लंदन, 11 नवम्बर (एजेंसियां)। दुनिया की सबसे भरोसेमंद मानी जाने वाली मीडिया संस्थाओं में शुमार ब्रिटेन के सार्वजनिक प्रसारक बीबीसी की साख पर एक बार फिर गहरा धब्बा लग गया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भाषण को गलत तरीके से एडिट कर प्रसारित करने के बाद बीबीसी ने जिस तरह माफी मांगनी पड़ी और इसके बाद उसके दो सबसे बड़े अधिकारियों—डायरेक्टर जनरल टिम डेवी और सीईओ डेबराह टर्नेस—को इस्तीफा देना पड़ा, उसने वैश्विक मीडिया जगत में हलचल मचा दी है। ट्रंप ने इस घटना को “फेक न्यूज की पराकाष्ठा” बताया और बीबीसी को साफ शब्दों में भ्रष्ट करार दिया। उन्होंने कहा कि बीबीसी ने उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया ताकि ऐसा लगे कि उन्होंने 6 जनवरी 2021 के कैपिटल दंगे से पहले हिंसक कार्रवाई के लिए लोगों को भड़काया था।
बीबीसी चेयरमैन समीर शाह ने स्वीकार किया कि एडिटिंग इस तरह की गई कि उसे देखकर कोई भी भ्रमित हो सकता था। उन्होंने इसे “एरर ऑफ जजमेंट” बताया, लेकिन नुकसान पहले ही हो चुका था। कर्मचारियों को भेजे पत्र में टिम डेवी ने कहा कि “टॉप लीडरशिप को जवाबदेह होना चाहिए” और इसके बाद उन्होंने पद छोड़ने की घोषणा कर दी। डेबराह टर्नेस ने भी अपने पत्र में लिखा कि यह विवाद बीबीसी की साख को नुकसान पहुंचा रहा है और उनके लिए पद पर बने रहना उचित नहीं होगा।
यह पहला मौका नहीं है जब बीबीसी किसी बड़े विवाद में फँसा हो। बीबीसी पिछले कुछ वर्षों में लगातार ऐसे घोटालों में उलझता रहा है जिन्होंने उसके तटस्थ और निष्पक्ष रिपोर्टिंग के दावे पर सवाल खड़े किए हैं। मई 2021 में राजकुमारी डायना के मशहूर 1995 इंटरव्यू को लेकर जाँच में पाया गया कि पत्रकार मार्टिन बशीर ने इंटरव्यू हासिल करने के लिए झूठे बैंक दस्तावेजों का इस्तेमाल किया और डायना के भाई को विश्वास दिलाया कि महल के कर्मचारी उन पर जासूसी कर रहे हैं। इस खुलासे ने बीबीसी की नैतिकता पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा किया।
जुलाई 2023 में बीबीसी के दिग्गज प्रजेंटर ह्यू एडवर्ड्स एक नाबालिग को अश्लील तस्वीरें दिखाने के लिए पैसा देने के आरोप में फँस गए। बीबीसी पर आरोप लगा कि शिकायत दर्ज होने के बाद भी उसने तुरंत कार्रवाई नहीं की। 2024 के आंतरिक ऑडिट में पाया गया कि शिकायत निस्तारण प्रक्रिया में भारी खामियाँ थीं। अंततः एडवर्ड्स ने मेडिकल सलाह पर इस्तीफा दिया और उन्हें इसी वर्ष छह महीने की निलंबित जेल की सजा सुनाई गई। यह मामला न केवल बीबीसी बल्कि पूरे ब्रिटिश मीडिया के लिए झटका था।
फरवरी 2025 में भी बीबीसी तब घिर गया जब उसकी गाज़ा पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री में एक ऐसे लड़के की कहानी शामिल थी जो बाद में हमास के अधिकारी का बेटा निकला। आलोचकों ने आरोप लगाया कि बीबीसी ने तथ्य की अनदेखी कर पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग की। यह विवाद उस समय उठा जब इज़राइल-गाज़ा संघर्ष पर दुनिया भर में पहले ही तनाव की स्थिति थी।
इसी वर्ष मई में बीबीसी के लोकप्रिय कार्यक्रम “मैच ऑफ द डे” के प्रस्तुतकर्ता गैरी लिनेकर ने इस्तीफा दे दिया। मामला फ़िलिस्तीन समर्थक वीडियो को चूहे के इमोजी के साथ साझा करने से जुड़ा था, जिसे यहूदी-विरोधी प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इस कदम ने बीबीसी को एक और नैतिक संकट में डाल दिया, जहाँ उसकी निष्पक्षता और आचार संहिता फिर सवालों के घेरे में आ गई।
इन लगातार हो रहे विवादों ने बीबीसी की विश्वसनीयता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। एक समय था जब बीबीसी को दुनिया भर में समाचारों का सबसे भरोसेमंद स्रोत माना जाता था, लेकिन पिछले पांच वर्षों में उसकी साख कई बड़े झटकों से कमजोर हो गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि बीबीसी अब उस मोड़ पर पहुँच चुका है जहाँ उसे अपनी आंतरिक प्रक्रियाओं, एडिटोरियल स्टैंडर्ड, तथ्य-जाँच और नेतृत्व संरचना को पूरी तरह से नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है।
ट्रंप का बीबीसी पर हमला भी चिन्हित करने वाला है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति की संवेदनशीलता को देखते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति के भाषण को गलत संदर्भ में प्रस्तुत करना किसी भी स्तर पर अस्वीकार्य माना गया। यह विवाद शायद अगर किसी दूसरे संगठन से जुड़ा होता तो इतना बड़ा न बनता, लेकिन बीबीसी की साख ही उसकी सबसे बड़ी पूँजी है और उसी पूँजी पर यह घटना सीधा आघात है।
अब जबकि शीर्ष नेतृत्व ने इस्तीफा दे दिया है, सभी की निगाहें बीबीसी के अगले कदम और सुधार प्रक्रिया पर हैं। क्या बीबीसी अपनी खोई हुई विश्वसनीयता को वापस हासिल कर पाएगा, यह आने वाले महीनों में स्पष्ट होगा। लेकिन यह तय है कि ट्रंप भाषण विवाद ने बीबीसी की नींव को जोरदार हिलाकर रख दिया है और उसके सामने खुद को साबित करने की सबसे कठिन चुनौती खड़ी हो गई है।
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