कोलकाता में चुनावी लापरवाही का बड़ा पर्दाफाश! निर्वाचन आयोग ने 7 बीएलओ को दिया कड़ा ‘कारण बताओ’ नोटिस

मतदाता सूची पुनरीक्षण में भारी गड़बड़ी उजागर—EC ने चेताया, संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो होगी कड़ी कार्रवाई

कोलकाता में चुनावी लापरवाही का बड़ा पर्दाफाश! निर्वाचन आयोग ने 7 बीएलओ को दिया कड़ा ‘कारण बताओ’ नोटिस

नई दिल्ली, 21 नवंबर (एजेंसियां)। कोलकाता में निर्वाचन आयोग ने चुनावी प्रक्रिया में लापरवाही और गड़बड़ी पर बड़ा एक्शन लेते हुए बेलियाघाटा विधानसभा क्षेत्र के सात बूथ स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है। यह नोटिस विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के महत्वपूर्ण चरण—गणना फॉर्म के डिजिटलीकरण—में भारी खामियां मिलने के बाद जारी किया गया है। यह वही चरण है जिस पर मतदाता सूची की सटीकता और पारदर्शिता टिकी होती है, और उसी में गड़बड़ी उजागर होने से आयोग में गंभीर चिंता पैदा हुई है।

चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्पष्ट किया कि प्राप्त शिकायतें बेहद गंभीर हैं और डिजिटलीकरण प्रक्रिया में हुई लापरवाही यह साबित करती है कि संबंधित बीएलओ ने अपनी जिम्मेदारी को हल्के में लिया। अधिकारी ने बताया कि “गणना प्रपत्रों का अनुचित और अपूर्ण डिजिटलीकरण” सीधे-सीधे चुनावी सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है, इसलिए आयोग ने किसी भी प्रकार की ढिलाई को बर्दाश्त न करने का फैसला किया है।

आयोग ने सातों बीएलओ को निर्देश दिया है कि वे शुक्रवार दोपहर तक यह स्पष्ट करें कि उन्हें सौंपे गए अहम कार्य को उन्होंने सही ढंग से क्यों पूरा नहीं किया। यह सिर्फ सामान्य पूछताछ नहीं, बल्कि एक औपचारिक चेतावनी है—क्योंकि आयोग पहले ही यह साफ कर चुका है कि यदि उनका स्पष्टीकरण असंतोषजनक पाया गया, तो प्रतिकूल प्रविष्टि से लेकर निलंबन तक की अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

पश्चिम बंगाल में चुनावी प्रक्रिया पहले से ही संवेदनशील मानी जाती रही है, और ऐसे में एसआईआर के दौरान इस प्रकार की गड़बड़ी नजर आना आयोग की नजर में बेहद गंभीर मामला बन जाता है। निर्वाचन आयोग इस समय पश्चिम बंगाल सहित 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दूसरे चरण का संचालन कर रहा है, क्योंकि अगले वर्ष की शुरुआत में कई राज्यों में चुनाव प्रस्तावित हैं। ऐसे में हर चरण में सटीकता और पारदर्शिता सर्वोच्च प्राथमिकता है।

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एसआईआर की इस प्रक्रिया की शुरुआत 4 नवंबर को हुई थी और यह 4 दिसंबर तक जारी रहेगी। नौ दिसंबर को मतदाता सूची का मसौदा सार्वजनिक किया जाएगा, जिसके बाद आपत्तियों और सुधार की प्रक्रिया चलेगी। अंततः सात फरवरी को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। इस पूरी समयरेखा के बीच डिजिटलीकरण का चरण सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है—क्योंकि यहीं से यह तय होता है कि मतदाता सूची में कोई फर्जी नाम, मृतक मतदाता या गलत प्रविष्टि शामिल न हो।

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आयोग ने यह भी संकेत दिया है कि यह मामला केवल सात बीएलओ तक सीमित नहीं रहेगा। यदि आवश्यक हुआ, तो अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में भी ऐसी ही जांचें बढ़ाई जाएंगी। यह कदम चुनावी शुचिता सुनिश्चित करने के लिए आयोग की सख्त मंशा का स्पष्ट संदेश देता है।

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चुनावी व्यवस्था में छोटी-सी चूक भी बड़े राजनीतिक विवाद को जन्म दे सकती है, और पश्चिम बंगाल जैसे संवेदनशील राज्य में मतदाता सूची से संबंधित गड़बड़ी को राजनीतिक दल तुरंत मुद्दा बना लेते हैं। इसलिए निर्वाचन आयोग ऐसी किसी भी गलती को “गंभीर अपराध” के रूप में देख रहा है।

इस कार्रवाई के बाद राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या आयोग आगे और बड़े पैमाने पर कार्रवाई करेगा। अभी भले सात बीएलओ नोटिस के घेरे में आए हों, लेकिन संकेत यही हैं कि आयोग इस बार किसी भी स्तर पर हुई चुनावी लापरवाही को लेकर ‘शून्य सहनशीलता’ की नीति अपनाने जा रहा है।