डोनाल्ड ट्रम्प ने एच- 1 बी वीजा पर लगाई 88 लाख सालाना की फीस

भारतीयों पर होगा सबसे ज्यादा असर

डोनाल्ड ट्रम्प ने एच- 1 बी वीजा पर लगाई 88 लाख सालाना की फीस

कम्पनियों ने कर्मचारियों को 24 घंटे में लौटने को कहा

नई दिल्ली, 20 सितम्बर, (एजेंसियां) अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के दिग्गज नेता डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर अप्रवासी भारतीयों और विदेशी पेशेवरों को लेकर बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने एच-1बी वीजा पर भारी शुल्क लगाने का ऐलान किया है, जिसके तहत अब नए वीजा आवेदन पर लगभग 88 लाख रुपये (एक लाख डॉलर) की फीस देनी होगी। ट्रम्प प्रशासन का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य अमेरिकी नौकरियों को सुरक्षित करना और कंपनियों को विदेशी कर्मचारियों पर निर्भरता कम करने के लिए मजबूर करना है। इस फैसले ने न केवल भारतीय आईटी कंपनियों को हिला दिया है, बल्कि हजारों भारतीय पेशेवरों और छात्रों के भविष्य पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।

एच-1बी वीजा अमेरिका में सबसे लोकप्रिय वीजा श्रेणियों में से एक है, जिसके जरिए भारत समेत दुनिया भर से हजारों उच्च प्रशिक्षित पेशेवर अमेरिका की कंपनियों में नौकरी करते हैं। विशेषकर भारतीय आईटी क्षेत्र इस वीजा पर काफी हद तक निर्भर रहा है। हर साल बड़ी संख्या में भारतीय इंजीनियर, सॉफ्टवेयर डेवलपर और शोधकर्ता इस वीजा के जरिए अमेरिका जाते रहे हैं। लेकिन अब फीस में इतनी बड़ी वृद्धि ने उनके सपनों पर पानी फेरने जैसा काम किया है। जिन कंपनियों को अपने कर्मचारियों के लिए पहले हजारों डॉलर खर्च करने पड़ते थे, अब उन्हें एक लाख डॉलर की भारी-भरकम राशि चुकानी होगी, जो मध्यम आकार की कंपनियों और स्टार्टअप्स के लिए लगभग असंभव होगा।

ट्रम्प प्रशासन का तर्क है कि अमेरिकी युवाओं की नौकरियां विदेशी कर्मचारियों के कारण खतरे में हैं। उनका मानना है कि बड़ी टेक कंपनियां भारतीय और एशियाई देशों के कर्मचारियों को कम लागत पर नियुक्त करके अमेरिकी कर्मचारियों को अवसरों से वंचित कर रही हैं। इसीलिए अब इतनी ऊंची फीस लगाई गई है ताकि कंपनियां विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने से पहले दस बार सोचें और अमेरिकी नागरिकों को प्राथमिकता दें। ट्रम्प के करीबी सहयोगियों का कहना है कि यह फैसला केवल आर्थिक दृष्टि से नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता के लिए भी लिया गया है।

भारत में इस फैसले की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। विदेश मंत्रालय ने चिंता जताते हुए कहा कि अमेरिका की इस नीति से लाखों भारतीय पेशेवर प्रभावित होंगे। भारत सरकार ने कहा कि वह इस मुद्दे को राजनयिक स्तर पर उठाएगी और अमेरिकी प्रशासन से इस फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग करेगी। आईटी कंपनियों के संगठनों ने भी चेतावनी दी है कि इससे भारत-अमेरिका के कारोबारी संबंधों पर नकारात्मक असर पड़ेगा और अमेरिका को प्रतिभाशाली कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ेगा।

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अमेरिका की बड़ी कंपनियों में भी इस फैसले को लेकर असमंजस की स्थिति है। माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, गूगल और मेटा जैसी दिग्गज कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को सलाह दी है कि वे अनावश्यक विदेश यात्रा से बचें और जो कर्मचारी पहले से विदेश में हैं, वे तुरंत अमेरिका लौट आएं ताकि नए वीजा नियमों के कारण दिक्कतें न हों। कंपनियों ने यह भी स्पष्ट किया है कि इतनी भारी फीस के चलते भविष्य में नए कर्मचारियों की भर्ती मुश्किल हो जाएगी और इससे उनकी प्रतिस्पर्धा पर भी असर पड़ सकता है।

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विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रम्प का यह कदम अमेरिका की चुनावी राजनीति से जुड़ा हुआ है। 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद से ही ट्रम्प ने अपने पुराने एजेंडे, "अमेरिकी नौकरियां पहले" (America First Jobs), को और आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। उनका मानना है कि एच-1बी वीजा जैसे प्रावधानों ने अमेरिकी श्रमिकों के अवसर छीन लिए हैं। हालांकि विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इस तरह की कठोर नीतियों से अमेरिका की तकनीकी क्षमता पर असर पड़ेगा और वह वैश्विक प्रतिभा आकर्षित करने की दौड़ में पिछड़ सकता है।

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कानूनी विशेषज्ञों ने भी इस पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि इतनी बड़ी फीस लगाना केवल प्रशासनिक आदेश से संभव नहीं होना चाहिए, क्योंकि वीजा शुल्क और नीति निर्धारण आम तौर पर कांग्रेस के अधिकार क्षेत्र में आता है। ऐसे में इस फैसले को अदालत में चुनौती मिल सकती है। कई संगठनों ने पहले ही संकेत दिया है कि वे इस मामले को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ेंगे।

भारत-अमेरिका संबंधों पर इसका असर स्पष्ट रूप से दिखने लगा है। जहां भारत अपनी नाराजगी जता रहा है, वहीं अमेरिका की राजनीतिक लॉबी में भी मतभेद पैदा हो गए हैं। कुछ अमेरिकी सांसदों ने कहा है कि यह फैसला कंपनियों के खिलाफ है और इससे अमेरिका की आर्थिक प्रगति धीमी हो सकती है। वहीं, ट्रम्प समर्थक गुट का कहना है कि यह अमेरिकी श्रमिकों के हित में ऐतिहासिक कदम है।

कुल मिलाकर, डोनाल्ड ट्रम्प का यह फैसला न केवल अप्रवासी भारतीयों बल्कि पूरी वैश्विक आईटी और टेक इंडस्ट्री के लिए झटका है। 88 लाख रुपये की फीस चुकाना कंपनियों और कर्मचारियों के लिए आसान नहीं होगा। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में इस फैसले पर कितना दबाव बनता है और क्या ट्रम्प प्रशासन अपने रुख में नरमी लाता है या फिर अमेरिकी चुनावी राजनीति के चलते इस मुद्दे को और ज्यादा सख्ती से लागू करता है। लेकिन इतना तय है कि इस कदम ने एच-1बी वीजा को लेकर एक नया अध्याय खोल दिया है, जिसका असर लंबे समय तक महसूस किया जाएगा।

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