यूपीपीएससी ने तीन पूर्व अधिकारियों के खिलाफ दी सीबीआई जांच की मंजूरी

यूपीपीएससी ने तीन पूर्व अधिकारियों के खिलाफ दी सीबीआई जांच की मंजूरी

प्रयागराज, 13 अगस्त (एजेंसियां)। अपर निजी सचिव (एपीएस) भर्ती परीक्षा-2010 में हुई धांधली के मामले में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) ने अपने तीन पूर्व अफसरों के खिलाफ सीबीआई को जांच शुरू करने की अनुमति प्रदान कर दी है। यह जानकारी आयोग की ओर से दाखिल जवाबी हलफनामे में सामने आई है।

आयोग की भर्ती परीक्षाओं की जांच कर रही सीबीआई ने एपीएस भर्ती-2010 में हुई धांधली के मामले में चार अगस्त 2021 को एफआईआर दर्ज की थी और तत्कालीन सिस्टम एनालिस्ट गिरीश गोयलतत्कालीन अनुभाग अधिकारी विनोद कुमार सिंह और तत्कालीन समीक्षा अधिकारी लाल बहादुर पटेल के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम1988 की धारा-17 ए के तहत के लिए जांच की अनुमति मांगी थी।

आखिरकार सीबीआई निदेशक के चेतावनी भरे पत्र के बाद आयोग ने चार साल बाद तत्कालीन अफसरों की जांच करने की अनुमति दे दी है। प्रदेश सरकार ने चार सितंबर 2018 को आयोग की एपीएस भर्ती परीक्षा-2010 में बरती गई अनियमितताओं की सीबीआई से जांच कराने की संस्तुति की थी। सीबीआई की प्रारंभिक जांच में आयोग के कुछ तत्कालीन अफसरों के खिलाफ भर्ती में अनियमितता बरतने के पुख्ता प्रमाण मिले थे। नियुक्ति विभाग ने तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति दे दी थी लेकिन अपने अफसरों के विरुद्ध जांच की अनुमति नहीं दी थी।

ऐसे में सीबीआई ने चार अगस्त 2021 को मामले में एफआईआर दर्ज करा दी थी। उसमें तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक का नाम तो था लेकिन आयोग के अफसरों के नामों का खुलासा नहीं किया गया था। जांच को आगे बढ़ाने के लिए सीबीआई लगातार आयोग से अनुमति मांग रही थी और शासन से भी हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया जा रहा था लेकिन आयोग अनुमति नहीं दे रहा था। इस पर सीबीआई निदेशक ने 26 मई 2025 को मुख्य सचिवउत्तर प्रदेश को पत्र लिखकर जांच की अनुमति दिलाने की मांग की थी और 30 दिन में अनुमति न मिलने की स्थिति में जांच को बंद करने की चेतावनी दी थी। सीबीआई निदेशक का पत्र मिलने के बाद शासन ने सक्रियता दिखाते हुए आयोग से जवाब-तलब किया। जिसके बाद आयोग ने दिनांक 25 जून 2025 को सीबीआई को पत्र भेजकर अनुमति दी।

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एपीएस भर्ती के तहत दूसरे चरण में शॉर्ट हैंड व टाइप टेस्ट होता है। परीक्षा में पांच फीसदी तक की गलती अनुमन्य थी। साथ ही पर्याप्त संख्या में अभ्यर्थी न मिलने की स्थिति में आयोग अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए अतिरिक्त तीन फीसदी गलती (कुल आठ फीसदी) को अनुमन्य करते हुए अन्य अभ्यर्थियों को भी मौका दे सकता था। सीबीआई जांच में सामने आया कि अधिकतम पांच फीसदी गलती करने वाले अभ्यर्थियों की संख्या पर्याप्त थीइसके बावजूद अतिरिक्त तीन फीसदी गलती को अनुमन्य करते हुए अलग से 331 अभ्यर्थियों को तीसरे चरण की परीक्षा के लिए क्वालिफाई करा दिया गया जिसका कोई औचित्य नहीं था।

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