कर्नाटक के 14 हिंदू मंदिरों में बढ़ा सेवा शुल्क

कांग्रेस सरकार के फैसले पर मचा बवाल; भाजपा ने की आलोचना

कर्नाटक के 14 हिंदू मंदिरों में बढ़ा सेवा शुल्क

नई दिल्ली, 20 सितम्बर, (एजेंसियां)

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार द्वारा राज्य के 14 प्रमुख हिंदू मंदिरों में सेवा शुल्क बढ़ाने के फैसले ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। भाजपा ने इसे हिंदू आस्थाओं पर सीधा प्रहार करार देते हुए तीखी आलोचना की है, जबकि कांग्रेस ने अपने कदम को प्रशासनिक आवश्यकता और मंदिरों की बेहतर व्यवस्था के लिए जरूरी बताया है। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब राज्य की राजनीति पहले से ही संवेदनशील मुद्दों पर गरमाई हुई है और अब इस फैसले ने विवाद को और गहरा कर दिया है।

कांग्रेस सरकार का कहना है कि मंदिरों की देखरेख, सुरक्षा, पुजारियों और कर्मचारियों के वेतन, तीर्थयात्रियों की सुविधाओं और संरचनात्मक सुधारों के लिए अतिरिक्त राजस्व की आवश्यकता थी। सरकार ने दलील दी है कि सेवा शुल्क में मामूली वृद्धि से भक्तों पर बड़ा बोझ नहीं पड़ेगा, बल्कि इससे मंदिरों का प्रबंधन अधिक सुचारु होगा और श्रद्धालुओं को सुविधाओं का विस्तार मिलेगा। कांग्रेस के मंत्री और अधिकारियों का कहना है कि शुल्क बढ़ोतरी केवल उन सेवाओं पर की गई है जो विशेष और वैकल्पिक हैं, जैसे विशेष दर्शन, पूजा अनुष्ठान और प्रसाद व्यवस्था, जबकि सामान्य दर्शन अब भी निशुल्क है।

लेकिन भाजपा ने कांग्रेस सरकार पर हमला बोलते हुए इसे हिंदू समाज के साथ अन्याय बताया है। भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार जानबूझकर हिंदू मंदिरों को निशाना बना रही है और उनकी आस्थाओं से खिलवाड़ कर रही है। उनका कहना है कि अल्पसंख्यकों से जुड़े धार्मिक संस्थानों को छूट और सुविधाएँ दी जाती हैं, लेकिन हिंदू मंदिरों पर आर्थिक बोझ डाला जाता है। भाजपा ने इसे दोहरे मापदंड बताते हुए सड़कों पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। पार्टी ने यह भी सवाल उठाया कि जब राज्य सरकार को अतिरिक्त राजस्व चाहिए तो वह अन्य स्रोतों से कर नहीं बढ़ाती, बल्कि मंदिरों को ही निशाना बनाती है।

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इस निर्णय का असर आम श्रद्धालुओं पर भी पड़ने लगा है। मंदिरों में नियमित दर्शन करने वाले कई भक्तों ने असंतोष जताया है। उनका कहना है कि पूजा और अनुष्ठान की परंपराएं श्रद्धा पर आधारित होती हैं, लेकिन सेवा शुल्क बढ़ने से यह एक तरह का आर्थिक बोझ बन गया है। श्रद्धालुओं का आरोप है कि कांग्रेस सरकार ने धार्मिक भावनाओं की परवाह किए बिना यह कदम उठाया है। कई सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने भी सरकार के इस फैसले पर आपत्ति दर्ज की है और कहा है कि सरकार को इस निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए।

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कांग्रेस सरकार ने भाजपा के आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताते हुए खारिज कर दिया है। राज्य के मंत्री ने कहा कि भाजपा मुद्दे को तूल देकर जनता को गुमराह कर रही है। उन्होंने कहा कि मंदिरों में सेवा शुल्क से होने वाली आय का उपयोग सीधे तौर पर उन्हीं मंदिरों के विकास में होगा और इसका किसी अन्य उद्देश्य में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। सरकार का यह भी कहना है कि सेवा शुल्क में वृद्धि पहले भी कई बार हुई है और यह नई बात नहीं है। कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि भाजपा केवल धर्म के नाम पर राजनीति करके जनता को भड़काने की कोशिश कर रही है।

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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कर्नाटक जैसे संवेदनशील राज्य में जहां हिंदू-मुस्लिम समीकरण अक्सर चुनावी राजनीति को प्रभावित करते हैं, यह फैसला बड़ा मुद्दा बन सकता है। भाजपा पहले ही इस विषय को लेकर गांव-गांव और शहर-शहर तक जाने की तैयारी कर रही है। पार्टी नेताओं ने ऐलान किया है कि वे मंदिरों में जाकर जनता को बताएंगे कि कांग्रेस सरकार किस तरह उनकी धार्मिक भावनाओं के साथ अन्याय कर रही है। दूसरी ओर, कांग्रेस को भरोसा है कि जनता जब देखेगी कि मंदिरों की सुविधाएं वास्तव में सुधर रही हैं, तब इस कदम का सकारात्मक असर होगा।

संसद और राज्य विधानसभा में भी इस मुद्दे पर बहस छिड़ने की संभावना है। भाजपा विधायकों ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वे इस मुद्दे को सदन में जोरदार तरीके से उठाएंगे। उन्होंने कहा है कि यह मामला केवल शुल्क वृद्धि का नहीं बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और आस्था पर हमले का है। वहीं, कांग्रेस विधायक इसका बचाव करते हुए कह रहे हैं कि भाजपा केवल वोट बैंक की राजनीति कर रही है और मंदिरों की वास्तविक स्थिति की अनदेखी कर रही है।

राज्यभर में इस निर्णय के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं। भाजपा और विभिन्न हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता मंदिरों के बाहर धरना दे रहे हैं और कांग्रेस सरकार से शुल्क वृद्धि वापस लेने की मांग कर रहे हैं। कई स्थानों पर सरकार के खिलाफ नारेबाजी हुई और कुछ जगहों पर पुलिस को हालात संभालने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा।

कुल मिलाकर, कर्नाटक सरकार का यह फैसला राज्य की राजनीति में नया तूफान लेकर आया है। कांग्रेस जहां इसे प्रशासनिक सुधार बता रही है, वहीं भाजपा इसे हिंदू आस्था पर चोट बताकर बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना रही है। जनता की प्रतिक्रिया अभी बंटी हुई नजर आ रही है, लेकिन इतना तय है कि आने वाले दिनों में यह विवाद और गहराएगा तथा सियासी हलचल को और तेज करेगा।

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