तेलंगाना हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकार पर लगाई मुहर

मुस्लिम महिलाओं को भी तलाक लेने का अधिकार

तेलंगाना हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकार पर लगाई मुहर

मुस्लिम मर्द तलाक मांगें तो मुस्लिम महिलाएं भी मांग सकती हैं खुला

हैदराबाद, 26 जून (एजेंसियां)। तेलंगाना हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मुस्लिम मर्द अगर तलाक ले सकता है तो मुस्लिम महिलाओं को भी तलाक मांगने का पूरा अधिकार है। तेलंगाना हाईकोर्ट ने कहा कि एक मुस्लिम पुरुष को अपनी पत्नी की खुला (पत्नी द्वारा शुरू किया गया तलाक) की मांग को अस्वीकार करने का कोई अधिकार नहीं है।

हाईकोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला को खुला यानी तलाक मांगने का अधिकार बिल्कुल सही है। इसके लिए शौहर की सहमति नहीं चाहिए। हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के हक में फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर महिला अपने शौहर के साथ नहीं रहना चाहती हैतब महिला को अधिकार है कि वह खुला से तलाक ले सकती है। हाईकोर्ट ने कहा कि बीवी के लिए विवाह विच्छेद को अंतिम रूप देने के लिए मुफ्ती या दार-उल-कजा से खुलानामा (विवाह विच्छेद का प्रमाण पत्र) लेना जरूरी नहीं है। मुफ्ती की राय केवल सलाह के लिए होती है। इसके साथ हाईकोर्ट ने साफ किया कि अगर पत्नी खुला मांगती है और केस अदालत तक पहुंचता है। ऐसे मामले में खुला तत्काल रूप से प्रभावी हो जाता है। बेशक ही मामला दोनों पक्षों का निजी क्यों न हो।

जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और जस्टिस बीआर मधुसूदन राव की बेंच ने कहा कि मुस्लिम बीवी का खुला मांगने का अधिकार सही है। इसके लिए पति की स्वीकृति या कारण बताने की जरूरत नहीं है। इसलिए हाईकोर्ट की भूमिका केवल निकाह को खत्म कराने के लिए मुहर लगाने तक ही सीमित है। बेंच ने कहाहाईकोर्ट की एकमात्र भूमिका निकाह समाप्ति पर न्यायिक मुहर लगाना हैजो कि खुला के दौरान दोनों पक्षों के लिए तनावपूर्ण हो जाती है। पारिवारिक न्यायालय को केवल यह पता लगाना है कि दोनों पक्षों के बीच आपसी मतभेद सुलझ सकते है या नहीं। इसी आधार पर खुला की मांग वैध मानी जाएगी। इसके लिए विस्तारित जांच नहीं होनी चाहिएबल्कि केंद्रित जांच काफी है।

तेलंगाना हाईकोर्ट ने यह फैसला एक मुस्लिम दंपति के मामले में सुनाया है। मामले में एक मुस्लिम बीवी ने अपने शौहर को खुला की मांग कीलेकिन शौहर ने उसकी मांग को ठुकरा दिया। इसके बाद बीवी ने फैमिली हाईकोर्ट में केस दर्ज कराया। यहां कोर्ट ने बीवी के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद गैर-सरकारी संगठन सदा-ए-हक शरई परिषद ने मुस्लिम व्यक्ति को तलाक प्रमाण-पत्र सौंप दिया। परिषद निकाह के बाद छिड़े गृह कलह के समाधान कराने का काम करता है। लेकिन व्यक्ति ने इस प्रमाण-पत्र के विरोध में तेलंगाना हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। अब तेलंगाना हाईकोर्ट ने मुस्लिम व्यक्ति को फटकार लगाई है और मुस्लिम महिला के पक्ष में फैसला सुनाया है।

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हाईकोर्ट ने इस मामले में कुरान की आयतों में खुला का अध्ययन किया। साथ ही इस मामले में इतिहास की परतें भी खोली। जिसमें कहा गयाकुरान के अध्याय-2 की आयत 228 और 229 में बीवी को अपने शौहर के साथ निकाह को रद्द करने का पूर्ण अधिकार दिया गया है। खुला की वैधता के लिए शौहर की सहमति कोई पूर्व शर्त नहीं है। साथ ही हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अगर शौहर अपनी बीवी की खुला की मांग को स्वीकार नहीं करता हैतो इस्लाम में इस मामले पर कोई भी प्रक्रिया नहीं है। चाहे वह कुरानसुन्नत या पैगंबर हो।

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खुला के तहत अगर बीवी अपने शौहर से अलग होती है तो उसे अपने शौहर से उसकी जायदाद लौटानी पड़ेगी। पर यह जरूरी है कि दोनों इसके लिए रजामंद हों। उल्लेखनीय है कि खुला की पहल केवल बीवी ही कर सकती है। कुरान और हदीस में इसका जिक्र है। वहींभारत में मुस्लिमों के बीच मान्य पुस्तक फतवा-ए-आलमगीरी में कहा गया है कि जब निकाह के बाद शौहर-बीवी इस बात पर राजी हैं कि अब वे साथ नहीं रह सकते तो बीवी कुछ सम्पत्ति शौहर को वापस करके स्वयं को उसके बंधन से मुक्त कर सकती है। जायदाद में बीवी अपनी मेहर की रकम छोड़ सकती है या फिर कोई अन्य रकम/सम्पत्ति दे सकती है। खुला को लेकर हनफी सहित कुछ तबके के उलेमाओं का कहना है कि इसके तहत मुस्लिम महिला तभी तलाक ले सकती हैजब उसका शौहर तैयार हो। अगर शौहर मना कर दे तो महिला के पास मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम 1939 के प्रावधानों के तहत अदालत जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

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वहींऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने साल 2021 में खुला के संबंध में कहा था कि इस प्रक्रिया में पति की स्वीकृति एक शर्त है। वहींअदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि कुरान एक मुस्लिम बीवी को एक प्रक्रिया निर्धारित किए बिना उसकी निकाह को रद्द करने के लिए खुला का अधिकार देता है। मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में मुस्लिम महिलाओं के खुला को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं खुला के तहत अपने शौहर से तलाक लेने की अधिकारी हैं। हालांकिहाईकोर्ट ने इसके लिए कुछ प्रावधान बताए हैं। मद्रास हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि खुला के तहत तलाक लेने के लिए मुस्लिम महिलाओं को फैमिली कोर्ट जाना होगा। किसी निजी शरीयत परिषद को इस संबंध में प्रमाण पत्र जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे प्रमाण-पत्र की कोई मान्यता नहीं है।

तेलंगाना हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति बीआर मधुसूदन राव की पीठ ने एक व्यक्ति की याचिका पर यह फैसला सुनायाजिसमें याचिकाकर्ता ने पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसे जारी खुला नामा (तलाक प्रमाण पत्र) को अमान्य घोषित करने की उसकी मांग को खारिज कर दिया गया था। यह मामला अक्टूबर 2020 में एक मुफ्तीइस्लामिक अध्ययन के एक प्रोफेसरअरबी के एक प्रोफेसर और एक मस्जिद के इमाम द्वारा जारी किए गए खुला नामा से संबंधित है। दंपति की शादी 2012 में हुई थी। पांच साल बाद 2017 में पति द्वारा मारपीट किए जाने के बाद पत्नी को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। जिसके बाद पत्नी ने खुला तलाक की मांग की। वहीं पति ने सुलह बैठकों में शामिल होने से इन्कार कर दिया और उसके बाद 2020 में एक पारिवारिक अदालत का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट में खुला नामा जारी करने में मुफ्ती के अधिकार पर सवाल उठाया गया। अंततः पारिवारिक न्यायालय ने फरवरी 2024 में याचिका खारिज कर दी।

कुरान की आयतोंहदीस साहित्य और पिछले न्यायिक उदाहरणों से विस्तृत जानकारी लेते हुएहाईकोर्ट ने खुला से संबंधित अधिकारों और प्रक्रियाओं को स्पष्ट किया। खुला तलाक के मामले में अपनाए गए दृष्टिकोणों पर विभिन्न न्यायालय के निर्णयों का हवाला देते हुएपीठ ने अपने आदेश में कहा कि खुला मुस्लिम पत्नी द्वारा शुरू की गई तलाक की मांग। खुला की मांग करने परपति के पास मेहर या उसके हिस्से की वापसी के लिए बातचीत करने के अलावा मांग को अस्वीकार करने का विकल्प नहीं होता है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि खुलातलाक का एक बिना टकराव वाला रूप है और यह एक ऐसा मामला हैजिसे दोनों पक्षों द्वारा शादी को बनाए रखने का प्रयास करने के बाद निजी तौर पर सुलझाया जाता है। खुला नामा के लिए मुफ्ती से संपर्क करना अनिवार्य नहीं है और यह खुला को पुष्ट नहीं करता है क्योंकि मुफ्ती द्वारा दी सलाह या फैसला हाईकोर्ट में कानूनी रूप से लागू नहीं होता है। पत्नी द्वारा खुला मांगे जाने के परिणामस्वरूप पति शादी की स्थिति पर निर्णय के लिए न्यायालय/काजी से संपर्क करके अपना फैसला बताना आवश्यक है। जिससे कि शादी की स्थिति पर बाध्यकारी निर्णय बन जाता है। न्यायालय द्वारा सुनाया गया निर्णय दोनों पक्षों पर बाध्यकारी होता है।

पत्नी का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता मुबाशेर हुसैन अंसारी ने कहा कि फैसले का सबसे उल्लेखनीय पहलू यह है कि चूंकि खुला तलाक के लिए पति की सहमति का तत्व अनावश्यक हैइसलिए पारिवारिक न्यायालयों को पूर्ण रूप से सुनवाई करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अंसारी ने कहाजब पत्नी खुला की मांग करती हैतो अदालत को बस खुला सुनाना होता है। पत्नी को यह साबित करने या दलील देने की जरूरत नहीं है कि वह तलाक क्यों चाहती है। इससे पहलेखुला मामलों में अदालत को फैसला सुनाने में छह से आठ साल लग जाते थे और तेलंगाना में अदालत के सामने ऐसे हजारों मामले हैं। जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और जस्टिस बीआर मधुसूदन राव की बेंच ने कहा कि मुस्लिम बीवी का खुला मांगने का अधिकार सही है। इसके लिए पति की स्वीकृति या कारण बताने की जरूरत नहीं है। इसलिए हाईकोर्ट की भूमिका केवल निकाह को खत्म कराने के लिए मुहर लगाने तक ही सीमित है।

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