नीतीश कैबिनेट का जातीय समीकरण: अगड़ा, पिछड़ा, अतिपिछड़ा और दलित वर्गों का संतुलित प्रतिनिधित्व
नीतीश ने ली शपथ
पटना, 20 नवम्बर,(एजेंसियां)। बिहार की राजनीति में एक बार फिर इतिहास बना है। एनडीए को भारी जीत मिलने के कुछ ही दिनों बाद जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार ने पटना के गांधी मैदान में एक भव्य समारोह में दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर नया कीर्तिमान स्थापित किया। 74 वर्षीय नीतीश कुमार की राजनीतिक प्रासंगिकता पर भले ही चुनावों से पहले सवाल उठते रहे हों, लेकिन जनता ने अपने जनमत से एक बार फिर उन्हें सत्ता की कमान सौंपकर यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य की राजनीति में उनका प्रभाव अब भी उतना ही मजबूत है। राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा संचालित इस समारोह में भाजपा के सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जबकि कुल 25 नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया।
नए मंत्रिमंडल की सबसे उल्लेखनीय बात इसका जातिगत संतुलन है, जिसे तैयार करने में दोनों प्रमुख गठबंधन दल—भाजपा और जेडीयू—ने गंभीरता दिखाई है। इस सरकार में सामाजिक प्रतिनिधित्व को प्राथमिकता दी गई है, जिसमें कुल 12 मंत्री ओबीसी और ईबीसी समुदाय से आते हैं। इसके अलावा, आठ मंत्री अगड़ी जातियों से हैं, जबकि पांच मंत्री दलित समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक मंत्री मुस्लिम समुदाय से भी है, जो एनडीए सरकार द्वारा सभी वर्गों को संदेश देने की कोशिश को दर्शाता है।
भाजपा ने नई सरकार में बड़े भाई की भूमिका निभाई है। पार्टी को 17 मंत्री पद मिले हैं, जिनमें उप मुख्यमंत्री सहित कई महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारियां दी जाएंगी। विधानसभा अध्यक्ष के पद पर भी भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार के चुने जाने की संभावना जताई जा रही है। वहीं जेडीयू को मुख्यमंत्री सहित 15 पद मिले हैं, जिससे सत्ता का साझा संतुलन स्पष्ट रूप से दिखता है। छोटे सहयोगी दलों में एलजेपी (रामविलास) को दो, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) को एक और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) को भी एक मंत्री पद दिया गया है।
मंत्रिपरिषद में शामिल नेताओं की सूची विस्तृत और विविध है। प्रमुख चेहरों में सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा, विजय कुमार चौधरी, बिजेंद्र प्रसाद यादव, श्रवण कुमार, मंगल पांडे, दिलीप कुमार जयसवाल और अशोक चौधरी शामिल हैं। इसके साथ ही लेसी सिंह, मदन सहनी, नितिन नबीन, रामकृपाल यादव, सुनील कुमार, मोहम्मद जमा खान और संजय सिंह टाइगर जैसे नेता भी मंत्रिमंडल का हिस्सा बने हैं। अन्य नेताओं में अरुण शंकर प्रसाद, सुरेंद्र मेहता, नारायण प्रसाद, रमा निषाद, लखेंद्र कुमार रौशन और श्रेयशी सिंह शामिल हैं। छोटे दलों में एलजेपी के संजय कुमार, संजय कुमार सिंह और आरएलएम के दीपक प्रकाश ने भी मंत्री पद की शपथ ली।
नए मंत्रिमंडल में तीन महिलाओं को जगह दी गई है, जो बिहार की राजनीति में महिला प्रतिनिधित्व को और सशक्त बनाता है। इसके अलावा, तीन मंत्री पहली बार इस पद पर पहुंचे हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि गठबंधन नए चेहरों को भी अवसर देने को तैयार है। यदि अगड़ी जातियों की बात करें, तो दो भूमिहार, चार राजपूत, एक ब्राह्मण और एक कायस्थ समाज से मंत्री शामिल किए गए हैं। ओबीसी-ईबीसी वर्ग में भाजपा के 8, जेडीयू के 3 और आरएलएम का एक मंत्री है। इसी तरह दलित समुदाय से कुल पांच मंत्रियों में भाजपा के दो, जेडीयू का एक, एलजेपी का एक और हम का एक मंत्री शामिल है।
नीतीश कुमार के इस नए मंत्रिमंडल में जातिगत विविधता को एक राजनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है। बिहार की सामाजिक संरचना को ध्यान में रखते हुए, यह कैबिनेट सामाजिक संतुलन का व्यापक प्रयास प्रतीत होता है। भाजपा-जेडीयू गठबंधन इस समीकरण के माध्यम से न केवल जातीय समूहों का भरोसा जीतना चाहता है, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करने का प्रयास भी कर रहा है। जिस तरह नीतीश कुमार ने दसवीं बार मुख्यमंत्री बनकर एक नई शुरुआत की है, यह देखना दिलचस्प होगा कि यह समावेशी और संतुलित कैबिनेट बिहार के विकास और प्रशासनिक मजबूती में किस तरह नए अध्याय लिखता है।

