निःसंतान विधवा को मिलेगा सम्पत्ति में हिस्सा
इस्लामी उत्तराधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
नई दिल्ली, 18 अक्टूबर (एजेंसियां)। सुप्रीम कोर्ट ने इस्लामी उत्तराधिकार कानून से जुड़ा एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी सम्पत्ति को बेचने का सिर्फ समझौता (एग्रीमेंट टू सेल) मालिकाना हक का हस्तांतरण नहीं करता। यानि जब तक सेल डीड (विक्रय विलेख) अमल में नहीं लाया जाता, सम्पत्ति का मालिक वही व्यक्ति रहता है जिसके नाम पर वह है।
यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ जोहरबी नामक महिला की अपील पर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कानून के अनुसार, यदि मृतक की औलाद नहीं है तो बीवी सम्पत्ति के एक-चौथाई हिस्से की हकदार होती है। यह मामला चांद खान नामक व्यक्ति की सम्पत्ति से जुड़ा था। चांद खान की मृत्यु हो गई थी और उसकी कोई औलाद नहीं थी। उसकी बीवी जोहरबी ने दावा किया कि चांद खान की सभी संपत्तियां मतरूक सम्पत्ति (यानि मृत व्यक्ति द्वारा छोड़ी गई सम्पत्ति) है, जिन्हें मुस्लिम कानून के अनुसार बांटा जाना चाहिए। वहीं चांद खान के भाई इमाम खान ने कहा कि ये सम्पत्तियां चांद खान ने अपने जीवनकाल में ही बिक्री समझौते के जरिए तीसरे पक्ष को बेच दी थीं।
मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि बिक्री का समझौता मात्र इरादा दिखाता है। इससे न तो खरीदार को मालिकाना हक मिलता है और न ही सम्पत्ति पर कोई अधिकार। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि क्योंकि सेल डीड चांद खान की मौत के बाद ही बनी, इसलिए सम्पत्ति उनकी मृत्यु के समय उनके नाम पर ही थी और इस वजह से वह मतरूक सम्पत्ति मानी जाएगी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मुस्लिम कानून के अनुसार, यदि मृतक की औलाद नहीं है, तो बीवी सम्पत्ति के एक-चौथाई हिस्से की हकदार होती है। वहीं, अगर संतान है तो बीवी को आठवां हिस्सा मिलता है। इस मामले में चांद खान की कोई औलाद नहीं थी, इसलिए उसकी बेवा केवल एक चौथाई हिस्सेदारी की हकदार थी। शेष हिस्सा अन्य वारिसों में बांटा गया जिसमें मृतक के भाई भी शामिल थे।
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