घर भारत में... खेत नेपाल में... रिश्ते मुश्किल में पड़े!
भारत और नेपाल के बीच बोया जा रहा सांस्कृतिक विभाजन का विष
इस्लामी कट्टरपंथियों, घुसपैठियों और तस्करों के कारण चुनौतियां गंभीर
शुभ-लाभ सरोकार
भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक विभाजन का विष बोया जा रहा है। कोशिश है कि भारत और नेपाल के पौराणिक सांस्कृतिक और पारिवारिक रिश्ते बिखर जाएं। नेपाल-भारत सीमा पर सैकड़ों ऐसे गांव हैं जहां के निवासियों के खेत नेपाल में हैं। बिहार में तो अनगिनत घर ऐसे मिलेंगे जहां घर का एक हिस्सा भारत में तो दूसरा हिस्सा नेपाल में है। ऐसे में आपसी रिश्ते बेहद मुश्किल में पड़ते जा रहे हैं। नेपाल में अड्डा बनाए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के गुर्गों, आतंकी संगठनों, कट्टर इस्लामिक तत्वों और बांग्लादेशियों एवं रोहिंग्या घुसपैठियों के कारण नाक में दम हो चुका है। तस्करों के कारण दोनों देशों के बीच चुनौतियां पहले से रही हैं। अब नेपाल की बांग्लादेश जैसी हालत से हालत अत्यंत खराब हो रही है।
नेपाल में चल रही ताजा राजनीतिक उथल-पुथल ने भारत-नेपाल सीमा पर तनाव बढ़ा दिया है। उत्तर बिहार के कई जिलों मसलन सीतामढ़ी, मधुबनी, मोतीहारी, सुपौल और उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड के नेपाल सीमा से जुड़े जिलों में लोगों की मुश्किलें काफी बढ़ गई हैं। भारत और नेपाल के बीच की सीमा सिर्फ एक लाइन नहीं है, बल्कि सदियों पुराने रिश्तों का प्रतीक है। यहां रोटी-बेटी का बंधन है, सांस्कृतिक समानताएं हैं और रोजमर्रा की जिंदगी में आपसी जुड़ाव है। लेकिन ये रिश्ते अब नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। तस्करी, अपराध, घुसपैठ और यहां तक कि आतंकवाद की साजिशें इस खुली सीमा को खतरे में डाल रही हैं।
भारत और नेपाल के बीच की सीमा लगभग 1,751 किलोमीटर लंबी है। ये सीमा पांच भारतीय राज्यों से गुजरती है सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड। सिक्किम में यह 99 किमी, पश्चिम बंगाल में 100 किमी, बिहार में 729 किमी, उत्तर प्रदेश में 560 किमी और उत्तराखंड में 263 किमी फैली हुई है। यह सीमा ज्यादातर खुली हुई है, यानि कोई दीवार या फेंसिंग नहीं है। दोनों देशों के लोगों को आसानी से आने-जाने की आजादी है। कभी यह खुलापन आपसी रिश्ते के लिए जरूरी था, लेकिन अब यह खुलापन सुरक्षा के लिए सिरदर्द बन गया है।
वर्ष 1815-16 के एंग्लो-नेपाल युद्ध के बाद 2 दिसंबर 1815 को हुई सुगौली संधि के जरिए नेपाल का एक-तिहाई हिस्सा ब्रिटिश भारत के हवाले कर दिया गया था, जिसमें तराई के ज्यादातर इलाके शामिल थे। संधि में काली नदी (महाकाली) को पश्चिमी सीमा के रूप में तय किया गया, जो आज भी विवाद का कारण है। संधि में तराई का बड़ा हिस्सा, कुमाऊं-गढ़वाल, सिमला हिल्स, सिक्किम और दार्जिलिंग जैसे क्षेत्र शामिल थे, जो भारत की तरफ रहे। नेपाल की पश्चिमी सीमा को महाकाली नदी (काली नदी) से तय किया गया, पूर्वी सीमा को मेची नदी से। नेपाल को कोशी और गंडक नदियों के बीच के तराई इलाके देने पड़े, लेकिन बाद में 1816 में एक अतिरिक्त संधि से नेपाल को कुछ तराई क्षेत्र वापस मिल गए।
इस संधि ने सीमा का बंटवारा किया, लेकिन इसमें कई खामियां थीं। नदियों के बदलते रास्ते और जंगलों ने सीमा को अस्पष्ट बना दिया। नतीजा ये हुआ कि कई गांव और खेत बंट गए। जैसे, एक तरफ घर भारत में तो खेत नेपाल में। ऐसे कई इलाके हैं जहां परिवार बंटे हुए हैं। उदाहरण के लिए सुस्ता और कालापानी जैसे क्षेत्र आज भी विवादित हैं, जहां नदी के बदलते बहाव ने सीमा को उलझा दिया है। संधि के समय ब्रिटिश अधिकारियों ने नक्शे बनाए, लेकिन वे सटीक नहीं थे। आजादी के बाद 1950 की भारत-नेपाल शांति और मैत्री संधि ने सुगौली को आधार बनाया, लेकिन सीमा मुद्दे अनसुलझे हैं। आज भी दोनों देश इन मुद्दों पर बातचीत कर रहे हैं, लेकिन समस्याएं बनी हुई हैं। दरअसल, राजनीतिक दबाव से बात अटक जाती है।
भारत-नेपाल सीमा का सबसे बड़ा करीब 729 किमी हिस्सा बिहार से लगता है। यहां के लोग नेपाल के तराई इलाकों से इतने जुड़े हैं कि इसे रोटी-बेटी का रिश्ता कहा जाता है। दोनों तरफ के लोग एक-दूसरे के यहां रोटी खाते हैं और बेटियां ब्याहते हैं। भाषा भी मिलती-जुलती है, बज्जिका, मैथिली, भोजपुरी और नेपाली का मिश्रण। नेपाल के तराई में रहने वाले मैदानी लोग बिहार के लोगों से सांस्कृतिक रूप से बहुत करीब हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में ये जुड़ाव साफ दिखता है। नेपाली लोग भारत में इलाज के लिए आते हैं, क्योंकि नेपाल में स्वास्थ्य सुविधाएं कम हैं। बिहार के अस्पतालों में नेपाली मरीज आम हैं। व्यापार भी खूब होता है सब्जियां, अनाज और दैनिक सामान सीमा पार आते-जाते हैं। शादियां दोनों तरफ होती हैं, जो परिवारों को जोड़ती हैं। लेकिन हाल के सालों में ये रिश्ते कमजोर पड़ रहे हैं।
नेपाल में कोई भी तनाव होता है, तो किसानों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं। किसान अपने खेतों तक जाने के लिए सीमा पार करते हैं, लेकिन उन्हें काफी दिक्कतें आती हैं। समस्या यह है कि कई किसानों का घर तो भारत में है, लेकिन उनके खेत और खलिहान नेपाल की जमीन पर हैं। ये किसान सालों से अपनी जमीन पर खेतीबाड़ी करते आए हैं, लेकिन अब सख्ती ने सबकुछ उलट-पुलट कर दिया है। किसानों को खेतों तक पहुँचने के लिए घंटों पूछताछ से गुजरना पड़ता है। ट्रैक्टर, बैलगाड़ी तक ले जाना मना है, जिससे फसल कटाई, लाने और नई बुआई में भारी दिक्कत हो रही है। ऊपर से नेपाल सरकार ने जमीन बिक्री के नियम कड़े कर दिए हैं। अब भारतीय किसान अपनी जमीन केवल नेपाली नागरिकों को ही बेच सकते हैं और वो भी कम दाम पर।
नेपाल के नागरिकों द्वारा भारतीय सीमा क्षेत्र, खासकर बिहार के सीतामढ़ी, मधुबनी और सुपौल जैसे जिलों में अतिक्रमण की खबरें सामने आई हैं। नेपाल के लोग भारतीय जमीन पर कब्जा कर रहे हैं और फर्जी दस्तावेज बनाकर आधार कार्ड, पैन कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज हासिल कर रहे हैं। ये लोग भारतीय नागरिकों की तरह सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। नेपाल से सटे सीमावर्ती गांवों में ये गतिविधियां तेजी से चल रही हैं। कुछ लोग शादी के बहाने या अन्य तरीकों से भारत में बस रहे हैं और स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी दस्तावेज बनवा रहे हैं। इससे भारत की सुरक्षा और सीमा की अखंडता पर खतरा बढ़ रहा है। स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने कुछ मामलों में कार्रवाई शुरू की है, लेकिन समस्या अब भी गंभीर है। इस स्थिति ने भारत-नेपाल सीमा विवाद को और जटिल कर दिया है, खासकर सुगौली संधि से जुड़े क्षेत्रों को लेकर।
भारत-नेपाल सीमा पर फेंसिंग क्यों नहीं है? वजह साफ है दोनों देशों के लोगों का आपसी मेल-जोल। अगर दीवार बना दी तो रोटी-बेटी का रिश्ता टूट जाएगा। सरकारें कहती हैं कि खुली सीमा दोनों देशों की दोस्ती का प्रतीक है। 1970-80 के दशक में चीनी कपड़े और इलेक्ट्रॉनिक सामानों की सामान्य तस्करी होती थी। धीरे धीरे यह संगठित अपराध बनता चला गया। सोना, नशीले पदार्थ, हथियार और मानव तस्करी ने पूरे भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र को प्रदूषित कर दिया। इस प्रदूषण को बढ़ावा दिया इस्लामिक कट्टरपंथियों और पाकिस्तान परस्त तत्वों ने। अब तो इसमें बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिये भी शामिल हो गए हैं।
सबसे बड़ा खतरा पाकिस्तान की आईएसआई से है। आईएसआई नेपाल को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल कर रही है। नेपाल की खुली सीमा से घुसपैठ आसान है। आईएसआई ने नेपाल में अड्डे बना रखे हैं, जहां से भारत में आतंकवाद फैलाने की साजिशें रची जाती हैं। उदाहरण के लिए लश्कर ए तैयबा, खालिस्तान और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों के लोग नेपाल रूट से भारत आते हैं। हाल ही में दिल्ली पुलिस ने एक नेपाली नागरिक को गिरफ्तार किया, जो आईएसआई को भारतीय सिम कार्ड सप्लाई कर रहा था। पाकिस्तानी एजेंट नेपाल की राजनीति में घुस गए और महत्वपूर्ण पदों पर बैठ गए। मिर्जा दिलशाद बेग, आफताब आलम जैसे दर्जनों नाम हैं जिन्होंने नेपाल का पूरा माहौल सड़ा कर रख दिया।
नेपाल की सीमा धर्मांतरण के धंधे से भी भर गई। नेपाल में इस्लामी आबादी तेजी से बढ़ी। खासकर तराई इलाकों में। पाकिस्तानी फंडिंग से नेपाल में मस्जिदें बन रही हैं और गरीब हिंदुओं का धर्म परिवर्तन हो रहा है। ये भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है, क्योंकि सीमा के दोनों तरफ मुस्लिम आबादी बढ़ने से कट्टरवाद फैलता जा रहा है। नेपाल में हिंदू बहुल समाज था, लेकिन अब इस्लामी संगठन सक्रिय हैं, जो गोहत्या और बीफ खाने की मांग कर रहे हैं। भारत के सीमावर्ती इलाकों में भी ये असर दिखता है, जहां जनसांख्यिकीय असंतुलन राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती दे रहा है। अगर इस पर समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया तो जल्दी ही नेपाल भी पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह का एक और व्याकुल देश के रूप में परिवर्तित हो जाएगा और भारतवासियों की जिंदगी दुरूह करता रहेगा।
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