करगिल षडयंत्र की सूचना देने वाला वीर चरवाहा नहीं रहा
ताशी नामग्याल को 1999 में करगिल युद्ध के दौरान उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए सम्मानित किया गया था। मई 1999 की शुरुआत में ही जब वह अपने लापता याक की तलाश कर रहे थे, तब उन्होंने बटालिक पर्वत श्रृंखला में पठानों की पोशाक में पाकिस्तानी सैनिकों को बंकर खोदते हुए देखा। यह देखकर नामग्याल ने तत्काल भारतीय सेना को सूचित किया, जिससे भारतीय सेना को पाकिस्तान के गुप्त मिशन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली।
लद्दाख, 21 दिसंबर (एजेंसियां)। करगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी सेना द्वारा बंकर खोदे जाने और युद्ध की तैयारियों किए जाने की भारतीय सेना को सूचना देने वाले वीर चरवाहा ताशी नामग्याल का निधन हो गया। नामग्याल ने ही भारतीय सेना को पाकिस्तानी सैनिकों की घुसपैठ के बारे में सतर्क किया था जिस वजह से 1999 के करगिल युद्ध में भारतीय सेना पाकिस्तान को पराजित कर पाई। वीर लद्दाखी चरवाहे ताशी नामग्याल का आर्यन घाटी में निधन हो गया। वह 58 वर्ष के थे।
ताशी नामग्याल को 1999 में करगिल युद्ध के दौरान उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए सम्मानित किया गया था। मई 1999 की शुरुआत में ही जब वह अपने लापता याक की तलाश कर रहे थे, तब उन्होंने बटालिक पर्वत श्रृंखला में पठानों की पोशाक में पाकिस्तानी सैनिकों को बंकर खोदते हुए देखा। यह देखकर नामग्याल ने तत्काल भारतीय सेना को सूचित किया, जिससे भारतीय सेना को पाकिस्तान के गुप्त मिशन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली। इस सतर्कता ने भारतीय सेना की प्रतिक्रिया को आकार दिया और युद्ध की दिशा को बदलने में अहम भूमिका निभाई।
3 मई से 26 जुलाई 1999 तक लड़े गए करगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के श्रीनगर-लेह राजमार्ग को काटने के प्रयास को विफल कर दिया। नामग्याल की सूझबूझ और तत्परता ने भारतीय सेना की जीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उन्हें वीर चरवाहे के रूप में पहचान मिली। उनके निधन से लद्दाख और पूरे देश में शोक की लहर है, और उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।