मोदी का ऐलान: चिप हो या शिप, अब सब भारत में ही बनेगा
आत्मनिर्भरता का मंत्र और मेरीटाइम सेक्टर में नेक्स्ट जेनरेशन रिफॉर्म्स
भावनगर, 20 सितंबर (एजेंसियां)।। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को गुजरात के भावनगर से देश को आत्मनिर्भरता का एक नया संदेश दिया। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि भारत ‘चिप हो या शिप’ – हर चीज अपने देश में ही बनाए। प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि देश के मेरीटाइम सेक्टर में व्यापक सुधारों की दिशा में काम तेज़ी से हो रहा है और यह भारत को विश्व की एक बड़ी समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित करेगा।
मोदी ने कहा कि भारत के लिए आत्मनिर्भरता कोई विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता है। “भारत को अगर 2047 तक विकसित राष्ट्र बनना है, जब देश अपनी आजादी के 100 वर्ष पूरे करेगा, तो आत्मनिर्भरता ही एकमात्र रास्ता है। भारत को अपनी शक्ति और गौरव को फिर से स्थापित करना होगा। चिप हो या शिप, हमें भारत में ही बनाना होगा,” उन्होंने दृढ़ स्वर में कहा।
प्रधानमंत्री ने बताया कि भारत सदियों से जहाज निर्माण की कला में महारथी रहा है और अब ‘नेक्स्ट जेनरेशन रिफॉर्म्स’ के जरिए उस भूले हुए गौरव को फिर से वापस लाया जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि पिछले दशक में भारत ने अपनी नेवी को 40 से अधिक जहाजों और पनडुब्बियों से सुसज्जित किया है और उनमें से अधिकांश भारत में ही बने हैं। “आपने विशालकाय आईएनएस विक्रांत का नाम सुना होगा। यह भी भारत में बना है और इसके निर्माण में जिस उच्च गुणवत्ता वाले स्टील का इस्तेमाल हुआ, वह भी भारत में निर्मित हुआ था। यानी हमारे पास सामर्थ्य है, कौशल है, और अब राजनीतिक इच्छाशक्ति भी है,” मोदी ने जनता को आश्वस्त किया।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर ऐलान किया कि सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए बड़े जहाजों को ‘इंफ्रास्ट्रक्चर’ का दर्जा दिया है। उन्होंने कहा कि जब किसी सेक्टर को इंफ्रास्ट्रक्चर का दर्जा मिलता है तो उसे बैंक ऋण, ब्याज दर में छूट और अन्य वित्तीय लाभ आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस फैसले से शिप निर्माण करने वाली भारतीय कंपनियों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी और वित्तीय बोझ भी कम होगा।
मोदी ने आगे बताया कि भारत सरकार तीन नई योजनाओं पर काम कर रही है, जिनसे शिप बिल्डिंग सेक्टर को बड़ा लाभ मिलेगा। इन योजनाओं से उद्योग को आर्थिक मदद मिलने के साथ-साथ हमारे शिपयार्ड्स आधुनिक तकनीक अपनाने में सक्षम होंगे। डिजाइन और क्वालिटी में सुधार होगा और आने वाले वर्षों में इस पर 70 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जाएंगे।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भावनगर की पुरानी यादें भी ताज़ा कीं। उन्होंने बताया कि 2007 में जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब राज्य में शिप बिल्डिंग के अवसरों पर बड़ा सेमिनार आयोजित किया गया था। उसी दौरान गुजरात ने इस क्षेत्र को नया इकोसिस्टम देने की दिशा में काम शुरू किया था। आज वही पहल राष्ट्रीय स्तर पर विस्तृत हो रही है।
मोदी ने शिप बिल्डिंग को केवल एक उद्योग न बताते हुए उसे ‘मदर ऑफ ऑल इंडस्ट्रीज’ कहा। उनके अनुसार, “जब एक जहाज बनता है तो सिर्फ जहाज नहीं बनता, उसके साथ स्टील, मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल, पेंट्स, आईटी सिस्टम जैसे अनेकों उद्योगों को भी सहारा मिलता है। इससे एमएसएमई और छोटे उद्योगों को सीधा फायदा होता है।”
उन्होंने रिसर्च का हवाला देते हुए कहा कि शिप बिल्डिंग में हर एक रुपये का निवेश अर्थव्यवस्था में लगभग दोगुना निवेश उत्पन्न करता है। शिपयार्ड में पैदा होने वाली हर एक नौकरी से सप्लाई चेन में छह से सात नई नौकरियां बनती हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “अगर शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री में 100 नौकरियां बनती हैं, तो इससे जुड़े दूसरे सेक्टर्स में 600 से अधिक नई नौकरियां पैदा होती हैं। यह मल्टीप्लायर इफेक्ट भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाएगा।”
प्रधानमंत्री ने स्किल डेवलपमेंट पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि आईटीआई और मेरीटाइम यूनिवर्सिटी इस क्षेत्र में अहम भूमिका निभाएंगी। इसके अलावा एनसीसी कैडेट्स को भी नेवी और कमर्शियल सेक्टर दोनों के लिए तैयार किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “आज का भारत एक अलग मिजाज से आगे बढ़ रहा है। हम जो लक्ष्य तय करते हैं, उन्हें समय से पहले पूरा करके दिखा रहे हैं।”
मोदी ने कहा कि भारत की नेवी और समुद्री ताकत को और सुदृढ़ करना सरकार की प्राथमिकता है। बीते वर्षों में तटीय क्षेत्रों में नई व्यवस्थाएं लागू की गई हैं और उनका लाभ नौसेना से लेकर व्यापार तक को मिल रहा है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि शिप बिल्डिंग सेक्टर में सुधार भारत को न केवल आत्मनिर्भर बनाएंगे बल्कि विश्व की अग्रणी समुद्री शक्ति भी बनाएंगे।
प्रधानमंत्री का यह बयान उस समय आया है जब भारत ग्लोबल सप्लाई चेन और टेक्नोलॉजी रेस में अपनी भागीदारी को और मजबूत करना चाहता है। मोदी का ‘चिप हो या शिप’ वाला मंत्र न केवल आत्मनिर्भर भारत की दिशा तय करता है बल्कि आने वाले दशकों के लिए देश की आर्थिक और सामरिक ताकत की नींव भी मजबूत करता है।