पेपर व्यापार में जीएसटी की विसंगति पर व्यापारी चिंतित
द लखनऊ पेपर मर्चेंट्स एसोसिएशन ने जताई चिंता
लखनऊ, 10 सितंबर (एजेंसियां)। लखनऊ पेपर मर्चेंट्स एसोसिएशन ने हाल ही में जीएसटी परिषद द्वारा एचएसएन 4802 (पेपर) पर दोहरे कर दर लागू करने के निर्णय पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। इस सिलसिले में एसोसिएशन का एक प्रतिनिधिमंडल उत्तर प्रदेश सरकार के वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना से मिला और आग्रह किया कि इस निर्णय को शीघ्र समीक्षा की जाए तथा सीबीआईसी एवं जीएसटी परिषद से कागज तथा एक्सरसाइज बुक पर एक समान दर से कर लागू करने का अनुरोध किया जाए, ताकि व्यापार, उद्योग और सुशासन के हितों की रक्षा हो सके। प्रतिनिधिमंडल में वरिष्ठ उपाध्यक्ष संजय काबरा, उपाध्यक्ष मनोज तिवारी एवं सक्रिय कार्यकर्ता विष्णु अग्रवाल और उमेश गोयल शामिल थे।
एसोसिएशन ने स्पष्ट किया कि निल-रेटेड पेपर हेतु कोई भी व्यावहारिक व्यवस्था असंभव है। सरकार ने प्रस्ताव किया है कि अभ्यास पुस्तिकाओं के निर्माण हेतु आपूर्ति किए गए पेपर पर शून्य जीएसटी लगेगा, जबकि अन्य किसी भी प्रयोजन हेतु आपूर्ति किए गए उसी पेपर पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाया जाएगा। एसोसिएशन ने इंगित किया है कि ऐसी आपूर्ति को सही ढंग से अलग-अलग करना संभव नहीं है क्योंकि मिल और वितरक अंतिम उपयोग की पुष्टि नहीं कर सकेंगे। इससे अनिवार्य रूप से दुरुपयोग, मुकदमेबाजी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा।
एसोसिएशन पदाधिकारियों ने कहा कि यह एक अनोखी एवं अव्यवहारिक पहल की शुरुआत है। यद्यपि जीएसटी कानून में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां एचएसएन कोड के अंतर्गत अलग-अलग उत्पादों पर अलग-अलग दरें लागू हैं—जैसे चीनी बनाम खांडसारी, लकड़ी के फर्नीचर बनाम प्लास्टिक/लौह फर्नीचर, जीवन रक्षक दवाइयां बनाम अन्य दवाइयां—परंतु ये सभी उत्पाद भिन्नता पर आधारित हैं। पहली बार ऐसा हो रहा है कि उसी उत्पाद पर, उसी एचएसएन के अंतर्गत केवल अंतिम उपयोग के आधार पर भिन्न कर दरें लागू की गई हैं, जो अभूतपूर्व और अव्यवहारिक है। बिल ऑफ सप्लाई से बड़ा जोखिम निल-रेटेड आपूर्ति के लिए विक्रेताओं को टैक्स इनवॉइस के स्थान पर बिल ऑफ सप्लाई जारी करना होगा। चूँकि बिल ऑफ सप्लाई पर ई-इन्वॉयसिंग प्रणाली लागू नहीं होती, यह भ्रष्टाचार और राजस्व हानि की संभावना बढ़ाता है। साथ ही मिलों, वितरकों और छोटे निर्माताओं पर अतिरिक्त अनुपालन का बोझ भी डालता है।
एसोसिएशन का दृढ़ मत है कि आगे बढ़ने का एक मात्र व्यवहारिक मार्ग यही है कि कागज और अभ्यास पुस्तिकाओं दोनों पर समान रूप से 5 प्रतिशत जीएसटी लगाया जाए। एक समान 5 प्रतिशत जीएसटी दर से अनुपालन सरल होगा, दुरुपयोग रुकेगा और सभी हितधारकों—पेपर मिलों, वितरकों तथा कॉटेज उद्योग में कार्यरत लाखों छोटे अभ्यास पुस्तिका निर्माताओं—को लाभ होगा। साथ ही राज्य के राजस्व को भी कोई हानि नहीं होगी। वरिष्ठ उपाध्यक्ष संजय काबरा ने कहा कि एसोसिएशन की यह मांग व्यापारियों और उद्योग के हित में पूरी तरह व्यावहारिक है। वित्त मंत्री सुरेश खन्ना जी ने प्रतिनिधिमंडल की मांगों को गंभीरता से सुना और आश्वासन दिया कि मामले को केंद्र सरकार तथा जीएसटी परिषद के समक्ष उचित रूप से रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार व्यापारियों की समस्याओं और व्यावहारिक कठिनाइयों को समझते हुए सकारात्मक कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है।
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