मेडिकल प्रवेश परीक्षा में अवैधानिक आरक्षण-नीति
बीस वर्षो से चल रहा है आरक्षण घोटाला,करोड़ों की लूट
लखनऊ, 12 सितंबर (एजेंसियां)। उत्तर प्रदेश में पिछले बीस वर्षों से मेडिकल प्रवेश परीक्षा में अवैधानिक आरक्षण नीति से सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को धोखा दिया जा रहा है। न्यायालय को डीजीएमई की भ्रामक दलील देकर न्याय से रोका ही नहीं जा रहा बल्कि इसकी आड़ में आर्थिक भ्रष्टाचार किया जा रहा है। नमो सेना इंडिया के महासचिव एवं अखिल भारतीय सनातन परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री डॉ. संजय पाठक ने यह जानकारी दी और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस मामले में हस्तक्षेप करने तथा इस असंवैधानिक प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की है।
डॉ. पाठक ने बताया कि वर्ष 2006 से चला आ रहा आरक्षण घोटाला डीजीएमई की भ्रामक दलीलों ने न्याय से वंचित है। हर साल सैकड़ों सामान्य वर्ग के विद्यार्थी इसका अभिशाप झेलने तथा अपने हक पाने से वंचित है। उत्तर प्रदेश की मेडिकल प्रवेश प्रक्रिया में लगभग एक दशक से जारी अवैधानिक आरक्षण नीति ने आखिरकार न्यायपालिका को हस्तक्षेप करने पर मजबूर कर दिया है। लेकिन डीजीएमई की भ्रामक दलीलों ने अदालत को गुमराह कर इस साल भी सामान्य वर्ग के दर्जनों योग्य विद्यार्थियों के साथ अन्याय करवा दिया।उनके अनुसार आरक्षण को लेकर कानून स्पष्ट है। उत्तर प्रदेश शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश हेतु आरक्षण अधिनियम, 2006 के अनुसार आरक्षण की सीमा एसी 21 प्रतिशत,एसटी 2 प्रतिशत और ओबीसी 27 प्रतिशत यानि आरक्षण कुल 50 प्रतिशत और शेष 50 प्रतिशत सीटें सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों के लिए खुली रहनी चाहिए। इसको दरकिनार कर मनमानी और आर्थिक लूट के लिए 2010 से 2015 के बीच राज्य सरकार ने अम्बेडकर नगर, कन्नौज, जालौन और सहारनपुर में चार नए मेडिकल कॉलेज स्थापित किए। चूंकि ये कॉलेज स्पेशल कम्पोनेंट प्लान से आंशिक रूप से वित्तपोषित थे। इस पर सरकार ने आदेश जारी कर दिया कि इनमें 70 प्रतिशत सीटें एससी एसटी 15 प्रतिशत ओबीसी को और मात्र 15 प्रतिशत सामान्य वर्ग को मिलेंगी। इससे आरक्षण की सीमा 79 प्रतिशत तक पहुंच गई, जो न केवल अधिनियम 2006 बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की संवैधानिक सीमा का भी उल्लंघन था। उदाहरण के तौर पर इन चार कॉलेजों में कुल 340 राज्य-कोटा सीटें थीं। इनमें से सामान्य वर्ग के लिए केवल 28 सीटें छोड़ी गईं, जबकि अधिनियम के अनुसार कम से कम 170 सीटें सामान्य वर्ग को मिलनी चाहिए थीं। यानी हर साल लगभग 140 सीटें सामान्य वर्ग से छीनकर गलत तरीके से एसटीएससी को दी गईं। पिछले 10 वर्षों में इसका खामियाजा हजार से अधिक मेधावी विद्यार्थियों पर पड़ा। यही नहीं, ओबीसी को भी 27 प्रतिशत के बजाय केवल 15 प्रतिशतदिया गया, जिससे हर साल लगभग 30 सीटें ओबीसी वर्ग से छिनती रहीं।
इसका खुलासा तब हुआ जब नीट एवं यूजी 2025 में 523 अंक लाने वाली छात्रा सबराह अहमद ने इस अवैध व्यवस्था को चुनौती दी। 25 अगस्त को एकल पीठ ने राज्य सरकार के सभी आदेशों को अवैध घोषित करते हुए कहा कि डीजीएमई ने कानून की गलत व्याख्या कर आरक्षण सीमा का उल्लंघन किया है।जब मामला अपील में गया, तो डीजीएमई ने अदालत को बताया कि पहला राउंड पूरा हो चुका है। लगभग सभी सीटें भर गई हैं। अब प्रक्रिया दोबारा करने से राज्यभर में अफरा-तफरी मच जाएगी। इस पर श्री पाठक ने बताया कि लेकिन सच यह है कि केवल पहला राउंड हुआ था। दूसरा और तीसरा राउंड अभी लंबित थे। अगर पहला राउंड फिर से किया जाता, तो आरक्षण से अधिक दाखिला पाए हुए एसी छात्रों को अन्य कॉलेजों में समायोजित किया जा सकता था और कम से कम 90 सामान्य और ओबीसी विद्यार्थियों को इस साल उनका हक मिलता। यही नही खंडपीठ की व्यवस्था खंडपीठ ने माना कि आरक्षण सीमा का उल्लंघन हुआ है
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