बिहार में महागठबंधन की करारी हार ने फोड़ी कांग्रेस की अंदरूनी फोड़
—पटना की सड़कों पर फूटा कार्यकर्ताओं का गुस्सा!
नेतृत्व की नाकामी पर कांग्रेस में बगावत—राजेश राम और प्रभारी अल्लावरु के खिलाफ जबरदस्त विरोध, एनडीए की प्रचंड जीत ने विपक्ष की जमीन खिसकाई
नई दिल्ली, 14 नवम्बर (एजेंसियां)। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने महागठबंधन ही नहीं, बल्कि कांग्रेस की आंतरिक राजनीति की पोल खोलकर रख दी है। पटना की सड़कों पर शुक्रवार को कांग्रेस कार्यकर्ताओं का गुस्सा ऐसा फूटा कि प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु के खिलाफ खुला विद्रोह दिखने लगा।
एनडीए की ऐतिहासिक जीत ने महागठबंधन की जड़ों तक को हिला दिया। 243 में से 202 सीटें जीतकर एनडीए ने लगभग पूरे बिहार पर कब्ज़ा कर लिया, जबकि महागठबंधन केवल 35 पर सिमट गया—जैसे जमीन ही खिसक गई हो।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं का आरोप साफ है—नेतृत्व पूरी तरह विफल रहा। ज़मीनी स्तर पर कोई रणनीति नहीं, कार्यकर्ताओं की मेहनत का कोई इस्तेमाल नहीं और टिकट वितरण में भारी गुटबाज़ी के कारण कांग्रेस का पूरा ढांचा बिखर गया। यही कारण है कि हार के तुरंत बाद पटना में नारेबाज़ी और प्रदर्शन शुरू हो गया। पार्टी कार्यालय के बाहर कार्यकर्ता ‘नेतृत्व बदलो’ के नारे लगाते दिखे।
वहीं दूसरी ओर एनडीए ने जो प्रचंड जीत हासिल की है, वह न सिर्फ विपक्ष पर भारी है बल्कि बिहार की राजनीति में एक और बड़ा संदेश छोड़ती है—नीतीश कुमार अब इतिहास रच रहे हैं। जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार ने रिकॉर्ड 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इनके साथ भाजपा नेताओं सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा ने उपमुख्यमंत्री के रूप में पद संभाला। बिहार के मुख्यमंत्री पद पर नीतीश कुमार की यह लगातार मजबूती महागठबंधन और कांग्रेस दोनों के लिए बड़ा झटका है।
गांधी मैदान में हुआ यह शपथ समारोह ऐतिहासिक रहा, जहाँ भाजपा, जेडीयू, HAM और लोजपा (RV) के 25 मंत्रियों ने शपथ ली। इस मंत्रिमंडल में भाजपा और जदयू के दिग्गज नेताओं—विजय कुमार चौधरी, बिजेंद्र प्रसाद यादव, श्रवण कुमार, मंगल पांडे, नितिन नबीन से लेकर भाजपा की श्रेयसी सिंह तक—सभी को अहम जिम्मेदारियाँ दी गईं। यह संयोजन साफ दिखाता है कि एनडीए अब पहले से ज्यादा संगठित और रणनीतिक रूप से मजबूत है।
इस जीत के बाद महागठबंधन पूरी तरह बिखरा हुआ है। लालू यादव पहले ही चुनावी हार पर चुप्पी साधे हुए हैं, जबकि कांग्रेस के भीतर माहौल पूरी तरह उबल रहा है। पार्टी के कार्यकर्ता कह रहे हैं कि “नेतृत्व को जमीनी हकीकत का कोई अंदाज़ा नहीं था। हर सीट पर गलत उम्मीदवार उतारे गए, किसी स्तर पर समन्वय नहीं था।”
कई कार्यकर्ताओं ने इसे “कांग्रेस के इतिहास की सबसे शर्मनाक चुनावी तैयारी” तक बता दिया।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जब एनडीए अपनी जीत का जश्न मना रहा है, कांग्रेस अपने ही घर में लड़ाई लड़ रही है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं की नाराज़गी सिर्फ हार पर नहीं, बल्कि नेतृत्व की उपेक्षा पर भी है। बिहार कांग्रेस लंबे समय से गुटों में बंटी रही है और इस चुनाव में यह विभाजन पूरी तरह सामने आ गया।
ऐसे में सवाल अब सिर्फ यह नहीं कि महागठबंधन क्यों हारा—सवाल यह है कि कांग्रेस अब खुद को बचाएगी कैसे।

