मतदान खत्म होते ही सियासी तापमान उबला
—अब एग्ज़िट पोल पर टिकी करोड़ों निगाहें
बिहार में सत्ता संग्राम चरम पर: NDA–महागठबंधन के बीच ‘आर-पार’ की लड़ाई,
पटना, 11 नवम्बर,(एजेंसियां)। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का मतदान आखिरकार समाप्त हो गया है और इसके साथ ही बिहार का राजनीतिक आकाश पहले से कहीं अधिक विस्फोटक दिखने लगा है। एनडीए और महागठबंधन के बीच इस बार की लड़ाई सिर्फ सीटों की नहीं, बल्कि राजनीतिक वर्चस्व, जनाधार और भविष्य की सत्ता दिशा तय करने की लड़ाई बन गई है। चुनाव आयोग ने जैसे ही अंतिम चरण के मतदान के समापन का ऐलान किया, पूरे राज्य में सियासी तापमान तेजी से उछल गया। अब खेल एग्ज़िट पोल के हाथ में है, जो शाम साढ़े छह बजे से शुरू होकर शुरुआती संकेत देंगे कि बिहार की जनता ने किसके हक़ में राजनीतिक फैसले की मुहर लगाई है।
इस बार के चुनाव ने कई मायनों में सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए। मतदान केंद्रों पर जिस तरह भीड़ उमड़ती दिखी, उसने स्पष्ट कर दिया कि बिहार की जनता बदलाव, स्थिरता, बेरोज़गारी और जातीय समीकरणों—इन सभी मुद्दों को लेकर अभूतपूर्व रूचि दिखा रही है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी के अनुसार, पहले चरण में 65.08 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जो 1998 के बाद सबसे अधिक है। महिलाओं का सहभाग सर्वाधिक उत्साहपूर्ण रहा और यही वजह है कि राजनीतिक दल अब महिला वोट बैंक की दिशा को लेकर भीतर ही भीतर अधिक सतर्क और चिंतित हो चुके हैं।
दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीटों पर मतदान हुआ, जिसमें गया टाउन, कटिहार, सुपौल, राघोपुर, महुआ, रघुनाथपुर और वैशाली जैसी सीटें सबसे ज़्यादा चर्चा में रहीं। इन सीटों पर मुकाबला इतने तीखे मोड़ पर पहुंच गया कि राजनीतिक पंडित भी स्पष्ट आकलन करने से बच रहे हैं। मुकाबले की धार इस कदर तेज है कि अंतिम निर्णय तक कोई भी दावा राजनीतिक खतरा पैदा कर सकता है।
महागठबंधन की ओर से राजद के तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव और कांग्रेस के नेताओं ने पूरे चुनाव मैदान में व्यापक प्रचार किया, वहीं एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, भाजपा नेतृत्व और जदयू के कई वरिष्ठ नेता लगातार लोगों से संवाद में डटे रहे। इस चुनाव की विशेषता यह रही कि मुद्दों की बरसात जितनी थी, उससे कहीं अधिक जोर प्रचार के आक्रामक टकराव पर दिखाई दिया। एक ओर बेरोज़गारी, कानून–व्यवस्था, महँगाई और सरकारी नौकरियों की चर्चाएँ थीं, वहीं दूसरी ओर जातीय व्यवस्था, नेताओं के निजी हमले और गठबंधनों के बदलते समीकरण ने इस चुनाव को और भी नाटकीय बना दिया।
इस चुनाव में नए चेहरे ओसामा शाहाब की चर्चा भी खूब रही। महागठबंधन ने उन्हें चमकता सितारा बताया, जबकि एनडीए ने उन पर अपरिपक्वता और अनुभवहीनता का सवाल उठाया। महुआ और राघोपुर जैसे किलेबंद इलाकों में राजद का प्रभाव पहले से ही मजबूत माना जाता था, लेकिन इस बार भाजपा और जदयू ने अपने बूथ स्तर के नेटवर्क को उस क्षेत्र में असाधारण रूप से सक्रिय किया, जिससे मुकाबला और दिलचस्प हो गया।
ईवीएम बंद होने के साथ ही अब देशभर का ध्यान एग्ज़िट पोल पर है। चुनाव आयोग ने सभी एजेंसियों को सख्त निर्देश दिया था कि मतदान पूरा होने से पहले किसी भी प्रकार का आंकड़ा सार्वजनिक न किया जाए। इस चुनाव में Axis MyIndia, Today’s Chanakya, CVoter जैसी बड़ी संस्थाएँ एग्ज़िट पोल कर रही हैं, जिनके गणित को आमतौर पर चुनावी विश्लेषण का आधार माना जाता है। हालांकि एग्ज़िट पोल सिर्फ अनुमान होते हैं, लेकिन बिहार जैसे अत्यधिक राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में इन सर्वेक्षणों का प्रभाव वास्तविक नतीजों से पहले ही राजनीतिक हवा मोड़ देता है।
राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि इस बार की प्रतियोगिता पारंपरिक सीमाओं से काफी आगे जाकर लड़ी गई। दोनों बड़े गठबंधनों ने हर संभव प्रयास किया कि अपने-अपने कोर वोट बैंक को मजबूत किया जाए। महागठबंधन ने युवा और आर्थिक मुद्दों को केंद्र में रखा, जबकि एनडीए ने विकास, कानून–व्यवस्था और महिला सुरक्षा को प्राथमिकता दी। खासकर महिला मतदाताओं की रिकार्ड उपस्थिति ने दोनों खेमों की चिंता बढ़ा रखी है, क्योंकि ये वोट निर्णायक असर डाल सकते हैं।
चुनावी मैदान में इस बार न सिर्फ चेहरे बदले, बल्कि चुनावी रणनीतियाँ भी बदल गईं। सोशल मीडिया पर प्रचार पहले की अपेक्षा कई गुना अधिक आक्रामक दिखा। फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप और यूट्यूब पर चलने वाला ‘माइक्रो–प्रचार’ चुनावी परिणामों पर बड़ा प्रभाव डालने की स्थिति में रहा। विभिन्न समुदायों के वोट बैंक को साधने के लिए राजनीतिक दलों ने जिस तरह डिजिटल चैनल का इस्तेमाल किया, उससे बिहार का यह चुनाव तकनीकी दृष्टि से सबसे उन्नत चुनाव भी माना जा रहा है।
अब जब मतदान समाप्त हो चुका है, बिहार में एक असहज सन्नाटा फैल गया है। सड़कों पर भीड़ नहीं, लेकिन टीवी चैनलों पर तीखी बहसें हैं। राजनीतिक कार्यालयों के बाहर इंतज़ार है और जनता की नजरें एग्ज़िट पोल पर टिकी हैं। बिहार की चुनावी राजनीति हमेशा अनिश्चितता से भरी रही है, लेकिन इस बार की अनिश्चितता कहीं ज्यादा गहरी है। ऐसा लग रहा है मानो बिहार अपनी सत्ता यात्रा के सबसे निर्णायक मुकाम पर खड़ा है—जहाँ अगले कुछ घंटों में दुनिया यह जान जाएगी कि जनता ने एनडीए की स्थिरता को चुना है या महागठबंधन के वादों पर विश्वास जताया है।
बिहार का यह चुनाव लोकतंत्र का विशाल उत्सव है, जिसमें राजनीतिक टकराव इतना व्यापक रहा कि इसके परिणाम आने तक हर नेता और हर दल अपनी साँसें थामे बैठे रहेगा।
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