NDA की एकजुटता रही तो ज्योति बसु–पटनायक–चामलिंग को पीछे छोड़ देंगे!
नीतीश की सबसे बड़ी राजनीतिक चाल?
10वीं बार शपथ के बाद बिहार की सत्ता पर नीतीश की पकड़ और मजबूत—NDA की मजबूती बनेगी उनके ऐतिहासिक कार्यकाल की ढाल
नयी दिल्ली, 15 नवम्बर (एजेंसियां)। नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में दसवीं बार शपथ लेकर भारतीय राजनीति में एक बार फिर अपनी उपस्थिति को निर्णायक तरीके से स्थापित कर दिया है। सवाल सिर्फ यह नहीं कि वह फिर से मुख्यमंत्री बने हैं—सवाल यह है कि क्या NDA की एकजुटता उन्हें देश के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले मुख्यमंत्रियों की श्रेणी में पहुंचा देगी? यदि सब कुछ इसी राह पर चलता रहा, तो नीतीश कुमार ज्योति बसु, नवीन पटनायक और पवन कुमार चामलिंग जैसी राजनीतिक दिग्गजों को भी पीछे छोड़ सकते हैं।
बिहार की राजनीति में जितने उतार–चढ़ाव नीतीश कुमार ने झेले हैं, उतना शायद ही किसी और नेता ने देखा हो। लेकिन आज वह उस स्थिति में खड़े हैं जहां अगले पाँच वर्षों में स्थिरता बनी रही तो वह इतिहास लिख देंगे। पश्चिम बंगाल के ज्योति बसु ने 23 वर्ष सत्ता संभाली, सिक्किम के पवन चामलिंग करीब 25 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे और ओडिशा के नवीन पटनायक 24 वर्षों तक शासन करने वाले नेता बने। अब इस सूची में शामिल होने की ओर सबसे तेज़ी से बढ़ रहे हैं—नीतीश कुमार।
दसवीं शपथ के साथ ही संकेत साफ है—NDA ने उन्हें सिर्फ मुख्यमंत्री नहीं बनाया, बल्कि बिहार की राजनीति में अपनी स्थिरता का चेहरा भी बनाया है। भाजपा, जदयू, लोजपा (रामविलास) और अन्य सहयोगी दलों ने इस समारोह को “ऐतिहासिक” बताया, जिससे यह स्पष्ट है कि गठबंधन नीतीश को एक स्थायी नेता के रूप में पेश करना चाहता है।
नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर कभी रेखीय नहीं रहा। 2000 में उनका पहला कार्यकाल सिर्फ सात दिनों का था—लेकिन आज वह इस मुकाम पर हैं कि देश के इतिहास में सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्रियों की सूची में शीर्ष स्थान पाने की क्षमता रखते हैं। 2005 से 2010 तक, फिर 2010 से 2014 तक मुख्यमंत्री रहने के बाद उन्होंने 2014 में लोकसभा चुनाव परिणामों की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था। लेकिन उनके इस्तीफे के सिर्फ महीनों बाद ही 2015 में वे फिर सत्ता में लौट आए। यही राजनीतिक वापसी उनकी सबसे बड़ी पहचान है—गिरकर उठने की क्षमता।
आज जब वह NDA की नई गठित सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, तो बिहार मंत्रिमंडल के नवनिर्वाचित मंत्रियों ने भी साफ किया है कि वह नीतीश के नेतृत्व में “तेज और निर्णायक” प्रशासन देने जा रहे हैं। जदयू की लेशी सिंह ने कहा कि वह अपने विभाग में पूरी ताकत से विकास कार्य आगे बढ़ाएंगी। श्रवण कुमार ने जनता के “प्रचंड जनादेश” के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि वे जनता से किए गए हर वादे को पूरा करेंगे। भाजपा के रामकृपाल यादव ने “विकसित बिहार” को NDA की प्राथमिकता बताया।
चिराग पासवान का बयान—“डबल इंजन की सरकार बिहार को नया मॉडल बनाएगी”—सीधे यह संकेत देता है कि केंद्र में मोदी और राज्य में नीतीश की जोड़ी को लेकर NDA बेहद आत्मविश्वास में है। यह वही जोड़ी है जिसने 2020 के चुनावों में भी बिहार में अपना असर दिखाया था, और आज फिर नए सिरे से वैसा ही राजनीतिक संदेश देने की कोशिश कर रही है।
अब असली सवाल यह है—क्या NDA की एकजुटता अगले पाँच वर्षों तक अटूट रहेगी? क्योंकि इतिहास यही बताता है कि नीतीश कुमार की राजनीति हमेशा गठबंधन की स्थिरता पर टिकी रही है। यदि भाजपा–जदयू–लोजपा और सहयोगी दलों में राजनीतिक संतुलन कायम रहा, तो नीतीश कुमार न केवल बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहेंगे, बल्कि देश के इतिहास में शीर्ष तीन लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्रियों में शामिल हो जाएंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कार्यकाल नीतीश कुमार के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो सकता है। यदि उन्होंने इस मजबूती को कायम रखा तो बिहार में उनके सामने कोई अन्य नेता विकल्प के रूप में खड़ा नहीं होगा। NDA की एकजुटता उनके लिए सिर्फ राजनीतिक सहारा नहीं—बल्कि वह शक्ति है जो उन्हें भारतीय राजनीति के “दीर्घकालीन मुख्यमंत्री क्लब” के शिखर पर खड़ा कर सकती है।

