सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से मांगी पुलिस थानों में लगे सीसीटीवी कैमरों की पूरी जानकारी

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से मांगी पुलिस थानों में लगे सीसीटीवी कैमरों की पूरी जानकारी

नई दिल्ली, 26 सितंबर (एजेंसियां)। उच्चतम न्यायालय ने पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए राजस्थान सरकार से राज्य के सभी पुलिस थानों में लगाए गए सीसीटीवी कैमरों की संख्या और उनकी कार्यक्षमता से जुड़ी पूरी जानकारी देने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए यह कदम उठाया।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की द्वैतीय पीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि पुलिस हिरासत में किसी भी व्यक्ति की मौत लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गहरी चोट है और यह सीधे-सीधे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। पीठ ने कहा कि संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करना राज्य का दायित्व है, और यदि पुलिस हिरासत में किसी नागरिक की जान जाती है तो यह न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है, बल्कि शासन की पारदर्शिता और जवाबदेही को भी कटघरे में खड़ा करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से यह भी पूछा है कि राज्य के प्रत्येक थाने में कितने सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, वे कैमरे किस स्थिति में हैं और क्या उनकी निगरानी के लिए कोई केंद्रीयकृत व्यवस्था है। अदालत ने स्पष्ट किया कि सीसीटीवी कैमरों की मौजूदगी मात्र औपचारिकता नहीं होनी चाहिए, बल्कि उनका सही तरीके से संचालन और निगरानी भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि यदि कैमरे लगे हैं लेकिन वे चालू नहीं रहते या फुटेज सुरक्षित नहीं रखी जाती तो इसका कोई महत्व नहीं है।

पीठ ने राज्य सरकार के लिए कुल बारह सवाल तैयार किए हैं, जिनमें कैमरों की संख्या, उनकी गुणवत्ता, रखरखाव, रिकॉर्डिंग की अवधि और निगरानी तंत्र से जुड़े बिंदु शामिल हैं। अदालत ने यह भी जानना चाहा कि पुलिस हिरासत में मौत की प्रत्येक घटना की जांच कैसे की जाती है और क्या उन मामलों में सीसीटीवी फुटेज का इस्तेमाल साक्ष्य के तौर पर किया गया।

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सुनवाई के दौरान न्यायालय ने सितंबर 2025 में प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 2025 के पहले आठ महीनों में राजस्थान में पुलिस हिरासत में 11 लोगों की मौत हो चुकी है। इन मौतों में से सात घटनाएँ उदयपुर संभाग में दर्ज की गई हैं। अदालत ने इस तथ्य पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह स्थिति बेहद गंभीर है और इससे राज्य में कानून व्यवस्था और पुलिस की जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठते हैं।

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सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की मौजूदगी नागरिकों की सुरक्षा और पुलिस की कार्यप्रणाली की पारदर्शिता के लिए अनिवार्य है। इससे न केवल हिरासत में बंद व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा होती है, बल्कि पुलिस पर भी यह दबाव रहता है कि वह अपने दायित्वों का निर्वहन कानून के दायरे में रहते हुए करे। अदालत ने कहा कि पारदर्शिता ही न्याय प्रणाली की आत्मा है और सीसीटीवी कैमरे इसी पारदर्शिता को मजबूत करने का साधन हैं।

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राजस्थान सरकार से अपेक्षा की गई है कि वह जल्द से जल्द अदालत को विस्तृत रिपोर्ट सौंपे और बताए कि सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था को दुरुस्त बनाने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं। न्यायालय ने कहा कि यदि इस दिशा में ढिलाई बरती गई तो यह न केवल पुलिस विभाग बल्कि पूरी राज्य सरकार के लिए गंभीर स्थिति उत्पन्न कर सकती है।

अदालत की इस सख्त टिप्पणी और निर्देश ने पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों और पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की उपयोगिता पर एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अदालत के निर्देशों का कड़ाई से पालन होता है तो इससे न केवल हिरासत में मौतों की संख्या कम होगी बल्कि आम नागरिक का पुलिस और न्याय व्यवस्था पर भरोसा भी मजबूत होगा।