बेंगलुरु में सड़क सुरक्षा संकट, बिजली दर विवाद और आईटी सेक्टर में नई हलचल
—शहर की राजनीति और प्रशासन पर बढ़ा दबाव
बेंगलुरु, 11 नवम्बर। देश की टेक राजधानी कहे जाने वाले बेंगलुरु में इन दिनों प्रशासनिक चुनौतियों और राजनीतिक विवादों का तेज दौर चल रहा है। एक ओर लगातार बढ़ रहे सड़क हादसों ने सरकार और नगर निगम की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, वहीं बिजली दरों में फिर से प्रस्तावित बढ़ोतरी को लेकर विपक्ष और उपभोक्ताओं ने मोर्चा खोल दिया है। इसी बीच आईटी सेक्टर में निवेश घोषणाओं के साथ-साथ कर्मचारियों की हाइब्रिड–वर्क नीति पर नए विवाद खड़े हो गए हैं। शहर के विभिन्न हिस्सों में ट्रैफिक दबाव, जल–संकट और अवैध निर्माण के मामलों ने बेंगलुरु की पहचान और उसकी प्रशासनिक क्षमता को लेकर पुराने विवादों को फिर से जीवित कर दिया है।
शहर में सबसे बड़ा मुद्दा इस समय सड़क दुर्घटनाओं की तेजी से बढ़ती संख्या है। पिछले तीन महीनों में बेंगलुरु में 430 से अधिक बड़े हादसे दर्ज किए गए हैं, जिनमें ज्यादातर हादसे तेज गति, खराब सड़क डिजाइन, ब्लाइंड–स्पॉट और रात में स्ट्रीटलाइट न होने के कारण हुए। कई इलाकों में सड़क कार्य अधूरे छोड़ दिए गए हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा और बढ़ गया है। बेंगलुरु ट्रैफिक पुलिस का दावा है कि उन्होंने 15% तक दुर्घटना में कमी लाई है, लेकिन आंकड़े कुछ और कहानी कहते हैं। शहर के नागरिकों ने BBMP और BDA पर आरोप लगाया है कि वे करोड़ों रुपये के सड़क सुधार बजट का सही उपयोग नहीं कर रहे। सोशल मीडिया पर प्रत्येक दुर्घटना के बाद लोग सड़क गड्ढों और गलत लेन–डिज़ाइन की तस्वीरें साझा कर रहे हैं, जो इस संकट की गहराई को दिखाती हैं।
दूसरी ओर, बिजली दरों को लेकर भी बेंगलुरु में बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। कर्नाटक इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (KERC) द्वारा प्रस्तावित नई दर वृद्धि के खिलाफ बीजेपी, जेडीयस सहित कई विपक्षी दलों ने मोर्चा खोल दिया है। विपक्ष का कहना है कि राज्य सरकार पहले ही मुफ्त बिजली योजना के कारण बिजली कंपनियों पर दबाव डाल चुकी है, और अब आम उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ डालने की तैयारी की जा रही है। शहर के उद्योगपति भी चिंतित हैं क्योंकि बेंगलुरु के औद्योगिक इलाकों—पीनेया, व्हाइटफील्ड, होसूर रोड और इलेक्ट्रॉनिक सिटी—में बिजली कटौती का असर उत्पादन और एक्सपोर्ट पर पड़ रहा है। उद्योगिक संगठनों का कहना है कि लगातार बिजली कटौती के कारण कई यूनिट्स पूरी क्षमता पर काम नहीं कर पा रहीं, जिससे कर्नाटक की छवि नुकसान पहुँचा रही है।
आईटी सेक्टर में भी इन दिनों हलचल तेज है। कई बड़ी कंपनियों ने हाइब्रिड वर्क मॉडल को अनिवार्य करने की घोषणा कर दी है, जिससे कर्मचारियों में नाराजगी है। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि बेंगलुरु का ट्रैफिक संकट अभी भी गंभीर है और रोजाना दो-तीन घंटे सड़क पर बर्बाद होने से उनकी उत्पादकता कम हो रही है। इसके बावजूद कंपनियाँ कर्मचारियों को हफ्ते में चार से पाँच दिन कार्यालय आने के लिए मजबूर कर रही हैं। उधर, कर्नाटक सरकार का तर्क है कि ऑफिस–कल्चर बहाल होने से अर्थव्यवस्था को फायदा होगा, क्योंकि इससे ट्रांसपोर्ट, फूड–सर्विसेज, रेंटल–हाउसिंग और अन्य सेक्टरों की गतिविधियाँ तेज होती हैं।
जल–संकट भी बेंगलुरु में लगातार बढ़ रहा है। कावेरी नदी विवाद फिर से चर्चा में है क्योंकि शहर के कई दक्षिणी इलाकों में पानी की कमी बढ़ गई है। टैंकर–माफिया के सक्रिय होने के आरोप लग रहे हैं और BWSSB पर सवाल उठने लगे हैं कि वे आपूर्ति की निगरानी में नाकाम क्यों हो रहे हैं। कुछ इलाकों—माराठाहल्ली, बेलंदूर, के.आर.पुरम और सरजापुर रोड—में जल–संकट इतना गंभीर हो गया है कि लोगों को पीने के पानी के लिए भी घंटों इंतज़ार करना पड़ रहा है।
राजनीतिक दृष्टि से भी बेंगलुरु का माहौल गर्म है। बीआरएस के प्रवेश की चर्चाएँ, कांग्रेस सरकार की योजनाओं की गति और विपक्ष के आरोपों ने शहर की राजनीति को और तेज कर दिया है। BBMP चुनाव की घोषणा भी कभी हो सकती है, इसलिए तमाम दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। सड़क, बिजली, ट्रैफिक, जल–संकट और अवैध निर्माण जैसे मुद्दे चुनावी भाषणों का केंद्र बनने वाले हैं।
बेंगलुरु में तेजी से बदलता यह माहौल साफ संकेत देता है कि शहर भविष्य के लिए बड़े निर्णयों की प्रतीक्षा कर रहा है। यह तय है कि यदि प्रशासन समय पर कठोर और सुविचारित कदम नहीं उठाता, तो बेंगलुरु की “सिलिकॉन सिटी” की छवि आने वाले वर्षों में चुनौती का सामना कर सकती है।
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