महंगाई–बेरोजगारी पर सपा की चुप्पी सबसे खतरनाक

मायावती बोलीं—“सपा सरकारें सिर्फ जातिवादी दिखावा, जनता की तबाही में भागीदार”

महंगाई–बेरोजगारी पर सपा की चुप्पी सबसे खतरनाक

नई दिल्ली, 11 नवंबर। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की चार बार की मुख्यमंत्री बहन कुँ. मायावती ने आज पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड की समीक्षा बैठकों के दौरान समाजवादी पार्टी पर सीधे और तीखे प्रहार किए। समीक्षा बैठकें भले ही अन्य राज्यों की संगठनात्मक मजबूती के लिए थीं, लेकिन मायावती का सबसे कड़ा हमला समाजवादी पार्टी (सपा) की नीतियों और उसके राजनीतिक चरित्र पर केंद्रित रहा। उन्होंने कहा कि सपा की राजनीति जनता के असली मुद्दों पर नहीं, बल्कि जातिवादी चश्मे और दिखावे की नौटंकी पर आधारित है। उनके शब्दों में, “महंगाई और बेरोजगारी से बहुजन समाज की कमर टूट चुकी है, लेकिन सपा जैसी पार्टियाँ वोटों के लालच में जनता के दर्द पर मौन धारण किए बैठी हैं। यह चुप्पी सबसे खतरनाक चुप्पी है।”

मायावती ने कहा कि देश में बढ़ती महंगाई, भयावह बेरोजगारी और लगातार बिगड़ते आर्थिक हालात के कारण गरीब, मजदूर और दलित–बहुजन परिवार अस्तित्व के संकट से गुजर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सपा सरकारें और उनका नेतृत्व हमेशा की तरह केवल बयानबाजी का सहारा लेते हैं और जब जनता को वास्तविक राहत देने की बात आती है, तो वे चुप्पी साध लेते हैं। उनके अनुसार, “सपा सरकारें न पहले रोजगार के मुद्दे पर गंभीर थीं, न आज हैं। उनकी राजनीति सिर्फ जातीय समीकरणों को साधने तक सीमित है। जनता की समस्याओं से उनका कोई वास्ता नहीं रहा और यही जनता के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदेह है।”

बैठक में मायावती ने कहा कि जिन राज्यों में सरकारें बदली हैं, वहाँ भी जनता की पीड़ा में कोई सुधार नहीं हुआ है और सपा की राजनीति भी इसी श्रेणी में आती है—सरकार बदले या विपक्ष में रहे, पार्टी का चरित्र नहीं बदलता। उन्होंने कहा कि सपा नेताओं का रवैया हमेशा जनता से अधिक अपने जातीय वोटबैंक को खुश रखने वाला रहा है। मायावती ने कहा, “यह बेहद अफसोसनाक है कि सपा जैसी पार्टियाँ अपने आपको सामाजिक न्याय का ठेकेदार बताती हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि वे बहुजन समाज के अधिकारों की झंडाबरदार होने का सिर्फ नाटक करती हैं।”

समीक्षा बैठक के दौरान उन्होंने पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड के पार्टी पदाधिकारियों से कहा कि उन्हें अपने संगठन को केवल चुनावी मजबूती के लिए नहीं, बल्कि जनता के रोजमर्रा के संघर्षों से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिए भी मजबूत करना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि बीएसपी का लक्ष्य सिर्फ चुनाव जीतना नहीं, बल्कि संविधानिक मूल्यों के अनुसार शासन चलाने की क्षमता विकसित करना है। उनके अनुसार, “सिर्फ कुर्सी हासिल करना लक्ष्य नहीं है। लक्ष्य यह है कि जनता को उसकी सुरक्षा, उसकी रोजी-रोटी और उसके अधिकारों की गारंटी दी जाए। सपा जैसे दलों की तरह दिखावे की राजनीति बीएसपी की विचारधारा का हिस्सा नहीं है।”

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मायावती ने हरियाणा में बढ़ती अराजकता, पंजाब में जमीनी स्तर पर न सुधरती परिस्थितियों और उत्तराखंड में प्रशासनिक दिशा के अभाव का उल्लेख करते हुए कहा कि इन राज्यों में भी जनता के सवालों से भागने की राजनीति चरम पर है। उन्होंने इन राज्यों के उदाहरण देते हुए सपा पर पुनः हमला बोला और कहा कि सपा के शासनकाल में भी यही स्थिति रहती है। जनता की परिस्थितियाँ जैसी की तैसी रहती हैं, केवल राजनीतिक नारे बदलते हैं। उन्होंने कहा, “सपा के शासन में गरीब, किसान और मजदूर सबसे अधिक दर्द झेलते हैं। खुद को समाजवादी कहने वाले लोग आखिर गरीबों के हितों पर क्यों चुप हो जाते हैं? यह चुप्पी ही बताती है कि सपा की राजनीति सिर्फ चुनावी स्वार्थ पर आधारित है।”

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बैठक में मायावती ने झारखंड, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के उन कार्यकर्ताओं की भी सराहना की, जिन्होंने बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर बीएसपी के अभियान में सक्रियता दिखाई थी। उन्होंने कहा कि यह उन नेताओं के लिए संदेश है जो अवसरवादी राजनीति करते हैं और बहुजन नारे लगाकर निजी स्वार्थ साधने में लगे रहते हैं। उन्होंने आगाह किया कि आने वाले महीनों में बीएसपी का संगठनात्मक विस्तार और तेज गति से होगा और यह विस्तार केवल सिद्धांतों के आधार पर होगा, किसी जाति या समूह की खुशामद पर नहीं।

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इसके अलावा मायावती ने दिल्ली के लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास हुए ब्लास्ट की घटना की कड़ी निंदा की और मृतकों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की। उन्होंने सरकार से मांग की कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया जाए और नागरिकों के जीवन की रक्षा सुनिश्चित की जाए।

बीएसपी प्रमुख का आज का बयान न सिर्फ संगठनात्मक दिशा निर्देश था, बल्कि स्पष्ट रूप से सपा की राजनीति पर उनकी गहरी नाराज़गी और असहमति का संकेत भी था। उनका पूरा बयान इस बात पर केंद्रित रहा कि सपा की राजनीति जनता को राहत देने वाली नहीं, बल्कि सिर्फ दिखावे और जातीय समीकरणों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि जब तक जनता सपा की इस दिखावटी राजनीति को समझ नहीं लेगी, तब तक महंगाई, बेरोजगारी और उत्पीड़न जैसी समस्याएँ कायम रहेंगी और सबसे अधिक पीड़ा गरीब और बहुजन समाज को ही सहनी पड़ेगी।

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