास असफल हुए?

1️⃣ RJD की यादव-केंद्रित राजनीति कमजोर पड़ी

पहली बार यादव मतदाताओं में बड़ी संख्या NDA की ओर झुकी।
कारण:

  • स्थानीय स्तर पर जदयू-भाजपा नेताओं द्वारा लगातार विकास कार्य

  • युवा वर्ग में NDA की योजनाओं का सीधा प्रभाव

  • परिवारवाद और भ्रातृवाद से नाराजगी

2️⃣ कुशवाहा, अतिपिछड़ा और EBC वोट NDA के साथ रहे

तेजस्वी यादव ने इन वर्गों को बार-बार यह कहकर रिझाने की कोशिश की—
"आपकी सरकार आनी चाहिए, सब कुछ दूसरों ने छीन लिया है।"

परंतु EBC वर्ग ने यह कथन नकार दिया क्योंकि नीतीश सरकार में उन्हें वर्षों से राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिला है।

3️⃣ सवर्ण हिंदू वोट बैंक पूरी तरह NDA के साथ खड़ा हुआ

महागठबंधन ने सवर्णों पर टिप्पणी करने वाले कुछ नेताओं को मंच दिया, जिसने उल्टा असर किया।
यह संदेश गया कि महागठबंधन जातीय बदले की राजनीति कर रहा है।

4️⃣ दलित-महादलित वर्ग का वोट NDA की योजनाओं से जुड़ा

मुफ्त राशन, स्वास्थ्य योजनाएँ, बिजली, गैस और पेंशन योजनाओं का प्रभाव जाति की राजनीति से ऊपर रहा।


‘हिंदू समाज’ की एकता का उभार—जातीय विभाजन की राजनीति ध्वस्त

बिहार में पहली बार यह दिखा कि हिंदू समाज, चाहे वह किसी भी जाति का क्यों न हो—
ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, बनिया, यादव, कुशवाहा, नाई, धानुक, मुसहर, पासवान, तेली, कुम्हार, ततवा—
सभी ने मिलकर वही मतदान किया जो विकास, सुरक्षा और नेतृत्व के आधार पर सबसे उपयुक्त लगा।

यह चुनाव बताता है कि हिंदू वोट अब जातियों में नहीं टूट रहा, बल्कि
राष्ट्रीय मुद्दों, विकास और सुरक्षा पर एकजुट हो रहा है।


महागठबंधन के लिए सीख—जाति की राजनीति अब ‘पुराने जमाने’ की बात

यह चुनाव उस राजनीतिक सोच की सबसे बड़ी हार है, जो मानती है कि बिहार में केवल जाति ही जीत सकती है।
मतदाताओं ने दिखा दिया कि:

  • जाति अब प्राथमिक मुद्दा नहीं है

  • विभाजनकारी राजनीति से उनका भरोसा उठ चुका है

  • विकास और स्थिरता की राजनीति जीतती है

  • हिंदुओं को बांटने का खेल हमेशा नहीं चलेगा

विपक्ष को अब यह स्वीकार करना पड़ेगा कि
“नया बिहार जाति से परे सोचता है।"


चुनाव ने बदल दिया राजनीतिक नैरेटिव

एग्जिट पोल में NDA की जीत का अनुमान था, लेकिन जनता ने उससे कहीं आगे जाकर फैसला सुनाया।
यह परिणाम इस बात का संकेत है कि आने वाले वर्षों में:

  • जाति आधारित अभियान चलाने वाली पार्टियाँ कमजोर होंगी

  • विकास आधारित राजनीति मजबूत होगी

  • जन-कल्याण और सुशासन चुनाव का मुख्य आधार बनेगा

  • हिंदू समाज को बांटने की रणनीति पूरी तरह साफ हो जाएगी


बिहार ने दिया सबसे महत्वपूर्ण संदेश—“हिंदू एक है, विकास सर्वोपरि है”

इस चुनाव के बाद राजनीतिक पर्यवेक्षक एक राय से यह कह रहे हैं कि
“यह चुनाव जातिवादी राजनीति की हार और विकासवादी राजनीति की सबसे बड़ी जीत है।”

महागठबंधन जितनी शिद्दत से जातियों में खांचे बनाता गया, जनता उतनी ही तेजी से उससे दूर होती गई।
वहीं NDA का ‘सबका साथ, सबका विकास’ का संदेश जाति की दीवारें तोड़कर मतदाताओं के दिल तक गया।

यह चुनाव भविष्य की राजनीति के लिए एक मील का पत्थर है—
जहाँ हिंदू समाज को जातियों में बांटने की कोशिशें न केवल विफल होंगी, बल्कि उल्टा असर भी डालेंगी।

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