बिजली इंजीनियरों ने इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2025 वापस लेने की मांग की

किसान, उपभोक्ता और कर्मचारी विरोधी बिल के खिलाफ 3 नवंबर को मुंबई में राष्ट्रीय बैठक; राष्ट्रव्यापी आंदोलन की तैयारी

बिजली इंजीनियरों ने इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2025 वापस लेने की मांग की


लखनऊ, 28 अक्टूबर (एजेंसियां)। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) ने केंद्र सरकार से इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2025 को तत्काल वापस लेने की मांग की है। फेडरेशन ने कहा है कि यह बिल किसान, उपभोक्ता और बिजली कर्मचारियों के हितों के खिलाफ है तथा इससे पूरे ऊर्जा क्षेत्र का निजीकरण बढ़ेगा।

फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने बताया कि 3 नवंबर को मुंबई में बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों की राष्ट्रीय समन्वय समिति नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लॉइज एंड इंजीनियर्स की बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में बिल के विरोध में राष्ट्रव्यापी आंदोलन की रणनीति तय की जाएगी और किसानों, कर्मचारियों व उपभोक्ताओं के साथ संयुक्त मोर्चा बनाकर देशभर में आंदोलन चलाया जाएगा।

दुबे ने कहा कि केंद्र सरकार इस अमेंडमेंट बिल के माध्यम से विद्युत क्षेत्र का निजीकरण करना चाहती है। निजीकरण के बाद बिजली दरें इतनी अधिक हो जाएंगी कि किसान और आम उपभोक्ता बिजली लेने में असमर्थ हो जाएंगे।

उन्होंने कहा कि बिल के सेक्शन 14, 42 और 43 के तहत निजी कंपनियों को यह अधिकार दिया गया है कि वे सरकारी विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOMs) के नेटवर्क का उपयोग कर सकेंगी और इसके एवज में नाम मात्र के व्हीलिंग चार्जेज देंगी। इससे सरकारी वितरण कंपनियों पर मेंटेनेंस और सुदृढ़ीकरण का पूरा वित्तीय बोझ पड़ेगा, जबकि निजी कंपनियां उन्हीं नेटवर्कों से मुनाफा कमाएंगी

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फेडरेशन का कहना है कि निजी कंपनियों को यूनिवर्सल पावर सप्लाई का दायित्व नहीं दिया गया है। इसका परिणाम यह होगा कि वे केवल औद्योगिक और व्यावसायिक उपभोक्ताओं को ही बिजली देंगी, जबकि किसानों और गरीब घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली देने की जिम्मेदारी सरकारी कंपनियों पर रहेगी। इससे सरकारी विद्युत निगम वित्तीय संकट में फंस जाएंगे।

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शैलेंद्र दुबे ने बताया कि बिल के सेक्शन 61(जी) में संशोधन कर अगले पांच वर्षों में क्रॉस सब्सिडी समाप्त करने की बात कही गई है। साथ ही, बिल में यह भी प्रावधान है कि बिजली का टैरिफ कॉस्ट-रिफ्लेक्टिव होना चाहिए — यानी लागत से कम दर पर किसी उपभोक्ता को बिजली नहीं दी जाएगी।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि यह लागू हुआ, तो किसानों को अपने 5 हॉर्सपावर के पंप के लिए 12,000 रुपये प्रति माह का बिजली बिल देना पड़ेगा, जबकि गरीबी रेखा से नीचे के उपभोक्ताओं के लिए दर 8 से 10 रुपये प्रति यूनिट तक पहुंच जाएगी।

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दुबे ने कहा कि बिजली संविधान की समवर्ती सूची में है, यानी इस पर केंद्र और राज्य सरकारों के समान अधिकार हैं। केंद्र सरकार इस बिल के माध्यम से राज्यों के अधिकारों का हनन कर रही है। उन्होंने कहा कि इससे विद्युत वितरण और टैरिफ निर्धारण में केंद्र सरकार का सीधा हस्तक्षेप होगा, जो संविधान की संघीय भावना के विपरीत है।

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