देश के बजट से ज्यादा बड़ा राज्यों का कर्ज
28 राज्यों का कर्ज 17.57 लाख करोड़ से 59.6 लाख करोड़ पहुंचा
10 साल में भारत के 28 राज्यों का कर्ज तीन गुना बढ़ गया
तमिलनाडु, यूपी, पंजाब और बंगाल का कर्ज बना रहा रिकॉर्ड
नई दिल्ली, 21 सितंबर (एजेंसियां)। भारत के राज्यों की वित्तीय स्थिति पर एक गंभीर तस्वीर सामने आई है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि 28 राज्यों का सार्वजनिक कर्ज पिछले एक दशक में 17.57 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 59.6 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। यह बढ़ोतरी तीन गुना से अधिक है और राज्यों की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव का संकेत देती है। यह पहली बार है जब किसी आधिकारिक दस्तावेज में राज्यों की वित्तीय सेहत का पूरे दशक का तुलनात्मक विश्लेषण पेश किया गया है। राज्य के वित्त सचिवों के सम्मेलन में सीएजी के संजय मूर्ति द्वारा यह रिपोर्ट जारी की गई।
रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 के अंत तक 28 राज्यों का कुल सार्वजनिक कर्ज 59,60,428 करोड़ रुपए था। यह उनके संयुक्त सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 2,59,57,705 करोड़ रुपए का 22.96 प्रतिशत है। 2013-14 में यह अनुपात 16.66 प्रतिशत था। यानि, सिर्फ 10 वर्षों में राज्यों का कर्ज-से-जीएसडीपी अनुपात लगभग 6.3 प्रतिशत अंक बढ़ गया। यह रुझान दर्शाता है कि राज्यों का वित्तीय प्रबंधन राजस्व वृद्धि के बजाय कर्ज पर अधिक निर्भर हो रहा है।
कर्ज से जीएसडीपी अनुपात में सबसे ऊपर पंजाब है, जहां यह आंकड़ा 40.35 प्रतिशत दर्ज किया गया। इसके बाद नगालैंड (37.15 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (33.70 प्रतिशत) का स्थान है। इसके उलट, सबसे कम अनुपात वाले राज्य ओड़ीशा (8.45 प्रतिशत), महाराष्ट्र (14.64 प्रतिशत) और गुजरात (16.37 प्रतिशत) हैं। 31 मार्च 2023 तक 8 राज्यों का कर्ज उनकी जीएसडीपी का 30 प्रतिशत से अधिक था, 6 राज्यों का 20 प्रतिशत से कम और 14 राज्यों का 20–30 प्रतिशत के बीच। 2022-23 में राज्यों का कुल कर्ज देश की जीडीपी का 22.17 प्रतिशत था। उस समय भारत की जीडीपी 2,68,90,473 करोड़ रुपए रही। यानि, राज्यों का कर्ज न केवल उनकी खुद की अर्थव्यवस्था बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी वित्तीय स्थिरता को प्रभावित कर रहा है।
कैग की रिपोर्ट में राज्यों के सार्वजनिक कर्ज को विभिन्न हिस्सों में बांटा गया है। इसमें खुले बाजार से उधारी (सिक्योरिटी, ट्रेजरी बिल, बॉन्ड), भारतीय स्टेट बैंक और अन्य बैंकों से ऋण, भारतीय रिजर्व बैंक से वेज एंड मीन्स एडवांस (डब्लूएमए) और वित्तीय संस्थाओं जैसे एलआईसी और नाबार्ड से लिए गए ऋण शामिल हैं। सीएजी रिपोर्ट बताती है कि राजस्व प्राप्तियों के अनुपात में राज्यों का कर्ज 2014-15 में 128 प्रतिशत से लेकर 2020-21 में 191 प्रतिशत तक रहा। यानि, कई राज्यों ने जितनी कमाई की उससे लगभग दोगुना कर्ज ले लिया। औसतन, सार्वजनिक कर्ज राज्यों की कुल गैर-कर्ज प्राप्तियों का 150 प्रतिशत रहा है। वहीं, कर्ज-से-जीएसडीपी अनुपात 17–25 प्रतिशत के बीच रहा और औसत 20 प्रतिशत बना। कोविड वर्ष 2020-21 में यह अनुपात अचानक 21 से बढ़कर 25 प्रतिशत हो गया, क्योंकि उस समय जीएसडीपी में भारी गिरावट दर्ज की गई।
2020-21 से 2022-23 के बीच कर्ज में वृद्धि का एक बड़ा कारण केंद्र सरकार से मिलने वाले बैक-टू-बैक लोन थे। ये लोन जीएसटी मुआवजा घाटे को पूरा करने और पूंजीगत व्यय के लिए राज्यों को विशेष सहायता के तौर पर दिए गए। रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि सरकार को उधारी सिर्फ निवेश या पूंजीगत खर्च के लिए करनी चाहिए, न कि राजस्व खर्च (ऑपरेटिंग कॉस्ट) के लिए। लेकिन वास्तविकता यह है कि 11 विभिन्न राज्यों आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, हरियाणा, हि
सीएजी रिपोर्ट साफ तौर पर इशारा करती है कि यदि राज्यों ने कर्ज का यह असंतुलित इस्तेमाल जारी रखा, तो भविष्य में वे वित्तीय संकट का सामना कर सकते हैं। उच्च ब्याज दरों के कारण ऋण सेवा का बोझ लगातार बढ़ेगा और विकास परियोजनाओं के लिए पूंजीगत निवेश की गुंजाइश और कम हो जाएगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि राज्यों को कर्ज प्रबंधन में सख्ती लाने, राजस्व बढ़ाने के नए उपाय खोजने और कर्ज को उत्पादक क्षेत्रों में लगाने की जरूरत है। गैर-कर राजस्व (जैसे रॉयल्टी, फीस, डिविडेंड) का विस्तार और केंद्र व राज्यों के बीच वित्तीय सहयोग को बेहतर करना, ऐसे उपाय हैं जो वित्तीय स्थिरता ला सकते हैं।
आम आदमी पार्टी द्वारा शासित पंजाब राज्य कर्ज में सबसे ज्यादा डूबा है। पंजाब का कर्ज उसकी सालाना आर्थिक कमाई के लगभग आधे के बराबर है। यह समस्या नई नहीं है। पंजाब लंबे समय से कम राजस्व और बढ़ते खर्चों से जूझ रहा है। सीएजी रिपोर्ट ने पुष्टि की कि पंजाब की स्थिति खराब है। पहले से ही बेरोजगारी, खेती में संकट और उद्योगों के लिए कम मौकों का सामना कर रहे पंजाब के लिए इतना कर्ज विकास में निवेश की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। पंजाब अब बुनियादी ढांचे जैसे भविष्य की वृद्धि पैदा करने वाले खर्चों पर ध्यान देने के बजाय, उधार लिए गए पैसे का बड़ा हिस्सा रोजमर्रा के खर्चों को पूरा करने में खर्च कर रहा है।
ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) शासित पश्चिम बंगाल की स्थिति भी अलग नहीं है। सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, राज्य का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 33.7 प्रतिशत है, जो देश में सबसे ज्यादा में से एक है। पिछले दस साल में पश्चिम बंगाल का कर्ज बोझ तेजी से बढ़ा है। पंजाब की तरह, पश्चिम बंगाल भी उन 11 राज्यों में शामिल है जो उधार लिए गए पैसे को रोजमर्रा के खर्चों, जैसे वेतन, सब्सिडी और प्रशासनिक लागत में खर्च कर रहे हैं, न कि ऐसी संपत्ति बनाने में जो भविष्य में उनकी वित्तीय स्थिति को सुधार सके।
रिपोर्ट में कहा गया कि औसतन राज्यों का सार्वजनिक कर्ज उनकी राजस्व प्राप्तियों/कुल गैर-कर्ज प्राप्तियों का 150 प्रतिशत रहा है। इसी तरह सार्वजनिक कर्ज जीएसडीपी का 17-25 प्रतिशत के बीच रहा है और औसतन जीएसडीपी का 20 प्रतिशत रहा है। 2019-20 में जीएसडीपी का 21 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में 25 प्रतिशत होने का मुख्य कारण कोविड वर्ष में जीएसडीपी में कमी थी। 2020-21 से 2022-23 के बीच केंद्र सरकार के ऋणों में वृद्धि बैक-टू-बैक ऋणों, जीएसटी मुआवजा कमी और राज्यों को पूजीगत खर्च के लिए विशेष सहायता के रूप में ऋणों के कारण थी। रिपोर्ट में एक और चिंताजनक बात सामने आई कि पंजाब, पश्चिम बंगाल और नगालैंड जैसे 11 राज्यों में 2022-23 के दौरान पूंजीगत खर्च उनके शुद्ध उधार से कम था। उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश और पंजाब में पूंजीगत खर्च उनके शुद्ध उधार का क्रमशः केवल 17 प्रतिशत और 26 प्रतिशत था। इसका मतलब है कि उधार लिया गया ज्यादातर पैसा घाटे को पूरा करने में गया, न कि नई संपत्ति बनाने में।
भारतीय राज्यों का कर्ज पिछले पांच वर्षों में 74 प्रतिशत बढ़कर 8.3 लाख करोड़ रुपए हो गया है। तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र शीर्ष 10 स्थानों पर हैं। कर्ज-जीडीपी अनुपात में महाराष्ट्र सबसे कम 18 प्रतिशत पर है, जबकि पश्चिम बंगाल सबसे ज्यादा 39 प्रतिशत पर है। 2024 में सबसे ज्यादा कर्ज तमिलनाडु पर है। यह 8.3 लाख करोड़ रुपए है। उसके बाद उत्तर प्रदेश का नंबर आता है। सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाले राज्य पर 7.7 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। महाराष्ट्र 7.2 लाख करोड़ रुपए के साथ तीसरे नंबर पर है। फिर पश्चिम बंगाल (6.6 लाख करोड़), कर्नाटक (6.0 लाख करोड़), राजस्थान (5.6 लाख करोड़), आंध्र प्रदेश (4.9 लाख करोड़), गुजरात (4.7 लाख करोड़), केरल (4.3 लाख करोड़) और मध्य प्रदेश (4.2 लाख करोड़ रुपए) आते हैं। ये टॉप 10 राज्य हैं जिन पर सबसे ज्यादा कर्ज है।
पिछले पांच सालों में अलग-अलग राज्यों में कर्ज की बढ़ोतरी अलग-अलग रही है। मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 114 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई। 2019 में मध्य प्रदेश का कर्ज 2 लाख करोड़ था, जो 2024 में बढ़कर 4.2 लाख करोड़ हो गया। कर्नाटक और तमिलनाडु में 109 प्रतिशत और 108 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। आंध्र प्रदेश का कर्ज 84 प्रतिशत बढ़ा, जबकि राजस्थान और केरल में 80 प्रतिशत और 76 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। महाराष्ट्र में कर्ज की रफ्तार अपेक्षाकृत कम 65 प्रतिशत रही, जबकि उत्तर प्रदेश में सबसे कम 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
राज्यों के कर्ज के बोझ को अक्सर उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के अनुपात में मापा जाता है। बड़े राज्यों में महाराष्ट्र का कर्ज-जीडीपी अनुपात सबसे कम 18 प्रतिशत है। उसके बाद कर्नाटक का 24 प्रतिशत है। दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल का कर्ज-जीडीपी अनुपात सबसे ज्यादा 39 प्रतिशत है, उसके बाद केरल और राजस्थान का 37 प्रतिशत है। तमिलनाडु और मध्य प्रदेश का अनुपात 31 प्रतिशत है, जबकि आंध्र प्रदेश का 34 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश का कर्ज का बोझ उसके जीएसडीपी का 30 प्रतिशत है, जो अपेक्षाकृत कम है।
महाराष्ट्र 40.44 लाख करोड़ रुपए के जीएसडीपी के साथ भारत का सबसे बड़ा आर्थिक केंद्र बना हुआ है। तमिलनाडु 27.22 लाख करोड़ रुपए के साथ दूसरे नंबर पर है, जबकि उत्तर प्रदेश 25.48 लाख करोड़ रुपए के साथ तीसरे स्थान पर है। कर्नाटक और पश्चिम बंगाल का जीएसडीपी 25.01 लाख करोड़ रुपए और 17.01 लाख करोड़ रुपए है। 2024 के लिए गुजरात के जीएसडीपी का डेटा उपलब्ध नहीं था। यह आंकड़े 2023-24 के हैं। यह चिंता का विषय है कि कई राज्यों का कर्ज उनके जीएसडीपी का एक बड़ा हिस्सा है। इससे उनकी विकास योजनाओं पर असर पड़ सकता है। राज्यों को अपने खर्चों पर नियंत्रण रखने और राजस्व बढ़ाने के उपाय करने होंगे। तभी वे इस बढ़ते कर्ज के बोझ से निजात पा सकेंगे।
📊 2024 में सबसे ज्यादा कर्ज वाले टॉप 10 राज्य
रैंक | राज्य | कर्ज (लाख करोड़ ₹ में) |
---|---|---|
1 | तमिलनाडु | 8.3 |
2 | उत्तर प्रदेश | 7.7 |
3 | महाराष्ट्र | 7.2 |
4 | पश्चिम बंगाल | 6.6 |
5 | कर्नाटक | 6.0 |
6 | राजस्थान | 5.6 |
7 | आंध्र प्रदेश | 4.9 |
8 | गुजरात | 4.7 |
9 | केरल | 4.3 |
10 | मध्य प्रदेश | 4.2 |
📝 नोट: आंकड़े 2024 के अनुमानित सरकारी वित्तीय रिपोर्ट पर आधारित हैं।
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