फांसी के सिवा अन्य मामले में त्वरित सुनवाई नहीं होगी

सुप्रीम कोर्ट ने लिया महत्वपूर्ण स्टैंड

फांसी के सिवा अन्य मामले में त्वरित सुनवाई नहीं होगी

काम के अतिशय बोझ में तेज निपटारे की उम्मीद नहीं

नई दिल्ली, 24 सितंबर (एजेंसियां)। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वे किसी मामले को उसी दिन लिस्ट करने (सुनवाई के लिए लगाने) का आदेश तभी देंगेजब किसी की फांसी होने वाली हो। उन्होंने वकीलों से यह भी सवाल किया कि क्या कोई जजों की स्थितिउनके काम के घंटे और नींद की कमी को समझता है। यह टिप्पणी तब आई जब एक वकील ने तुरंत सुनवाई की मांग की। जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ में जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह भी शामिल थे। यह पीठ उन मामलों की मेन्शनिंग (यानी तुरंत सुनवाई के लिए अनुरोध) सुन रही थी।

सुनवाई के दौरान वकील शोभा गुप्ता ने जस्टिस सूर्यकांत के सामने एक मामला रखा। उन्होंने कहा कि राजस्थान में एक रिहायशी मकान की नीलामी आज ही होनी हैइसलिए इस केस को तुरंत सूचीबद्ध किया जाए। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने सख्त रुख अपनाते हुए कहाजब तक किसी की फांसी होने वाली न होमैं उसी दिन केस लिस्ट नहीं करूंगा। आप लोग जजों की स्थिति नहीं समझते। आपको अंदाजा भी है कि हम कितने घंटे काम करते हैं और हमें कितनी कम नींद मिलती हैजब तक किसी की आजादी दांव पर न होउसी दिन केस लिस्ट नहीं होगा।

जब वकील ने आग्रह जारी रखा तो जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि नीलामी का नोटिस कब जारी हुआ था। इस पर शोभा गुप्ता ने बताया कि नोटिस पिछले हफ्ते ही जारी हुआ था और बकाया राशि का कुछ हिस्सा पहले ही जमा कर दिया गया है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि इस मामले की तुरंत सुनवाई की उम्मीद न रखें और इसे अगले दो महीने तक सूचीबद्ध नहीं किया जाएगा। हालांकिबाद में उन्होंने राहत देते हुए कोर्ट मास्टर को आदेश दिया कि इस केस को शुक्रवार को सूचीबद्ध किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट में हर दिन बड़ी संख्या में वकील अपने मामलों को तुरंत सुनवाई के लिए पेश करते हैं। लेकिन कोर्ट का कामकाज पहले से ही बहुत व्यस्त होता है। जस्टिस सूर्यकांत के इस बयान ने यह साफ किया कि केवल अत्यंत गंभीर मामलोंजैसे किसी की फांसी या व्यक्तिगत आजादी का सवालमें ही तत्काल सुनवाई होगी। उनका यह बयान जजों के काम के भारी बोझ और न्यायिक प्रणाली पर बढ़ते दबाव को भी उजागर करता है।

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सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी देश की न्यायिक व्यवस्था पर कई सवाल खड़ा करता है। जब हाईकोर्ट अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे हैंतब पुराने मामलों के तेजी से निपटारे की उम्मीद करना बेमानी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे हालात में याचिकाकर्ताओं को बार-बार आवेदन देकर हाईकोर्ट का ध्यान आकर्षित करना होगाक्योंकि वो सीधे तौर पर हाईकोर्ट को आदेश नहीं दे सकता।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के हाईकोर्ट उसके प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं आतेऔर जब वे अपनी आधी क्षमता के साथ काम कर रहे हों तो उनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे हर मामले को तेजी से निपटाएं। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी उस समय की जब एक याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को 13 साल पुराने मामले का जल्द निपटारा करने का निर्देश देने की मांग की। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि उनका मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में 13 साल से लंबित है। इस पर न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने स्पष्ट कहाहाईकोर्ट इस अदालत (सुप्रीम कोर्ट) के अधीन नहीं है। वकील ने बताया कि उनके मुवक्किल ने पहले ही दो बार हाईकोर्ट में आवेदन देकर मामले के जल्दी निपटारे की गुहार लगाई है। इस पर पीठ ने कहाआवेदन करना जारी रखें। अगर हाईकोर्ट आधी क्षमता के साथ काम कर रहा है तो आप उनसे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे हर मामले को तुरंत निपटाएंउनसे पहले के कई पुराने मामले लंबित हैं। आप वहां जाकर निवेदन करें।

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सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर कोई आदेश देने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी कि वह हाईकोर्ट में जाकर मामले की जल्द सुनवाई और निपटारे के लिए औपचारिक आवेदन करे। अदालत ने कहा कि ऐसे आवेदन पर हाईकोर्ट उचित तरीके से विचार करेगा। इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने अपने वकील जीवन का अनुभव साझा करते हुए कहा कि वह लंबे समय तक इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर चुके हैं और वहां मामलों को सूचीबद्ध कराने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती हैयह भली-भांति जानते हैं। उन्होंने कहासिर्फ दो आवेदन काफी नहीं हैं। कई बार आपको सैकड़ों आवेदन करने पड़ सकते हैं ताकि आपका मामला सूची में आ सके।

कानून मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिकदेशभर के 25 हाईकोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या 1,122 है। लेकिन 1 सितंबर 2025 तक इनमें केवल 792 जज ही काम कर रहे हैंयानी 330 पद खाली हैं। यह करीब 30 प्रतिशत से अधिक की कमी को दर्शाता है।

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