तामील ही नहीं हुए अदालत के नौ लाख फैसले
लाखों निष्पादन-याचिकाएं लंबित: सुप्रीम कोर्ट नाराज
सुप्रीम कोर्ट के जजों ने खुद कहा, न्याय है या मजाक!
सुप्रीम कोर्ट में लंबित लाखों मामलों पर न्यायाधीश चुप
नई दिल्ली, 19 अक्टूबर (एजेंसियां)। अदालतों में लंबित पड़े करोड़ों मामलों से देश की न्याय व्यवस्था पहले से सवालों के घेरे में है। अब तो यह भी सामने आया है कि अदालतों से जारी करीब नौ लाख आदेश कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं। यानि, जिन मामलों में अदालतें अपना फैसला सुना चुकी हैं और उस पर कार्रवाई का आदेश जारी कर चुकी हैं, वे भी शासन के गलियारे में लंबित हैं। यह शासनिक और न्यायिक अराजकता की हद है। अब इन नौ लाख फैसलों के लंबित रहने के दुखद और आश्चर्यजनक तथ्य के साथ उन पांच करोड़ मामलों को भी जोड़ लें, जो देश की विभिन्न अदालतों में लंबित पड़े हैं। और तो और देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट तक में एक लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट जिसे बेमानी मुद्दों पर न्यायिक सक्रियता दिखाने और हिंदू देवी-देवताओं पर फूहड़ टिप्पणियां करने से फुर्सत नहीं है।
सनद रहे, देश की विभिन्न अदालतों में 8,82,578 निष्पादन याचिकाएं (अदालती आदेशों को लागू करवाने के लिए दाखिल याचिकाएं) लंबित हैं। मार्च 2024 से अब तक लगभग 3.38 लाख मामलों का निपटारा हुआ, लेकिन बाकी अब भी अंटके हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों (हाईकोर्ट) से कहा है कि वे जिला अदालतों को स्पष्ट दिशा-निर्देश दें ताकि पुराने मामलों को जल्द निपटाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने इतनी भारी संख्या में निष्पादन याचिकाओं के लंबित रहने पर गहरी नाराजगी और चिंता जताई है। उल्लेखनीय है कि जब किसी नागरिक विवाद में अदालत कोई फैसला दे देती है और हारने वाला पक्ष उस आदेश को मानने से इन्कार कर देता है, तब विजेता पक्ष अदालत में निष्पादन याचिका दाखिल करता है ताकि आदेश लागू हो सके। यानि यह प्रक्रिया अदालत के आदेश को जमीन पर उतारने की होती है।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जेबी पारदीवाला और न्यायाधीश पंकज मित्तल की पीठ ने कहा, अदालत का आदेश अगर वर्षों तक लागू ही न हो सके, तो फिर ऐसे आदेश का कोई मतलब नहीं रह जाता। यह न्याय का मजाक बन जाएगा। अदालत ने बताया कि कुल 8,82,578 निष्पादन याचिका लंबित हैं। मार्च 2024 से अब तक लगभग 3.38 लाख मामलों का निपटारा हुआ, लेकिन बाकी अब भी अटके हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के रवैये पर भी नाराजगी जाहिर की, जिसने लंबित निष्पादन याचिकाओं के आंकड़े सुप्रीम कोर्ट नहीं भेजे। सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से कहा कि रजिस्ट्रार जनरल दो हफ्तों में जवाब दें कि जानकारी क्यों नहीं दी गई। 6 मार्च को ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि सभी हाईकोर्ट सर्कुलर जारी करें। निष्पादन याचिका छह महीने में निपटाई जाए। अगर कोई देरी होती है तो संबंधित जज जिम्मेदार माने जाएंगे। लेकिन हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट की नहीं सुनता और नीचे की अदालतें हाईकोर्ट की नहीं सुनतीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्याय में देरी न्याय से इन्कार के बराबर है। निष्पादन आदेशों को वर्षों तक लागू न कर पाना व्यवस्था पर ही सवाल उठाता है। अदालत चाहती है कि हाईकोर्ट और जिला अदालतें इस ढर्रे को तुरंत बदलें।
देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों पर नजर डालें तो नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) की रिपोर्ट पर ध्यान जाता है। एनजेडीजी ने निचली अदालतों में लंबित पांच करोड़ मामलों में से 1.78 करोड़ मुकदमों के कारण भी बताए हैं। इनमें से ज्यादातर आपराधिक मामले हैं। इनमें 81 प्रतिशत आपराधिक मामले हैं। बाकी 19 प्रतिशत सिविल मामले हैं। इससे पता चलता है कि आपराधिक मामलों में देरी ज्यादा हो रही है। लगभग 3 करोड़ मामलों के लंबित होने का तो कोई कारण भी नहीं है। बस यूं ही लंबित पड़ा है। इन पर न्यायिक प्रक्रिया का कोई ध्यान नहीं है। एनजेडीजी कहता है कि इसका एक बड़ा कारण वकीलों का उपलब्ध न होना भी है। 62 लाख से ज्यादा मामलों में वकील मौजूद नहीं हुए। इससे सुनवाई आगे नहीं बढ़ पाई। दूसरा बड़ा कारण अदालतों द्वारा तारीख पर तारीख देना है। जजों का आए दिन छुट्टी पर जाना और देखते ही देखते स्थानांतरित होना न्यायिक प्रक्रिया की बहुत बड़ी बाधा है। आरोपियों का फरार होना भी मामलों के लंबित रहने का बड़ा कारण है। 35 लाख से ज्यादा मामलों में आरोपी फरार हैं। जब आरोपी ही नहीं होता, तो केस कैसे चले। लगभग 27 लाख मामलों में गवाह गायब हैं। गवाहों के बिना सबूत पेश करना मुश्किल बताया जाता है। 23 लाख से ज्यादा मामलों पर अलग-अलग अदालतों ने रोक लगा रखी है। यह रोक भी मामलों को आगे बढ़ने से रोकती है। 14 लाख से ज्यादा मामलों में दस्तावेजों का इंतजार है। लगभग 8 लाख मामलों में पार्टियों का दिलचस्पी न लेना बताया गया है। यह देश की न्यायिक व्यवस्था का हाल है।
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